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अफीम बाजार का निजीकरण न केवल व्यावसायिक रूप से लाभदायक है, बल्कि इसमें और भी बहुत कुछ है

अफीम की खेती के निजीकरण की राह में पहला कदम !

Deeksha Sharma द्वारा Deeksha Sharma
31 July 2022
in कृषि, चर्चित
Afeem

Source- Google

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हाल ही में, केंद्र सरकार ने अफीम की खेती के निजीकरण और नारकोटिक कच्चे माल के निष्कर्षण की दिशा में पहला कदम उठाया है। इसी के चलते बजाज हेल्थकेयर लिमिटेड अफीम प्रसंस्करण क्षेत्र में काम करने के लिए एक विशेष सरकारी अनुबंध प्राप्त करने वाली भारत की पहली कंपनी बन गई है। अभी तक अफीम का व्यापार केवल सरकार ही चलाती थी। लेकिन अब निजी कंपनियों का भी इस व्यापार क्षेत्र में हिस्सा होगा।

भारत में अफीम क्यों?

अफीम तो एक ऐसा ड्रग है। जिसकी लत एक बार किसी को लग जाए तो उसे छुड़ाना मुश्किल हो जाता है। इंसान तो इंसान अगर जानवर को इसकी लत लग जाए तो वह भी इसके पीछे पागल हुआ फिरता है। 2020 में लॉकडाउन के दौरान जब किसान इस इंतजार में बैठे थे कि सरकार का कोई अधिकारी आकर उनसे अफीम खरीद कर लेकर जाएगा तब तोतों के एक झुंड ने उनकी फसल पर हमला बोल दिया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। वे तोते दिन के दिन में 30 से 40 बार आकर उन फसलों पर मंडराते और उन्हें नष्ट कर देते। कारण था कि उन्हें अफीम की लत लग चुकी थी।

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तो फिर भारत में अफीम की खेती क्यों होती है? दरअसल, 1985 के नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम में अफीम पोस्त और इसके कई रूपों को प्रतिबंधित किया गया है। लेकिन गाजीपुर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के नीमच में दो सरकारी कारखाने अभी भी अफीम की खेती का काम करते हैं। एल्कलॉइड निकालने के लिए सालाना लगभग 800 टन अफीम गोंद का प्रसंस्करण करते हैं।

देश के केवल इन चुनिंदा हिस्सों में अफीम की खेती वैध है। हालांकि फसल की व्यसनी प्रकृति को देखते हुए इसकी खेती पर कई नियम लगाए गए हैं। साथ ही भारत सरकार फसल उगाने के लिए लाइसेंस जारी करती है। भारत, अफगानिस्तान और म्यांमार वे देश है जो अफीम उगाते है और कानूनी रूप से अफीम गोंद का उत्पादन करते हैं। कुल मिलाकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में एक लाख से अधिक किसान अभी भी अफीम उगाते हैं।

और पढ़ें: केसर की खेती – बुवाई, कटाई, खाद, पैदावार से जुड़ी जानकारी

अफीम का उपयोग

अफीम का उपयोग मार्फिन, कोडीन और थे वाइन जैसी दवाएं बनाने के लिए भी किया जाता है। मॉर्फिन दुनिया में सबसे प्रसिद्ध दर्द निवारकों में से एक है। ट्रोमा और कैंसर के इलाज के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कफ सिरप में कोडीन का उपयोग किया जाता है। अफीम वास्तव में बहुत उपयोगी है। अफीम के इन उप-उत्पादों में से अधिकांश का या तो घरेलू उपयोग किया जाता है या औषधीय उपयोग के लिए निर्यात किया जाता है। अब तक अफीम की खेती केवल सरकार के नियंत्रण में थी। लाइसेंस प्राप्त किसान नियंत्रित कीमतों पर सरकार को अपनी उपज की खेती और बिक्री करते हैं।

सरकार इसे सरकारी अफीम और एल्कलॉइड कारखानों में संसाधित करती है। और अंत में अर्क (extracts) फार्मा कंपनियों को सौंप दिया जाता है जो तब उत्पाद का उपयोग दर्द निवारक दवाइयों और सिरप के निर्माण में करते हैं। लेकिन आप सरकार निजी कंपनियों को भी इसमें आने का अवसर दे रही है जिससे कि अफीम एल्कलॉइड के लिए फार्मा कंपनियों की निर्भरता अब केवल राज्य पर नहीं रहेगी। केंद्र सरकार ने पहली बार एक निजी कंपनी बजाज हेल्थकेयर को दर्द निवारक, कफ सिरप और कैंसर की दवाएं बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले एल्कलॉइड निकालने के लिए अफीम को संसाधित करने की अनुमति दी है।

अब बजाज हेल्थकेयर बिना लाइसेंस वाले पोस्ता कैप्सूल के प्रसंस्करण से सक्रिय फार्मास्यूटिकल्स सामग्री (एपीआई) को संसाधित करेगा। इसके अतिरिक्त यह केंद्रित पोस्ता पुआल (सीपीएस) एल्कलॉइड का भी निर्माण करेगा। बजाज हेल्थकेयर के संयुक्त प्रबंध निदेशक अनिल जैन ने कहा, “यह देश के इतिहास में पहली बार है कि सरकार ने एक निजी खिलाड़ी को अफीम प्रसंस्करण को नियंत्रित करने का अवसर दिया है। बजाज हेल्थ केयर को सरकार की ओर से इसका सबसे पहला टेंडर मिला है। हम बेहद सम्मानित महसूस कर रहे हैं। एपीआई का निर्माण अत्यधिक विनियमित परिस्थितियों में और भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल के सख्त पालन के तहत किया जाएगा। क्षमता वृद्धि क्षमताओं के साथ सभी अनिवार्य गुणवत्ता जांच और नियंत्रणों को पूरा करने के लिए इकाई अच्छी तरह से तैयार है।“

और पढ़ें: सहजन का पेड़, खेती, बुवाई, किस्मे, सिंचाई और इसके उपयोग

भारत में अफीम की खेती के कड़े नियम

अफीम की व्यसनी प्रकृति के कारण इसकी खेती पर कड़े नियम हैं। सूखे, बारिश, भूकंप, बाढ़, या किसी अन्य प्राकृतिक कारणों से यदि अफीम की खेती में कोई भी बदलाव आता है या उपज कम निकलती है तो किसानों को पहले से नोडल अधिकारी को सूचित करना आवश्यक होता है। यदि वह समय से अधिकारी को सूचित करने में विफल होते हैं तो उनका अफीम की खेती का लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है। यदि अफीम की फसल को कोई नुकसान होता है और किसान को अधिकारी को सूचित करने में देर हो जाती है तो उन्हें फसल के नुकसान के लिए मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।

इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसान उत्पादन की अनुमेय सीमा (काला बाजार में बेचने के लिए) को पार न करें, सरकार ड्रोन और अन्य जासूसी तंत्र का उपयोग करती है। सरकारें इसरो के उपग्रह चित्रों का भी उपयोग करती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी इसके लाइसेंस के बिना अफीम पोस्त की खेती न करे। सरकार 1 किलो अफीम के लिए रु1000 देती है जबकि काले बाजार में 1 किलो अफीम के लिए किसान को रु50000 तक मिल जाते हैं लेकिन कड़े नियमों के चलते कालाबाजारी करना संभव नहीं।

अप्रैल की शुरुआत तक केंद्रीय रूप से नियुक्त अधिकारी अफीम के फसल की गुणवत्ता जांच और अन्य सभी औपचारिकताओं को पूरा करते हैं। लेकिन किसानों को उनका अंतिम भुगतान अफीम कारखाने की प्रयोगशालाओं में अंतिम उत्पाद की जाँच के बाद ही मिलता है। हालाँकि तब तक 90 प्रतिशत पहले ही किसानों के बैंक खातों में स्थानांतरित हो चुका होता है। जैसे ही लैब उत्पादों की गुणवत्ता से संतुष्ट हो जाते हैं तो उन्हें नीमच और गाजीपुर में सरकारी अफीम और एल्कलॉइड कारखानों में भेज दिया जाता है। इन कारखानों में कोडीन फॉस्फेट, थेबाइन, मॉर्फिन सल्फेट और नोस्कैपिन जैसे उत्पादों का उत्पादन किया जाता है और फार्मा कंपनी को बेचा जाता है। भारत में अफीम की खेती का समय रबी फसलों के साथ मेल खाता है। बीज नवंबर में बोए जाते हैं और अफीम की निकासी मार्च में होती है।

और पढ़ें: धनिया की खेती के लिए आवश्यक जलवायु, भूमि, किस्मे और लागत

अफीम में निजी कंपनियों की एंट्री

अफीम की खेती करना जितना मुश्किल है उतना ही इसकी खेती करने के कड़े कानून के नियम है। भारत में भले ही अफीम कुछ स्थानों पर कानूनी रूप से उगाई जा रही हो लेकिन फिर भी यह भारत की दवाइयों की जरूरत को पूरा कर पाने में असमर्थ है। उत्पादन के निम्न स्तर के कारण फार्मा उद्योग अपनी कोडीन आवश्यकताओं का लगभग 30 प्रतिशत अन्य देशों से आयात कर रहा है। कोडीन एक उत्कृष्ट दर्द निवारक है।

इसके अलावा, भारत अन्य आवश्यकताओं के लिए अफगानिस्तान से भारी मात्रा में अफीम आयात करने के लिए भी मजबूर है। खेती के निम्न स्तर (500-700 मीट्रिक टन) के साथ समस्या यह है कि हमारी तकनीक पुरानी है। मोदी सरकार ने कॉन्सेंट्रेट ऑफ पोस्त स्ट्रॉ (सीपीएस) तकनीक से जुड़े पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत के साथ चीजों को बदलने की कोशिश की है। सीपीएस तकनीक में ऋतुओं की संख्या को मौलिक रूप से बदलने की क्षमता है। जबकि वर्तमान में हम वर्ष में केवल एक बार अफीम का उत्पादन करते हैं। सीपीएस तकनीक अधिक दक्षता के साथ-साथ प्रति वर्ष फसल के दो से तीन मौसमों की अनुमति देती है। सरकार का मानना ​​है कि नए बदलाव उत्पादन को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।

पब्लिक डोमेन में उपलब्ध रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार उत्पादन को 10 गुना बढ़ाने के मूड में दिख रही है। केवल बजाज हेल्थकेयर अगले 5 वर्षों में 6000 मीट्रिक टन से अधिक पोस्ता पुआल और अफीम गोंद को संसाधित करने का लक्ष्य बना रही है। निजी कंपनियों के आने से किसान भी अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहन महसूस करेंगे। अफीम की खेती में निजी कंपनियों के आने से ना केवल खेती में बदलाव आएंगे जिससे कि दवाएं बनाने में इस्तेमाल करने के लिए अफीम का आयात नहीं करना पड़ेगा बल्कि किसानों को भी बेहतर मूल्य पर अफीम की फसल बेचने का अवसर मिलेगा।

और पढ़ें: चने को इंग्लिश में क्या कहते है? और इसकी खेती से जुड़ी जरूरी जानकारी

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