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‘चीटिंग करता है तू’, शिंदे के सीएम बनने पर उद्धव का रिरियाना मज़ेदार है

उद्धव ठाकरे से 'बेटर उम्मीद' किए भी नहीं थे!

Utkarsh Upadhyay द्वारा Utkarsh Upadhyay
2 July 2022
in चर्चित, राजनीति
shivsena

SOURCE TFIPOST.in

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अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत! उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं के लिए इस समय इससे उपयुक्त मुहावरा हो ही नहीं सकता है। 2019 में पलटीमार बन महाविकास अघाड़ी का निर्माण कर सरकार बना लेने वाले उद्धव ठाकरे की सरकार अब गिर चुकी है। सरकार तो गिरी ही, हाथ से सदा सधाया मुद्दा भी चला गया। राज्य के नये मुख्यमंत्री शिवसेना के ही बागी एकनाथ शिंदे हो गये हैं।

“चीटिंग करता है तू”

शिंदे के शपथग्रहण के बाद से उद्धव ठाकरे जिस तरह से रोना राग अलाप रहे हैं और जिस तरह से भाजपा भाजपा की रट लगा रहे हैं उससे तो यही जान पड़ता है कि वो सारा रोना धोना छोड़कर बस सिंघम फिल्म का एक ही डायलॉग रिपीट मोड पर बोलते रहें कि “चीटिंग करता है तू”। ऐसा इसलिए क्योंकि अघाड़ी के साथ सरकार बनाने की भूल को अब भी न पचा पाने वाले उद्धव अब सरकार के बाद अपनी पार्टी को बचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं।

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दरअसल, एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही रुष्ट उद्धव ठाकरे कुछ न कुछ बोले जा रहे हैं। इसी बीच 2019 के दिनों को पुनः याद करते हुए उद्धव ठाकरे ने शिवसेना भवन में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मैं पहले ही अमित शाह से कह रहा था कि 2.5 साल शिवसेना का मुख्यमंत्री हो और वही हुआ। पहले ही अगर ऐसा करते तो महाविकास अघाडी (MVA) का जन्म ही नहीं होता। ठाकरे ने भाजपा से यह भी कहा कि वह मुंबई को इस तरह धोखा न दे, जैसे कि उसने उन्हें ‘‘धोखा’’ दिया था। ठाकरे ने कहा कि उन्हें चुनाव से पहले अमित शाह के साथ बातचीत में वादा किया गया था। भाजपा ने यह पहले ही बताया है कि किसी भी मामले में चुनाव में या उससे पहले उसने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया था।

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एकनाथ को शिवसैनिक कहने पर बिलबिलाते हैं उद्धव

उद्धव ठाकरे ने कहा, जिस तरह से ये सरकार बनी है, एक शिवसेना कार्यकर्ता (एकनाथ शिंदे) को सीएम बनाया गया यह बड़ी हास्यास्पद बात है कि कभी उद्धव एकनाथ को शिवसैनिक कहने पर बिलबिला जाते हैं तो कभी खुद ही उन्हें शिवसेना का कहते हुए एकदम चित्त भी मेरी और पट्ट भी मेरी की भांति अपनी बात को सही साबित करना चाहते हैं।

अजीब विडंबना है, 30 साल के गठबंधन से धोखेबाज़ी करने के बाद तिलांजलि देने वाले यही उद्धव ठाकरे अपने पिता की विचारधारा के विपरीत एनसीपी और कांग्रेस के साथ चले गए और अब सारा ठीकरा भाजपा पर फोड़ रहे हैं। उद्धव ठाकरे के लिए सबसे बड़ा दुःख यह नहीं है कि उनकी सरकार चली गयी, असल दुःख तो यह है कि उन्हीं के गुट के एकनाथ शिंदे बगावती हो राज्य के नए मुख्यमंत्री बन गए। अमित शाह पर निशाना साधने से पहले उद्धव ने आत्मचिंतन और मंथन किया होता तो उन्हें ज्ञात होता कि असल पीठ पर खंज़र किसने घोंपा था।

इसके बाद उद्धव ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर एक नए गठबंधन की नींव रखी। तीन दलों को साथ लाकर मुख्यमंत्री का शेहरा उद्धव ठाकरे के सर बंधा। नयी मिलीजुली सरकार में शुरुआत से ही शिवसेना का पारंपरिक आक्रामक हिंदुत्व कमजोर हो रहा था। इसके बाद एकनाथ शिंदे का विद्रोह शुरू हुआ और उन्होंने ठाकरे की सरकार को गिरा दिया। सारी रणनीति भाजपा के साथ मिलकर तय हुई और उद्धव की करनी उन्हीं पर भरी पड़ गई। यह उद्धव की कुंठा थी जो अंत में उन्होंने फिरसे अमित शाह का नाम लेकर बाहर निकाली।

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