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Dear Channi, यूपी-बिहार के बारे में कुछ भी बोलने से पहले सिख धर्म के बारे में थोड़ी जानकारी हासिल कर लें

पंजाब से बाहर फैली हुई हैं सिख धर्म की जड़ें!

Shikhar Srivastava द्वारा Shikhar Srivastava
19 February 2022
in ज्ञान
Channi

Source- Google

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16 फरवरी को पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने अपने प्रचार अभियान के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की मौजूदगी में उत्तर प्रदेश-बिहार के लोगों को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की। चन्नी के बयान पर उनके बगल में खड़ी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ताली बजा रही थी। इस क्षेत्र के लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार न केवल चन्नी के तुच्छ प्रवृत्ति को दिखाता है, बल्कि सिख पंथ के बारे में उनकी सीमित जानकारी को बताता है। क्योंकि सिख पंथ के दो सबसे प्रसिद्ध आदर्शपुरुष श्री गुरु गोविंद सिंह जी और संत रविदास जी का जन्म क्रमशः पटना और वाराणसी में हुआ था। इसके अतिरिक्त भी सिख पंथ के कई पवित्र स्थल, महत्वपूर्ण व्यक्ति एवं ऐतिहासिक घटनाएं पंजाब की सीमा के बाहर घटित हुई है। ऐसे में सिख पंथ को पंजाब की सीमा तक बांधना या उस आधार पर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों से भेदभाव करना न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से गलत है, बल्कि कांग्रेस की विभाजनकारी मानसिकता को दर्शाता है।

और पढ़ें: चन्नी ने पंजाब में यूपी और बिहार के लोगों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की और प्रियंका ने इसे मंजूरी भी दे दी

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चन्नी की क्षुद्र राजनीति!

यह सत्य है कि सिख पंथ के अनुयाई मूलतः पंजाब तथा आसपास के क्षेत्र में अधिक संख्या में देखने को मिलते हैं। इसके ऐतिहासिक कारण हैं। सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म ननकाना साहिब में हुआ था, जो वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब में है, इस कारण सिख पंथ का विस्तार सबसे पहले इसी क्षेत्र में हुआ। सिखों के प्रथम सुदृढ़ साम्राज्य की स्थापना करने वाले महाराजा रणजीत सिंह का कार्यक्षेत्र भी पंजाब एवं  उसके आसपास का क्षेत्र था। किंतु विभाजन के बाद पंजाब के दो टुकड़े हुए और पाकिस्तानी क्षेत्र से सिखों और हिंदुओं का बड़ी संख्या में पलायन हुआ। इसलिए भारतीय पंजाब क्षेत्र में सिखों की बड़ी संख्या मिलती है। किंतु इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि सिख पंथ को केवल इस छोटे से क्षेत्र से जोड़ा जाना चाहिए और अन्य लोगों को बाहरी घोषित कर देना चाहिए।

यदि पंजाब में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को चन्नी पंसद नहीं करते, तो उन्हें गुरु गोविंद सिंह और संत रविदास की स्मृतियों को सिख पंथ से समाप्त करना होगा! यह कार्य उनकी क्षमता और कल्पना के परे है। अपनी छोटी मानसिकता और क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के कारण चन्नी उत्तर भारतीयों के विरोध में टिप्पणी कर सकते हैं, लेकिन उन्हें यह भी समझना चाहिए कि हर साल रविदास जयंती पर लाखों सिख वाराणसी आते हैं, ऐसे में उत्तर भारतीयों के साथ पंजाब में होने वाले भेदभाव पूर्ण व्यवहार का स्वाभाविक असर वाराणसी के लोगों की मानसिकता पर न पड़ जाए। हालांकि, उत्तर भारतीयों के संदर्भ में छोटी मानसिकता की बात नहीं कही जा सकती, क्योंकि यह क्षेत्र अपने क्षेत्रवाद से अधिक राष्ट्रवाद को महत्वपूर्ण समझता है।

और पढ़ें: उत्तम प्रदेश में स्वागत है – जहां पांचवां अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट आने वाला है

चन्नी की विकृत मानसिकता

जब चन्नी दिल्ली के लोगों को भगाने की बात करते हैं, तो वह भूल जाते हैं कि दिल्ली में ही सिखों के नौवे गुरु तेग बहादुर वीरगति को प्राप्त हुए थे। गुरु तेग बहादुर औरंगजेब से कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार रोकने की बात करने मुगल दरबार गए थे, जहां पर उनके तीन शिष्यों, भाई सती दास, भाई मती दास और भाई दयाल के साथ उन्हें औरंगजेब द्वारा मृत्युदंड दिया गया था। गुरुद्वारा सीस गंज साहिब और गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह की मृत्यु और अंतिम संस्कार से जुड़ा है। चन्नी उसे भी दिल्ली का होने के कारण हेय दृष्टि से देखेंगे?

ग्वालियर स्थित दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा सिख पंथ के लिए पवित्र स्थान है, क्योंकि यहां सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह को जहांगीर द्वारा कैद में रखा गया था। जब गुरु हरगोविंद सिंह ग्वालियर के किले से मुक्त किए गए थे, तो उन्होंने अपने साथ 52 राजाओं को मुक्त कराया था और उसी की याद में यह गुरुद्वारा स्थापित किया गया था। चन्नी को इसे भी अपवित्र घोषित कर देना, चाहिए क्योंकि यह भी “भैया लोगों” के क्षेत्र में पड़ता है!

वस्तुतः सिखों को हिंदुओं से और पंजाब को भारत से अलग देखने की मानसिकता ऐतिहासिक दृष्टिकोण से गलत है। जब पठानों ने पंजाब पर आक्रमण किया था और अमृतसर स्थित हरमिंदर सिंह साहब गुरुद्वारे अर्थात् स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर हरा झंडा फहराया था, तो मराठा सेना ने अमृतसर को मुक्त कराया था।

और पढ़ें: पंजाबी हिन्दू अल्पसंख्यकों की घोर दुर्दशा: एक ऐसा समुदाय जिनके दर्द को कोई नहीं सुनना चाहता

चन्नी को नहीं है इतिहास का ज्ञान

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गुरु गोविंद सिंह के पंजप्यारों में चार पंजाब के नहीं थे। भाई हिम्मत सिंह पूरी, उड़ीसा में पैदा हुए थे, भाई मोखम सिंह बेट द्वारिका में, भाई साहिब सिंह कर्नाटक और भाई धरम सिंह के परिवार को मेरठ के हस्तिनापुर से जोड़ा जाता है। गुरु गोविंद सिंह के सबसे प्रिय शिष्यों में एक बंदा बहादुर, जम्मू कश्मीर के पुंछ में पैदा हुए थे। आज भी पंजाब के हर गांव और शहर की समृद्धि में उत्तर भारतीयों का योगदान है। चन्नी के बयान पर टिप्पणी करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि “अपने इन बयानों से ये लोग किसका अपमान कर रहे हैं। यहां का कोई ऐसा गांव नहीं होगा, जहां हमारे उत्तर प्रदेश या बिहार के भाई बहन यहां पर मेहनत न करते हों।”

पंजाब और सिख पंत को उसकी भारतीयता से अलग नहीं किया जा सकता। रही बात उत्तर प्रदेश और बिहार की, तो यह सत्य है कि यहां के लोग दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। किंतु किसी भी राज्य में आपराधिक गतिविधियों में उत्तर भारतीयों का नाम नहीं आता। भारत एक स्वतंत्र देश है और हर नागरिक को किसी भी राज्य में जाकर आजीविका कमाने का अधिकार है। ऐसे में चन्नी की बात न केवल उनके इतिहास की कम जानकारी को दर्शाती है, बल्कि संविधान की कम समझ को भी प्रदर्शित करती है!

Tags: चरणजीत सिंह चन्नीपंजाब चुनावसिख समुदाय
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