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परवीन, जिया, रिया और सुशांत: महेश भट्ट का स्याह जीवन

इस आदमी का नाम लेते ही शर्म आने लगती है!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
20 September 2022
in चलचित्र
महेश भट्ट

Source- TFI

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“शीशे में उतारना चाहा जिन्होंने भी वक्त को, आफताब गवाह है कि वो सब रेत हो गए”

“हार गया जब वो खुद को तलाशकर, तब जाके निकला वो मुखौटा उतारकर”

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ऐसी शायरी निकालकर आपको लगेगा, वाह क्या सोच, क्या विचार, क्या दृष्टिकोण है, ऐसे रत्न कैसे छिपे थे हमसे? परंतु हर चमकती चीज सोना नहीं होती। आज जो हिन्दुस्तानी सिनेमा, जिसे कुछ लोग बॉलीवुड भी कहते हैं, उपहास और अपमान का केंद्र बना हुआ है, उसके पीछे दो प्रमुख कारण है। एक है सलीम जावेद की जोड़ी और दूसरा है एक व्यक्ति, जो योग्य और प्रतिभावान तो था परंतु अपनी ही शक्तियों का दुरुपयोग कर वो फिल्म उद्योग के विनाश का प्रतीक चिन्ह बन गया। इस लेख में हम विस्तार से महेश नानाभाई भट्ट की कहानी जानेंगे, जो कभी एक उत्कृष्ट रचनाकार थे परंतु धीरे धीरे एक औसत फिल्मकार में परिवर्तित हुए और फिर विवाद एवं कलंक इनका दूसरा नाम ही बन गया।

जख्म कभी देखी हैं। अरे वो मूवी, जिसके लिए अजय देवगन को उनका प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और जिसपर बाद में स्टार प्लस पर एक सीरियल ‘नामकरण’ भी बनकर आई? आप सोच रहे होंगे कि इसका महेश भट्ट से क्या वास्ता? चलिए उसकी कथा पर ध्यान देते हैं? एक महिला को कुछ दंगाई जला देते हैं और उसका बेटा अपनी मां को न्याय दिलाने के बजाए अपने ही धर्म को उल्टा सीधा सुनाने और धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाने में जुट जाता है। जख्म फिल्म की यही कथा है।

1948 में नानाभाई भट्ट और शीरीन मोहम्मद अली के यहां जन्मे महेश भट्ट एक सम्पन्न परिवार से थे। इनके पिता नानाभाई भट्ट स्वयं एक सफल निर्माता एवं निर्देशक थे, जिनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कभी धूम मचाती थी। महेश भट्ट ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा माटुंगा के डॉन बॉस्को हाई स्कूल से पूरी की, जो दिल्ली के सेंट कोलंबस से कम समृद्ध नहीं था।

और पढ़ें: पेश है बॉलीवुड की प्रथम 300 करोड़ी फ्लॉप – ब्रह्मास्त्र

परवीन बॉबी और पूजा भट्ट विवाद

महेश भट्ट अपने पिता की भांति फिल्ममेकिंग की लाइन में घुसना चाहते थे। उन्होंने “मंज़िलें और भी हैं” से 1974 में पदार्पण किया। वो ऐसे ही प्रयोग करते रहे परंतु उनके भाग्य बदले दो फिल्मों से – अर्थ और सारांश। ये दोनों ही फिल्में 1982 और 1984 में आई। इसने काफी प्रसिद्धि बटोरी और इसने कई अद्वितीय कलाकार भी दिए। फिर 1986 में संजय दत्त अभिनीत ‘नाम’ ने महेश भट्ट को प्रसिद्धि और वित्तीय सफलता मिली। इस फिल्म का एक गीत ‘चिट्ठी आई है’ आज भी कई लोगों के मन मस्तिष्क में गूंजता रहता है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि महेश भट्ट के अंदर प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी। तो फिर यह व्यक्ति इतना विवादित और इतना घमंडी कैसे बना, जिससे कोई भी सभ्य व्यक्ति संबंध न रखना चाहे? इसका संबंध कहीं न कहीं परवीन बॉबी से अवश्य है और ये कथा प्रारंभ हुई 1980 से।

जब महेश भट्ट शादी शुदा थे, तब भी उनका परवीन बॉबी के साथ अफेयर चला था। इसी समय परवीन की मानसिक अस्वस्थता की खबर भी सामने आई थी और जब मामला बिगड़ने लगा तो महेश भट्ट ने बड़ी आसानी से परवीन को किनारे कर अपनी पहली पत्नी से तलाक लिया और फिर एक और बॉलीवुड अभिनेत्री सोनी राज़दान से विवाह कर लिया।

यहां पर ये भी बताना आवश्यक है कि अभिनेत्री परवीन बॉबी और महेश भट्ट के बीच में कथित तौर पर अफेयर भी चला, जिसके पश्चात परवीन को कई मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। इंडस्ट्री के ‘विशेषज्ञों’ के अनुसार परवीन की मौत के पीछे कथित तौर पर फिल्मकार महेश भट्ट का हाथ था। इन दोनों के इसी अफेयर पर वर्ष 2006 में कथित तौर पर फिल्म ‘वो लम्हे’ भी आधारित थी। परंतु आपको क्या लगता है, यह कथा यहीं पर खत्म हो जाएगी? ये सब तब हुआ जब महेश अपने बचपन के मित्र लोरेन ब्राइट से विवाहित थे, जिनका बाद में नाम किरण भट्ट रखा गया। इनसे महेश की दो संतानें हुईं – अभिनेत्री और निर्देशक पूजा भट्ट एवं राहुल भट्ट। लेकिन जब परवीन बॉबी की समस्याएं बढ़ने लगी तो महेश भट्ट ने दोनों को धोखा देते हुए बॉलीवुड अभिनेत्री सोनी राज़दान से विवाह कर लिया।

1990 के दशक में चर्चित मैगजीन स्टारडस्ट के कवर पर फिल्मकार महेश भट्ट ने अपनी ही बेटी पूजा भट्ट के साथ ‘लिपलॉक’ करते हुए फोटो खिंचवाई, जिसपर जमकर हंगामा हुआ लेकिन उन्होंने न केवल उसे उचित ठहराया अपितु यह भी कहा, “अगर पूजा मेरी बेटी न होती तो मैं उससे विवाह कर लेता।” इसे नीचता की पराकाष्ठा न कहें तो क्या कहें? अभी तो हमने जिया खान पर चर्चा भी प्रारंभ नहीं की है, नहीं तो न जाने कितनी कथाएं लिखनी पड़ेंगी!

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रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह राजपूत मामला

अब बात जिया खान की उठी ही हैं तो तनिक रिया चक्रवर्ती की ओर भी ध्यान देते हैं, जिसने महेश भट्ट की रही सही इज्जत का भी सर्वनाश कर दिया। जब सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हुई तो महेश भट्ट ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि सुशांत की मानसिक हालत ठीक नहीं थी और यही बात उसने सुशांत की कथित महिला मित्र और अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के माध्यम से सिद्ध करने का प्रयास किया। पर ये सोशल मीडिया है, आप हर किसी को मूर्ख नहीं बना सकते। महेश भट्ट के रिया के साथ फोटो वायरल होने लगे और शीघ्र ही यह भी सामने आ गया कि कैसे सुशांत के विरुद्ध एक सुनियोजित तरह से माहौल बनाया गया था। तब यह भी बात सामने आई थी कि महेश भट्ट के लिए सुशांत की हालत परवीन बाबी से ज़्यादा भिन्न नहीं थी।

IWMBuzz से बातचीत के अनुसार, महेश भट्ट की सहयोगी लेखिका सुहृता सेनगुप्ता ने बताया, “महेश भट्ट ने कहा था कि सुशांत की हालत परवीन बॉबी जैसी हो चुकी है। उन्होंने रिया को कहा था कि वो एक्टर से अलग हो जाएं, वर्ना इसका असर उनपर भी पड़ सकता है। सुशांत, भट्ट साहब से ‘सड़क 2’ के सिलसिले में मिलने आए थे। वो बहुत बातूनी थे। वो हर टॉपिक पर बात कर सकते थे। चाहें वो क्वाटंम फिजिक्स हो या सिनेमा। इस दौरान भट्ट साहब को समझ में आ गया था कि सुशांत की हालत परवीन बॉबी जैसी हो चुकी है। अब केवल दवाइयां उन्हें ठीक कर सकती थीं। रिया, जो कुछ वक्त से सुशांत के साथ थीं उन्होंने बहुत कोशिश की थी कि सुशांत वक्त पर दवाइयां लें लेकिन सुशांत ने दवाइयां लेने से मना कर दिया था। सुशांत एक बहुत बुरे डिप्रेशन से गुज़र रहे थे।”

अब ये पूर्णतया गलत भी नहीं है क्योंकि महेश भट्ट को एक समय गुलशन कुमार की संभावित हत्या के बारे में भी सूचित किया गया था परंतु उन्होंने कोई भी कदम नहीं उठाया। तत्कालीन मुंबई पुलिस डीसीपी राकेश मारिया के अनुसार 22 अप्रैल 1997 को एक खबरी से कॉल आया और उसने गुलशन कुमार की हत्या की साजिश की जानकारी दी। खबरी ने यह भी बताया कि गैंगस्टर सलेम ने अपने शूटर्स के साथ गुलशन कुमार को शिव मंदिर जाने के दौरान मारने की पूरी योजना भी बना ली है क्योंकि गुलशन कुमार हर रोज शिव मंदिर जाते थे। तत्पश्चात मारिया ने निदेशक महेश भट्ट को कॉल किया और उन्होंने कुमार से पूछकर पुष्टि की कि वह रोज शिव मंदिर जाते हैं। उसके बाद 12 अगस्त 1997 को अंधेरी में स्थित जीतेश्वर महादेव मंदिर के बाहर बंदूकधारियों ने गोलियां बरसाते हुए गुलशन कुमार को मौत की नींद सुला दिया।

जाकिर नाइक का गुणगान

अब प्रश्न यह भी उठता है कि यदि मुंबई पुलिस और बॉलीवुड के एक विशेष वर्ग को गुलशन कुमार के संभावित हत्या की जानकारी थी तो उन्होंने गुलशन कुमार को बचाने की दिशा में कोई काम क्यों नहीं किया? ऐसा क्या था कि गुलशन कुमार की हत्या आज भी लगभग एक अबूझ पहेली बनी हुई है? परंतु यह ऐसा इकलौता आरोप नहीं है, जो राकेश मारिया ने अपनी पुस्तक के जरिये भारत के पूर्व प्रशासकों पर लगाया है। परंतु आप आशा भी किससे कर रहे थे? उस महेश भट्ट से, जिसके लिए 26/11 RSS की साजिश है? जिसके लिए ज़ाकिर नाइक एक विषैला आतंक प्रेमी प्रचारक नहीं, एक समाज सुधारक है?

जी हां, आपने ठीक सुना। महेश भट्ट ने एक वीडियो में न केवल ज़ाकिर नाइक की तारीफ की थी बल्कि उनपर फिल्म बनाने की इच्छा भी ज़ाहिर की थी। एक वीडियो में महेश भट्ट जाकिर नाइक की तारीफ करते हुए कहते हैं, “मैं ब्रिटिश साम्राज्य से पंगा मोल लेने के लिए ज़ाकिर नाइक का आभार प्रकट करता हूँ। अंग्रेजों से लड़ने के लिए हम लोग ज़ाकिर नाइक के आभारी हैं, जो हर प्रकार से हमारे देश के लिए एक धरोहर है, जिसे हम कदापि नहीं खो सकते।” ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि महेश भट्ट एक व्यक्ति नहीं एक सोच है, एक ऐसी घृणित सोच, जो भारत के विभाजन के बाद भी भारत में भटक रही है और हमारे जनमानस को कलुषित कर रही है परंतु झूठ चाहे जितना भी पांव पसार ले, सत्य का एक वार उसका सर्वनाश करने के लिए पर्याप्त है।

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