जब आपका घनिष्ठ मित्र ही आपका दुश्मन हो जाए तो समझ जाइये कि वो कभी आपका मित्र था ही नहीं। हालिया घटनाक्रमों की बात करें तो पता चलता है कि क्यों आज के समय में मित्र और मित्रता सोच समझ के बनाने चाहिए। एक समय था जब मैत्री को लेकर कई बड़ी-बड़ी मिसालें भारत में दी जाती थीं, पर वर्तमान में मिसाल तो दूर की बात, सच्ची मित्रता ढूंढे नहीं मिलती। मित्र के नाम पर कौन कब शत्रु बन जाए, मन में ज़हर पाल उस ज़हर का निस्तारण अगले व्यक्ति की जान लेकर करने को आतुर हो जाए यह हाल ही में देश की सबसे बड़ी विडंबना के रूप में उभरकर सामने आई है।
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एक पोस्ट और मौत का मंजर
दरअसल, हाल ही में हिंदुओं की हत्याओं ने यह प्रदर्शित किया है कि उनकी हत्याओं में प्रमुख साजिशकर्ताओं में से कोई बाहरी नहीं बल्कि एक मित्र ही रहा है। एक कथित मित्र ने अपने धर्म के सिद्धांत की पूर्ति के लिए अपने मित्र को इसलिए मार दिया क्योंकि वो कारण जिहाद की श्रेणी में आता है और ऐसी सोच वालों के लिए जिहाद सबसे बड़ा धर्म होता है। 21 जून 2022 को, एक रसायनज्ञ और अमरावती (महाराष्ट्र) के निवासी उमेश कोल्हे को उनके इस्लामवादी मित्रों ने नूपुर शर्मा के बयान के समर्थन में एक पोस्ट साझा करने के लिए मार डाला था। उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या के बाद, अमरावती की इस खबर ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं क्योंकि इसका संदर्भ उस मित्रता से था जो निजी जीवन में लोग कर तो लेते हैं पर वास्तव में सामने वाले के मन में कितना विष प्रसारित हो रहा है इसका अनुमान नहीं होता है।
बता दें, उमेश कोल्हे के पुराने दोस्त डॉ. युसूफ खान एक व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन थे, जिसमें कोल्हे ने नूपुर शर्मा के बयान का समर्थन करते हुए एक पोस्ट शेयर किया था। डॉ. युसूफ खान ने इस जानकारी को रहेबरिया नाम के एक अन्य व्हाट्सएप ग्रुप में भेज दी और अपने दोस्त शेख इरफान को भी सूचित किया। इस तरह उन्होंने उमेश कोल्हे के खिलाफ नफरत पैदा की और उमेश कोल्हे की हत्या की पटकथा लिख दी गई।
उमेश कोल्हे के पुराने दोस्त डॉ. युसूफ खान एक व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन थे, जिसमें कोल्हे ने नूपुर शर्मा के बयान का समर्थन करते हुए एक पोस्ट शेयर किया था। डॉ. युसूफ खान ने इस जानकारी को रहेबरिया नाम के एक अन्य व्हाट्सएप ग्रुप के साथ साझा किया और अपने दोस्त शेख इरफान को भी सूचित किया। इस तरह उन्होंने उमेश कोल्हे के खिलाफ नफरत पैदा की और उसे मारने की योजना बनाई। बता दें, इस कृत्य में मौलाना मुदस्सिर अहमद, शाहरुख पठान (25), अब्दुल तौफीक (24), शोएब खान (22) और आतिब राशिद (22) जैसे अन्य जिहादी समूह के उपासक संलिप्त थे। इस हत्या से पूर्व आरोपियों ने सबसे पहले कोल्हे की दिनचर्या की रेकी की और 21 जून की रात उमेश कोल्हे की शोएब खान ने चाकू मारकर हत्या कर दी।
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वर्ग विशेष से दोस्ती करना महंगा पड़ा
इसके बाद एक और हत्याकांड की खबर आई जहाँ इसी वर्ग विशेष की मित्रता एक और निर्दोष पर भारी पड़ गई। इस घटना की बात करें तो इसमें एक दोस्त को उसके समलैंगिक दोस्तों इमरान, शावेज अली और सलमान ने मारने के बाद टुकड़ों में काट दिया। मेरठ के फतेहुल्लापुर इलाके में 26 जून को समलैंगिक मुस्लिम दोस्तों के एक समूह ने 22 वर्षीय हिंदू यश रस्तोगी की हत्या कर दी और उसके शरीर को टुकड़ों में काटकर एक नाले में फेंक दिया। प्राप्त जानकारी के अनुसार पता चलता है कि उसकी हत्या से पहले उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया था।
26 जून की देर रात तक जब एलएलबी यश रस्तोगी घर नहीं आया तो उसके परिजनों ने थाने में अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करायी। जांच के बाद पता चला कि उसके तीन मुस्लिम दोस्तों इमरान, शावेज अली और सलमान ने उसे मिलने के लिए बुलाया था। आरोप है कि यश रस्तोगी के पास तीनों का कुछ अश्लील वीडियो था और वे चाहते थे कि वह इसे डिलीट कर दें। लेकिन जब उसने ऐसा करने से मना किया तो उन्होंने मिलकर उसकी गला दबाकर हत्या कर दी और बाद में उसके शव को काटकर पास के नाले में फेंक दिया।
इन दोनों प्रकरणों से यह सिद्ध होता है कि कैसे एक वैचारिक रूप से लंगड़े हो चुके समाज और जिहादी समूह ने मित्रता की लाज नहीं रखी और सभी सीमाएं लांघ कश्मीर में जिस प्रकार समुदाय विशेष के पडोसी दोहरी मानसिकता का परिचय देते हुए उन्हीं के विरुद्ध उन्हें मारने का षड्यंत्र रच रहे थे, कुछ ऐसा ही अब फिरसे दोहराया जा रहा है। लोग वही हैं, बस समय बदल गया, सोच वही है बस वेश बदल गया है। इसलिए अब सोच समझकर ही मित्रता करने का समय है, आँख मुड़कर विश्वास करना कितना भारी पड़ सकता है वो वर्तमान परिदृश्य साफ़-साफ़ दर्शा रहा है।
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