पंजाब में आने वाले कुछ ही समय में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राजनीतिक पार्टियां जोर-शोर से अपनी तैयारियों में लगी हुई है। पंजाब विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा अलग-अलग गठबंधन के साथ किस्मत आजमा रहे हैं। करीब 25 साल तक एनडीए का हिस्सा रहे शिरोमणि अकाली दल ने तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ा था। लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद भी अकाली दल और भाजपा के साथ आने की संभावना नहीं के बराबर है। भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अकाली दल के साथ चुनाव के बाद भी गठबंधन नहीं करेगी।
केंद्रीय मंत्री ने दिए स्पष्ट संकेत
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बीते शनिवार को भाजपा और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बीच चुनाव बाद गठबंधन की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, शिअद ने भाजपा को पंजाब में अपना आधार बढ़ाने नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अकालियों ने भाजपा से किसी सिख नेता को भी उभरने नहीं दिया। पुरी ने कहा, “हमें खुशी है कि हमने इससे छुटकारा पा लिया। SAD के साथ फिर से गठबंधन की थोड़ी सी भी संभावना नहीं है। यह गठबंधन हमें महंगा पड़ा।”
राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस पार्टी की ओर से चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम फेस घोषित करने से एक दिन पहले केंद्रीय मंत्री ने यह बात कही थी। उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी को निशाने पर लेते हुए कहा था कि एक पाकिस्तान से पंजाब में ड्रग्स भेजने वालों के साथ “झप्पी राजनीति” करने में व्यस्त है, तो दूसरा देश के पीएम की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहने के बाद भी शीर्ष पद पर दावा पेश कर रहा है। उन्होंने कहा, “पीएम यहां आपको कुछ देने आए थे। अगर आप किसी पीएम को आने नहीं देंगे, तो यह आपके बारे में बहुत कुछ कहता है… आपको सीएम पद पर दावा करने का कोई अधिकार नहीं है।”
ध्यान देने वाली बात है कि पीएम नरेंद्र मोदी के काफिले वाले घटना के बाद पंजाब में कई जगह ED की छापेमारी हुई, जिसे लेकर भाजपा को निशाने पर लिया जा रहा था। चन्नी के भतीजे पर भी ईडी का डंडा चला! इस पर हरदीप सिंह पूरी ने कहा, “अगर चुनाव होते हैं तो क्या इसका मतलब यह है कि गलत कामों की अनुमति दी जाएगी और कोई जांच नहीं होगी?” उन्होंने कहा, भाजपा बदले की राजनीति में यकीन नहीं करती है।
और पढ़ें: SAD से आम जनता की नफरत, AAP का बिखराव और कांग्रेस की आंतरिक कलह, भाजपा पंजाब में बाजी मारने वाली है
शिरोमणि अकाली दल पर बोला था हमला
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने पिछले महीने भी कहा था कि शिरोमणि अकाली दल के बिना भाजपा, विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब में “अधिक शक्तिशाली” है। उन्होंने कहा, “117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में, भाजपा ने कभी भी 20-23 से अधिक सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा। यहां तक कि शहरी क्षेत्रों में भी, कभी-कभी भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया क्योंकि SAD के साथ उसके गठबंधन ने कई कारणों से आशंकाओं और अविश्वास को जन्म दिया है।”
गौरतलब है कि जब वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने पंजाब में सरकार बनाई थी, तो भाजपा ने शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन में लड़ाई लड़ी। हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र द्वारा पारित कृषि कानूनों को लेकर वर्ष 2020 में यह साझेदारी टूट गई। उस समय हरदीप सिंह पूरी ने कहा था कि “हमारे राजनीतिक जीवन में सबसे अच्छा दिन था, जब SAD को राजनीतिक गठबंधन से बाहर कर दिया। कभी-कभी, एक खराब गंठजोड़ में, आप उम्मीद करते हैं कि दूसरा पक्ष पहले बाहर निकल जाए।”
उन्होंने कहा था कि “शिअद पंजाब में अकेली सिख पार्टी नहीं है। भाजपा सिख पार्टी क्यों नहीं हो सकती? मुझे सच में विश्वास है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा सिख हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी बन सकती है।” यह पूछे जाने पर कि क्या हिंदुत्व पर ध्यान केंद्रित करने वाली भाजपा वास्तव में सिखों का प्रतिनिधित्व कर सकती है, हरदीप पुरी ने हिंदू धर्म और सिख धर्म के बीच संबंधों पर जोर दिया था।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “यदि आप दोनों तरफ के पागलपन को दूर करते हैं, तो हिंदुओं और सिखों के बीच पूर्ण संगतता है। मैं एक गर्वित सिख हूं, जिसने खुशी-खुशी किसी ऐसी महिला से शादी की, जो सिख धर्म में पैदा नहीं हुआ था। सिख धर्म दुनिया के सबसे खूबसूरत धर्मों में से एक है और मुख्यधारा की भाजपा कट्टर सिख हितों का प्रतिनिधित्व कर सकती है। कुछ सहमत नहीं हो सकते हैं, मुझे उनके साथ इस पर चर्चा करने में खुशी हो रही है।”
भाजपा के पास पंजाब में फ्रंटफुट पर खेलने का मौका
TFI ने पहले भी बताया था कि अकाली दल के साथ संबंध कायम रख कर भाजपा को असफलता के सिवा और कुछ नहीं मिला है। जैसे आंध्र प्रदेश में तेलुगू देसम पार्टी के साथ गठबंधन करना भाजपा के लिए अभिशाप से कम नहीं था, वैसे ही पंजाब में वही भूमिका शिरोमणि अकाली दल निभा रही थी। ऐसे में शिरोमणि अकाली दल के एनडीए छोड़ने से भाजपा को एक बोझ से ही मुक्त मिली है। वास्तव में शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए छोड़कर कोई एहसान नहीं किया है, बल्कि भाजपा को ही पंजाब में खुलकर खेलने का अवसर दिया है। यह बात कांग्रेस पार्टी भी भलि-भांति जानती है। तभी उसने आश्चर्यजनक रूप से शिरोमणि अकाली दल का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया है।
बताते चलें कि शिरोमणि अकाली दल कोई दूध की धुली नहीं है। यदि पंजाब की दुर्गति में कांग्रेस पार्टी ने एक अहम भूमिका निभाई है, तो शिरोमणि अकाली दल भी उससे पीछे नहीं रही है। ड्रग्स मामले में भी SAD का कनेक्शन सामने आ चुका है, कई मामलों में ये पार्टी पंजाब की जनता की उम्मीदों पर विफल साबित हुई है। किसान आंदोलन के पीछे भी SAD समेत विपक्षी पार्टियों का हाथ बताया गया था! क्योंकि अकाली दल के ज्यादातर नेता बिचौलिए और आढ़ती हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों से परेशानी हो रही थी!
अकाली दल ने पंजाब की दुर्गति करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी, जिस कारण भाजपा के लिए यहां अपनी पकड़ को मजबूत करना नामुमकिन सा हो गया था। चूंकि अकाली दल भाजपा की सहयोगी पार्टी थी, उसे भी पंजाब की जनता का आक्रोश झेलना पड़ रहा था। यही कारण था कि वर्ष 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में NDA को बुरी हार का सामना करना पड़ा और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी NDA को केवल 4 सीटें ही मिली थी। SAD के साथ गठबंधन पर एक ही बात कही जा सकती है और वह यह है कि जब आपके दोस्त SAD के रूप में हो, तो आपको दुश्मनों की आवश्यकता नहीं है!
और पढ़ें: “अच्छा हुआ खुद छोड़ दिया साथ” SAD का NDA से बाहर जाना पंजाब में भाजपा की पकड़ मजबूत कर सकता है