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मिर्जा राजा जय सिंह का जीवन परिचय, युद्ध एवं मृत्यु

TFI Desk द्वारा TFI Desk
21 January 2022
in इतिहास
मिर्जा राजा जय सिंह
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मिर्जा राजा जय सिंह

आमेर के कच्छवाह शासकों में सबसे महत्वपूर्ण एवं योग्य शासकों में इन्हें याद किया जाता है, आमेर का सर्वाधिक विकास इन्हीं के शासनकाल में हुआ. मिर्जा राजा जय सिंह आमेर के राज्य के राजा थे. उनके पिता राजा महा सिंह थे और उनकी माता दमयंती थीं, जो मेवाड़ की एक सुंदर राजकुमारी थीं. उनका जन्म 15 जुलाई 1611 को हुआ था.

मिर्जा राजा जय सिंह ने सन् 1621-1667 (46 वर्ष) तक आमेर रियासत की गद्दी संभाली रखी‌‌. जय सिंह आमेर ने मुग़ल दरबार में सेनापति के पद पर रहते हुए सबसे ज्यादा सेवाएं देने वाले शासक थे. मिर्जा राजा जय सिंह 3 मुग़ल बादशाहों का शासन काल देखा थी जिसमें- जहांगीर, शाहजहां, और औरंगज़ेब शामिल थे. जय सिंह को मुग़ल बादशाह शाहजहां के द्वारा सन् 1637 ई. में मिर्जाराजा की उपाधि से नवाजा गया था.

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शासन का शुरूआती दौर

मिर्ज़ा राजा भाव सिंह का कोई पुत्र नहीं था. जिसके कारण 1621 ई. में उनके छोटे भाई महासिंह के पुत्र जय सिंह प्रथम मात्र 11 वर्ष की आयु में आमेर के शासक बने। अपने शासन काल के दौरान मिर्जा राजा जय सिंह ने मुग़ल बादशाह जहांगीर व शाहजहां की सेवा की थी. 1623 ई. में जहांगीर ने जय सिंह को अहमदनगर के शासक मालिक अम्बर के खिलाफ भेजा. जहाँ इन्हें सफलता प्राप्त हुई. इसके बाद जहांगीर ने इन्हें 1625 ई. में दलेल खां पठान का विद्रोह दमन करने के लिए भेजा जहां फिर से इन्हें सफलता प्राप्त हुई।शाहजहां के शासन काल में इन्होंने 1629 ई. में उज़बेगों के विद्रोह का भी सफलतापूर्वक दमन किया था.

शाहजहां ने 1636 ई. में जय सिंह प्रथम को बीजापुर व गोलकुंडा अभियान पर भेजा। जहां इनके सैन्य कौशल के चलते मुग़ल साम्राज्य को सफलताएं मिली ।जिससे खुश होकर शाहजहां ने मिर्जा राजा जय सिंह के लौटने पर चाकसू व अजमेर के परगने उपहार में दे दिए थे.

कंधार की सूबेदारी –

पहली बार मिर्जा राजा जय सिंह को 1637 ई. में शाहजहां के पुत्र शुजा के साथ कंधार के अभियान पर भेजा गया था. वहीं इसके बाद 1651 ई. में मिर्जा राजा जय सिंह मुग़ल सेना के हरावल दस्ते का नेतृत्व किया था. जहां शाहजहां ने मिर्जा राजा जय सिंह को सदुल्ला खां के साथ में कंधार के युद्ध में नियुक्त किया। जिसके बाद कंधार में मुग़ल सत्ता स्थापित कर दिया गया। जिसके बाद शाहजहां ने अपने पौत्र सुलेमानशिकोह के साथ में संयुक्त रूप से मिर्जा को कंधार की सूबेदारी दे दी थी.

मिर्जा राजा जय सिंह और मुग़ल उत्तराधिकार का युद्ध

जब 1657-58 ई. में मुग़ल सत्ता के उत्तराधिकार को लेकर मतभेद शुरु हुए थे. तब शाहजहां ने मिर्जा जय सिंह को 1658 ई. में अपने पुत्र शुजा के विरुद्ध भेजा था। क्योंकि मुगल बादशाह शाहजहां चाहते थे कि मुगलों का ताज उनका ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह संभाले।जिसके बाद युद्ध हुआ।जिसमें जय सिंह के नेतृत्व बहादुरपुर के युद्ध में शुजा को पराजित किया। जिससे शाहंजहां खुश हुए और मिर्जा का मनसब बढ़ा के 6000 कर दिया।

धरमत का युद्ध

शाहजहां के बाद अगला मुग़ल बादशाह कौन बनेगा इसको लेकर उनके 2 पुत्र दारा शिकोह और औरंगज़ेब के मध्य गहरा विवाद था।जिसके चलते दोनों में 15 अप्रैल 1658 को धरमत के मैदान में युद्ध हुआ। शाहजहां का इस युद्ध में जय सिंह से निवेदन करने पर उन्होने दारा शिकोह के पक्ष से मुग़ल सेना का नेतृत्व की नींव संभाली.

लेकिन इस युद्ध में औरंगज़ेब की जीत से यह हो गया कि औरग़ज़ेब में ही अगला मुग़ल शासक बनने की काबिलियत है। औरंगज़ेब के अगला मुग़ल शासक को देखते हुए 25 जून 1658 ई. को मथुरा में मिर्जा राजा जय सिंह ने औरंगज़ेब से मुलाकात की तथा अपना पूर्ण सहयोग औरंगज़ेब को देने का वचन देकर उसके पक्ष में शामिल हो गया.

और पढ़े: नंद वंश का इतिहास, राजा और महत्वपूर्ण तथ्य

दौराई/ देवराई का युद्ध

औरंगज़ेब व दारा शिकोह के बीच मुग़ल सत्ता को हासिल करने के लिए दूसरा व अंतिम युद्ध मार्च 1659 को दौराई की मैदान में हुआ। अपने वचन के अनुसार मिर्ज़ा राजा जय सिंह ने औरंगज़ेब के पक्ष से युद्ध लड़ा तथा हरावल दस्ते का नेतृत्व किया।जिसमें औरग़ज़ेब विजयी हुआ और अगला मुग़ल बादशाह बना।
औरंगज़ेब काल और मिर्जा राजा जय सिंह

जब औरंगज़ेब शासक बना था तो उस समय दक्षिण में मराठे महाराज वीर शिवजी के नेतृत्व में अधिक शक्तिशाली होते जा रहे थे।जो मुग़ल सत्ता को चुनौती दे रहे थे. जिसके चलते 1665 ई. में औरंगज़ेब ने मिर्ज़ा जय सिंह को 1 लाख 40 हजार मुग़ल सेना को लेकर महाराज शिवजी से युद्ध करने के लिए भेजा। मिर्जा जय सिंह ने पुरन्धर के किले को घेर लिया तथा अपनी सैन्य कुशलता का परिचय देते हुए उन्हें मुगलों से संधि करने पर बाध्य किया.

11 जून 1665 ई. को महाराज शिवजी और जय सिंह के बीच एक संधि हुई जिसे पुरन्धर की संधि की नाम से जाना जाता है. जिससे खुश होकर औरंगज़ेब से उनके पद को बड़ा दिया और उन्हें आगे बीजापुर अभियान पर भेज दिया.

लेकिन इस अभियान में जय सिंह सफल नहीं हो पाए। उनकी असफलता के कारण औरंगजेब काफी नाराज हुआ और जय सिंह को वापस बुला लिया. वहीं महाराज शिवजी का इनके पुत्र राम सिंह प्रथम की हवेली में मुग़ल कैद से भाग निकले। जिसके बाद मिर्जा राजा जय सिंह और औरंगजेब के बीच उतने अच्छे सम्बन्ध नहीं रह गए थे.

मृत्यु

28 अगस्त 1667 ई. को औरंगज़ेब के कहने पर जय सिंह के ही विश्वासपात्र सामंतो ने इनकी वापसी में बुरहानपुरॉ में जहर देकर इन्की हत्या कर दी थी. यहीं बुरहानपुर में मिर्ज़ा राजा जय सिंह की 38 खम्बों कि छतरी मौजूद है. इनकी मृत्यु की पश्चात् इनके ज्येष्ठ पुत्र राम सिंह प्रथम (1667 -1682 ) व उनके बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र बिशन सिंह( 1682 -1700) आमेर के राजा बनते है। जिनके पुत्र सवाई जय सिंह/ जय सिंह द्वितीय (1700-1743) हुए.

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वंदे मातरम्” के 150 वर्ष: बंकिमचंद्र की वेदना से जनमा गीत, जिसने भारत को जगाया और मोदी युग में पुनः जीवित हुआ आत्मगौरव
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वंदे मातरम् के 150 वर्ष: बंकिमचंद्र की वेदना से जनमा गीत, जिसने भारत को जगाया और मोदी युग में पुनः जीवित हुआ आत्मगौरव

7 November 2025

भारत के इतिहास में कुछ क्षण ऐसे आते हैं जब एक गीत, एक पंक्ति, या एक विचार समूचे राष्ट्र की आत्मा बन जाता है। वंदे...

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