राष्ट्रपति का चुनाव एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में होने वाली सबसे बड़ी चुनावी घटना है। राष्ट्रपति का पद राष्ट्र की संवैधानिक संस्कृति को वैधानिकता प्रदान करता है। राष्ट्रपति देश का राष्ट्राध्यक्ष होता है, राष्ट्रपति किसी दल का नहीं बल्कि देश का होता है, यह देश का सबसे प्रतिष्ठित और सर्वोच्च संवैधानिक पद होता है। सरकार अपने सारे कार्यों, नियमों और निर्णयों की वैधानिकता और प्रामाणिकता राष्ट्रपति से प्राप्त करता है। अतः सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार राष्ट्रपति का पद किसी भी परिस्थिति में रिक्त नहीं रह सकता और इसका चुनाव किसी भी कारणवश टाला नहीं जा सकता।
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को भारत के अगले राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जुलाई में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और इसी के साथ उनके उत्तराधिकारी को चुनने की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है।
इस लेख के द्वारा हम उन 6 नाम के बारे में जानेंगे जो रामनाथ कोविन्द के बाद भारत के अगले राष्ट्रपति हो सकते हैं। हम आपको उन सामाजिक और राजनीतिक कारणों से भी अवगत कराएंगे जो इन्हें राष्ट्रपति की दौड़ में सबसे आगे करती है।
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भाजपा और उसकी गठबंधन की सरकार 17 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में है जो देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा है। राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल के पास कुल 10,98,903 मत हैं। जम्मू और कश्मीर विधानसभा, जिसका वोट मूल्य 6,264 है, निलंबित है। अतः बहुमत का आंकड़ा घटकर 5,52,583 वोट रह गया है। भाजपा के पास 465,797 वोट हैं और उसके गठबंधन सहयोगी के पास 71,329 मत हैं। अगर इस राजनीतिक समीकरण को देखें तो यह जीत के कुल 537,126 वोटों से 9,194 वोट कम है। ऐसे में, भाजपा अभी से 6 संभावित उम्मीदवारों के चयन पर विचार करना शुरू कर सकती है जो भगवा पार्टी का ध्वज थामे देश के राष्ट्राध्यक्ष बन सकते हैं।
थावर चंद गहलोत
इस दौड़ में कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत का नाम सबसे आगे चल रहा हैं। राज्यपाल के रूप में चुने जाने से पहले, गहलोत भाजपा का एक अनुभवी दलित चेहरा और राज्यसभा में पार्टी के नेता थे। वे आरएसएस के खेमे से आते हैं। अतः, उनके राष्ट्रपति बनने से ना सिर्फ आगामी विधानसभा में भाजपा मजबूत होगी बल्कि दलितों के बीच संघ का भी व्यापक जनाधार बढ़ेगा। ऊपर से कोविन्द के बाद गहलोत को चुनने से भाजपा दलित राजनीति की पुरोधा बन जाएगी।
आरिफ मोहम्मद खान
अगला चेहरा मुस्लिम है। जी हां, राजनीतिक पंडितों का अनुमान है की भाजपा आरिफ मोहम्मद खान पर दांव लगा सकती है। खान केरल के राज्यपाल हैं और अपने उदार विचारों के लिए जाने जाते हैं। हो सकता है की विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव को भी सांप्रदायिक रंग दे दे। ऐसे में ध्रुवीकरण को शांत करते हुए मुस्लिम समुदाय को विकास के पथ पर अग्रसर करने में खान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आपको बता दें कि ये वही आरिफ मोहम्मद हैं जिन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण और शाहबानों के मुद्दे पर राजीव सरकार से नाता तोड़ दिया था।
मुख्तार अब्बास नक़वी
उपर्युक्त/पूर्वकथनीय सारे योग्यताओं से मुख्तार अब्बास नक़वी भी भरे हुए हैं। पर, इसके साथ साथ उन्हें भाजपा में काफी समय से काम करने का अनुभव भी है। वो पार्टी, संगठन और सरकार तीनों में अपनी भूमिका का निर्वहन कर चुके हैं। इतना ही नहीं वो मोदी सरकार में अभी अल्पसंख्यक मंत्रालय का कार्यभार देख रहे हैं। अतः, इसमें कोई आश्चर्य नहीं अगर भगवा पार्टी फिर से कलाम जैसा कार्ड खेलते हुए किसी अल्पसंखयक को राष्ट्रपति बना दे।
द्रौपदी मुर्मू
द्रौपदी मुर्मू दो दशक पहले ओडिशा सरकार में मंत्री थीं और राज्य के आदिवासी जिले मयूरभंज से आती हैं। वे दो मानदंडों को पूरा करती हैं जो उन्हें इस पद का सबसे प्रबल उम्मीदवार बनाते हैं, वो हैं : ‘आदिवासी’ और ‘महिला’। आदिवासी समुदाय देश की आबादी का लगभग 9 प्रतिशत हिस्सा हैं और पीएम मोदी उनके सामाजिक एकीकरण के लिए अन्य नीतियों के साथ-साथ प्राकृतिक खेती और कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां लाकर उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए केंद्रित प्रयास कर रहे हैं। आरएसएस भी उन क्षेत्रों में ईसाई समूहों के प्रवेश और समुदायों के पुनर्वास के बारे में चिंतित है जहां माओवाद का प्रभाव कम हो रहा है। इनके चयन से भाजपा के महिला सशक्तिकरण का नारा भी मजबूत होगा।
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वेंकैया नायडू
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू भाजपा के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। हालांकि, वे कभी भी लोकसभा के लिए निर्वाचित नहीं हुए और राजनीतिक रूप से चतुर और हवाओं को पकड़ने में तेज रहे हैं। कभी लालकृष्ण आडवाणी के सबसे करीबी लोगों में से एक रहे वेंकैया नायडू ने मई 2014 में मोदी सरकार के पहले संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में उभरे। मोदी खेमे में सहज रहते हुए उन्होंने पार्टी आलाकमान से अपने रिश्ते भी प्रगाढ़ किए हैं। वे आरएसएस से भी जुड़े रहे हैं तथा दक्षिण भारत में मौजूद भाजपा के कुछ चर्चित चेहरों में से एक रहे हैं। भाजपा में चर्चा है कि उनकी वरिष्ठता और वफादारी को पुरस्कृत किया जाएगा।
गोपाल नारायण
इस सूची में अगला नाम गोपाल नारायण का आता है। गोपाल नारायण सिंह भारतीय जनता पार्टी से काफी लंबे समय से जुड़े हैं। जून 2016 में, वह राज्यसभा द्विवार्षिक चुनाव के लिए उम्मीदवार थे। इस सीट को जितना भाजपा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था और अंततः उन्हें 3 जून 2016 को निर्विरोध चुना गया। इसके बाद उन्हें बिहार भाजपा का अध्यक्ष भी बनाया गया। नीतीश कुमार के पतन के बाद से भाजपा बिहार में बड़े भाई की भूमिका में है और अब वो नीतीश कुमार के बैशाखी के बिना सरकार बनाने को व्याकुल है। राष्ट्रपति के लिए इनकी उम्मीदवारी बिहार में भाजपा को अजेय बना देगी।
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सुरेश प्रभु
सुरेश प्रभाकर प्रभु वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार में भारत के पूर्व वाणिज्य मंत्री रह चुके हैं। वो पेशे से सनदी लेखाकार हैं और भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान के सदस्य हैं। वर्ष 1996 से वो लगातार शिवसेना के उम्मीदवार के रूप में महाराष्ट्र के राजपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए चुने गये। 9 नवम्बर 2014 को वो शिवसेना छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये। वर्तमान में वो भारतीय संसद में आंध्रप्रदेश से उच्च सदन को निरूपित करते हैं। इनकी प्रशासनिक क्षमता अद्भुत है और इनका चयन शिवसेना को भी बेनकाब कर देगा जो हमेशा से भाजपा पर सीएम पद के लिए गठबंधन तोड़ने का आरोप लगती रहती है। इनका चयन ना सिर्फ दक्षिण में बल्कि महाराष्ट्र में भी भाजपा के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करेगा।
इतना तो तय है की इस बार का राष्ट्रपति चुनाव रोचक होगा। कई प्रकार के राजनीतिक, जातीय और सामाजिक समीकरणों का ध्यान रखा जाएगा। जो भी हो, जैसा भी हो इतना तो तय है कि इस बार का चुनाव ना सिर्फ भाजपा की राजनीतिक जमीन को मजबूत करेगा बल्कि देश को एक योग्य राष्ट्रपति को देने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।