कोई कितना गलत है उसका तय मापदंड तो ईश्वर से बेहतर कोई नहीं जानता पर कई बार जमीन पर ऐसी स्थिति आ जाती है जहां यह दर्शाना बेहद आवश्यक हो जाता है कि “कौन कितना सही और कौन कितना गलत है।” नूपुर शर्मा घटनाक्रम से सभी परिचित हैं, क्या कहा, क्यों कहा, किस संदर्भ में कहा, ये सभी प्रश्न विचारणीय है पर सत्य तो यह है कि क्या नूपुर को भाजपा से निलंबित कर दिया जाना उनकी हार को प्रतिबिंबित कर रहा है। वास्तव में नूपुर शर्मा घटनाक्रम में किसकी विजय हुई यह समझना आवश्यक है।
सब सोच से बिल्कुल उलट हुआ
दरअसल, पैगंबर मोहम्मद के प्रति अपने वक्तव्य के लिए पार्टी से निलंबित की गईं नूपुर शर्मा को जिस दिन से पार्टी से निलंबित किया गया उसके बाद नूपुर का अपने बयान से किसी को आहात करना उद्देश्य नहीं था ऐसा पत्र भी ट्विटर के माध्यम से डाला गया था पर जितना बवाल नूपुर शर्मा द्वारा टीवी डिबेट में दिए गए उस बयान के अगले कई दिनों तक नहीं मचा उतना शोरगुल तो भाजपा से निलंबित होने के बाद एक समूह ने मचा दिया। नूपुर शर्मा को भाजपा से क्या निलंबित किया गया एक समूह को लगा कि अब तो वो अकेली हैं अब तो “गुस्ताख़-ए-रसूल” की वो एक ही सजा देने में कोई दिक्कत ही नहीं आएगी पर हुआ उसके उलट।
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नूपुर शर्मा को बतौर भाजपा प्रवक्ता और पूर्व में भाजपा प्रत्याशी के रूप में जितना समर्थन नहीं मिला होगा उससे कई अधिक तो तब मिला जब उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया। #ISupportNupurSharma जैसे हैशटैग ने प्रचंड रूप से सोशल मीडिया पर ख्याति बना ली। ऐसे में सवाल यही उठता है कि नूपुर शर्मा मामले में किसकी जीत हुई ? इस पर विचार जनता को करना है पर कुछ बिंदुओं को समझना सबके लिए आवश्यक है। टीवी डिबेट के दौरान नूपुर ने जो संदर्भित किया था उसका आधार भी नूपुर शर्मा ने दिया था। ऐसे में ये बात किसी से छुपा नहीं है कि इस पूरे मामले को तूल देकर देश में दंगे भड़काए गए और एक सुनियोजित साजिश रची गई।
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कानपुर में खूब मचाया गया था उपद्रव
कानपुर में 3 जून, शुक्रवार जुमे की नमाज वाले दिन जिस दिन भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद थे उसी दिन नमाज के बाद उन्मादी भीड़ ने कानपुर को छावनी में बदल दिया। रिक्शों और रेहड़ी पर पत्थर और बम आम रूप से सबको दिख रहे थे। इस भीड़ का कहना था कि उनके नबी की शान में गुस्ताखी करने वाली नूपुर शर्मा को वो छोड़ेंगे नहीं। यह वाकया कम नहीं था कि अगले जुमे पर कानपुर सहित अन्य कई शहरों और राज्यों में विरोध के नाम पर दंगा और आगजनी हुई ऐसे में यह तो तय है कि एक टूलकिट ने सारे इकोसिस्टम को बांधकर रखा हुआ है। एक संदेश आता नहीं कि देश को जलाने और किसी का भी “सर तन से जुदा करने के लिए” निकल पड़ते हैं।
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ऐसे में सर्वसाधारण प्रश्न यही है कि क्या वास्तव में यह सब नूपुर शर्मा के कारण हुआ, या एक बयान को ढाल बनाकर देश में बैठे भेदियों ने अपनी कुंठा शासन सत्ता और एक पार्टी विशेष के लिए ऐसे निकाली कि देश को जलाने से भी न चूके। ऐसे में नूपुर शर्मा विवाद में असल में कौन जीता यह पता लगाना अब जनता के हाथ है।
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