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Frustrated Review: ‘दीवार’ का महालेट और अत्यंत सटीक रिव्यु

'दीवार' मास्टरपीस के नाम पर देश को उल्लू बनाती है!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
8 February 2022
in चलचित्र
दीवार
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सत्तर के दशक के दौरान भारतीय फिल्म जगत में कई ऐसी फिल्में आईं, जिन्होंने लोगों को मनोरंजित करने के साथ-साथ एक दमदार कहानी और एक्शन से भी परिचित कराया। आज से ठीक 47 वर्ष पहले 24 जनवरी 1975 को फिल्म दीवार रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म का निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था जबकि फिल्म की पटकथा सलीम जावेद ने लिखी। एंग्री यंग मैन के तौर पर किरदार निभा रहे अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की जोड़ी के कारण ही इस फिल्म ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वहीं, इस फिल्म को सत्तर के दशक की मास्टरपीस कहा जाता है किंतु आज हम आपको बताएंगे कि कैसे यश चोपड़ा की ‘दीवार’ ने मास्टरपीस के नाम पर कई वर्षों तक पूरे देश को उल्लू बनाने काम किया?

और पढ़ें: Movie Review: “83” में दिखा रणवीर सिंह का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन

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फिल्म दीवार में मास्टरपीस जैसा कुछ भी नहीं है!

फिल्म ‘दीवार’ की कथा प्रारंभ होती है, एक फैक्ट्री से, जहां मालिक है तो बेईमान ही होगा और ट्रेड यूनियन का अध्यक्ष है, तो ईमानदार ही होगा। लेकिन ईमानदार यूनियन लीडर कब तक टिकेगा? हुआ वही जो बॉलीवुड के अघोषित संविधान में 1931 से लिख दिया गया है– बेईमान मालिक के आगे ईमानदार लीडर कहां टिकेगा? परिणाम–कर्मठ यूनियन अध्यक्ष अपदस्थ हो जाता है एवं जल्द ही गायब हो जाता है। फिर वही दुःख भरी कथा मां दर-दर की ठोकरें खाती हैं और बेटे बस किसी तरह गरीबी से बाहर निकलना चाहते हैं। बड़े बेटे विजय के हाथ में तो ये भी गुदवा दिया जाता है, ‘मेरा बाप चोर है!’

वर्षों बाद 70 के दशक में अति भावुक मां बनी प्रसिद्ध अभिनेत्री निरूपा रॉय एक बेसहारा मजदूर हैं, जो बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाती हैं। क्लाइमेक्स में उनकी छवि मदर इंडिया की लीजेंडरी नरगिस की भूमिका से मेल खाती प्रतीत होती है। वहीं, छोटू विजय बड़ा होकर अमिताभ बच्चन बनता है और मुंबई बंदरगाह पर मजदूरी कर पैसे कमाता है।

लेकिन वहां पर भी हफ्ता वसूली जारी रहती है, किंतु कुछ समय बाद विजय के अन्दर का हीरो जाग जाता है और वह सब को बुरी तरह से कूट कर वहां से बाहर निकल जाता है। दूसरी ओर उसका छोटा भाई रवि है अर्थात शशि कपूर, जो पढ़ाई करके कुछ बनना चाहता है परंतु उसको उचित अवसर नहीं मिलता। फिर अपने मित्र के पिता के सुझाव पर छोटा भाई रवि पुलिस में भर्ती हो जाता है और सब इंस्पेक्टर बन जाता है, जबकि विजय बनता है वर्ल्ड क्लास स्मगलर। लिहाजा, वर्ष 1975 में रिलीज़ हुई अन्य फिल्मों के मुकाबले इस फिल्म में मास्टरपीस जैसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है।

फिल्म में तार्किकता और शिष्टाचार का चीरफाड़ 

इतना ही नहीं इस मूवी में लॉजिक और शिष्टाचार का ऐसा चीरफाड़ किया गया है कि आप बार-बार अपना सर वास्तविक दीवार में फोड़ने को विवश हो जायेंगे। उदाहरण के लिए विजय को जब उसकी मां मंदिर चलने के लिए बोलती है, तब वह स्पष्ट रूप से मना कर देता है। वहीं, एक मासूम कहता है कि वह भगवान में विश्वास नहीं रखता, जो भी करता है अपने दम पर करता है। लेकिन वो 786 का बिल्ला (लॉकेट) बड़े प्रेम और बिना किसी समस्या के साथ पहनता है और उसके लिए वह किसी लकी चार्म से कम नहीं होता। भाईसाब को हिन्दू देवताओं पर आस्था नहीं किंतु 786 पर पूरा विश्वास है और वह भगवान शिव के पास तभी जाते हैं, जब उनकी मां बहुत बीमार होती हैं।

हालांकि, इस फ़िल्म के अंतिम दृश्य में कुछ ऐसा देखने को मिलता है, जिसका पूरे फिल्म में एकमात्र विरोध किया जा रहा था। दरअसल, इस दृश्य में दिखाया गया है कि विजय जो जीवन में कभी मंदिर नहीं गया था, उसे जब गोली लगती है तब वो दौड़ाता हुआ मंदिर पहुंचता है, जहां उसकी मां इंतज़ार कर रही होती है। विजय मंदिर इसलिए जाता है क्योंकि अपराध की दुनिया छोड़ने और आत्मसमर्पण करने से पहले उसने अपनी मां से मिलने का वादा कर रखा था।

दीवार देखने के बाद हमारा कुछ ऐसा हुआ हाल

वहीं, शशि कपूर यानी रवि को भी कम मत समझिए। आदर्शवादी होना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन जितने आदर्शवादी रवि थे, उसका तो कोई तोड़ नहीं होगा। जब Climax की बारी आती है, तो रवि महोदय बड़े ही दारुण ध्वनि में कहते हैं, “थम जा मेरे भाई, थम जा!” वहीं, इस मूवी का अंत भी किसी यातना से कम नहीं था, जहां विजय भाई को गोली लगी और भाईसाहब कई कदम दूर जाकर अपनी मां से क्षमा मांगकर परलोक सिधारे। सच मानिए, अगर कमाल आर. खान ने इस दृश्य से कुछ सीख न ली होती तो हमें वह ऑस्कर लेवल एक्टिंग कभी ‘देशद्रोही’ में देखने को भी न मिलती।

और पढ़ें: Frustrated Review: ‘दिल धड़कने दो’ का एक बहुत देर लेकिन सटीक विश्लेषण

कुल मिलाकर दीवार को भारत की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। वर्ष 1975 में सवर्श्रेष्ठ फिल्म के सम्मान के साथ दीवार ने कुल छह फिल्मफेयर अवार्ड अपने नाम किए हैं। कहते हैं इसे एक बार देख लिया, तो ज़िन्दगी बदल जायेगी परन्तु दीवार देखने के बाद तो हमारा कुछ ऐसा ही हाल हुआ है।

Tags: अमिताभ बच्चनदीवारशशि कपूर
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“उदयपुर फाइल्स” को हरी झंडी, कन्हैया लाल के बेटे का सवाल: “मेरे पापा को इंसाफ कब मिलेगा?”

26 July 2025

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8 July 2025

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