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वरदराजन, मस्तान, दाऊद एवं अन्य – कैसे संगठित माफिया ने मुंबई, क्रिकेट, राजनीति और बॉलीवुड को लंबे समय तक नियंत्रित किया

एक समय था जब संगठित माफिया ने बॉम्बे को अपना गढ़ बना लिया था

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
9 September 2022
in प्रीमियम
mumbi
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“चौकियां चाहे पुलिस की हो, शहर के कमिशनर लोग तो हम ही हैं….”

वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई का यह संवाद उस समय का परिचायक है जब अपराध और समाज के बीच का अंतर मिट चुका था। तब कोई विवशता में, तो कोई उद्देश्य के लिए, अपराध को अनेक लोग सफलता की सीढ़ी मानने लगे थे। निस्संदेह मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है परंतु इस आर्थिक राजधानी का एक स्याह पहलू भी है जिसमें अपराध जगत की एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका भी है।

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कुख्यात स्मगलर वरदराजन मुदलियार

‘नायगन’ नाम सुना है? नहीं? ये मणि रत्नम की एक बहुचर्चित फिल्म है, जिसके लिए कमल हासन को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता से सम्मानित भी किया गया था। पर क्या आपको पता है कि यह किस पर आधारित था? यह तुटिकोरिन में जन्मे कुख्यात स्मगलर, वरदराजन मुदलियार पर आधारित था, जो 1960 के दशक से 1980 के दशक तक बॉम्बे के सबसे शक्तिशाली स्मगलर्स में से एक था।

ये वो समय था जब मुंबई बॉम्बे के नाम से जाना जाता था और वह एक भूमि न होकर सात द्वीपों का एक समूह था। इस द्वीपीय नगरी को एक विशाल नगर में परिवर्तित करने हेतु एक योजना लायी जानी थी। यह अंतिम reclamation [भूमि उधार] परियोजना थी, जिसे नरीमन पॉइंट से 60 के दशक में प्रारंभ किया गया था। परंतु इसी समय एक ऐसी घटना हुई जहां से सबका खेल बदल गया, देश का भी और बॉम्बे का भी।

27 अप्रैल 1959, बॉम्बे में सब कुछ शांतिपूर्वक चल रहा था परंतु जल्द ही तहलका मच गया। एक उद्योगपति, प्रेम भगवानदास आहूजा को उसके नौसैनिक मित्र, कमांडर कवास मानेकशॉ नानावटी ने गोलियों से भून दिया क्योंकि उसका नानावटी की ब्रिटिश पत्नी सिलविया के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था। इस प्रकरण ने पूरे देश में कोहराम मचा दिया और चूंकि प्रारंभ में नानावटी निर्दोष सिद्ध हुए, इसलिए इस प्रकरण के पश्चात भारत में ज्यूरी के माध्यम से मुकदमा का निर्णय देने की प्रक्रिया समाप्त हुई।

तो इसका मुंबई के अपराध जगत से क्या वास्ता? वो कहते हैं, डूबते को तिनके का सहारा भी पर्याप्त होता है और यहां तो प्रशासन का कोई हिसाब ही नहीं था। जैसे अमेरिका में शिकागो था, ठीक वैसे ही मुंबई में राजनीतिक हो, सामाजिक हो, या फिर व्यावसायिक, अपराध ने हर क्षेत्र में अपनी पैठ बनानी प्रारंभ कर दी जिसके पुरोधा बने वरदराजन मुदलियार जिनके बिना मुंबई में कोई पांव तक नहीं उठा सकता था।

वरदराजन मुदलियार की विशेषज्ञता थी सोने की तस्करी, जिसमें उनके प्रमुख प्रतिद्वंदी थे करीम लाला और इन लोगों का बॉम्बे पर एकछत्र राज रहता था। इन लोगों के समक्ष क्या नेता, क्या अभिनेता, कोई नहीं टिकता था। परंतु इसी बीच प्रादुर्भाव हुआ कम्युनिस्टों का जिन्होंने सोचा – क्यों न बॉम्बे पर भी नियंत्रण जमाया जाए।

और पढ़ें- रमिंदर और देविंदर से लेकर अर्शजोत और गुरनूर तक: सिख नामों का बदल रहा है ट्रेंड

ये वही समय था जब लाल सलाम की ‘क्रांति’ का डंका भारत में चहुंओर था। तब लोग इसके दुष्प्रभावों से अपरिचित थे, लोगों को लगता था कि यही देश का उद्धार करेंगे। आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में, केरल और बंगाल में इनकी कीर्ति का कोई तोड़ नहीं था। लेकिन यही नीति वे अब महाराष्ट्र में भी लाना चाहते थे।

परंतु एक व्यक्ति को लगा कि मराठा के भूमि में लाल सलाम का क्या काम? इन लोगों को जड़ से उखाड़ने की दिशा में इस व्यक्ति ने अपनी प्रारंभ की लड़ाई को एक नयी धार दी। कभी फ्री प्रेस जर्नल और मार्मिक के लिए कार्टून बनाने वाले बाल केशव ठाकरे जो प्रारंभ में दक्षिण भारतीयों को महाराष्ट्र से खदेड़ने की बातें करते थे, अब अपनी लड़ाई कम्युनिस्टों की ओर मोड़ दिए। ये वो समय था जब उनका राजनीतिक दल शिवसेना बस नया-नया स्थापित हुआ था परंतु उसके कार्यकर्ता अपना सर्वस्व अर्पण करने को तैयार थे और इस बार उन्होंने मार्ग अपनाया – दंड मार्ग।

कम्युनिस्टों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए साम दाम दंड भेद, सब कुछ अपनाने के लिए तैयार थी शिवसेना। 1970 में फिर वो हुआ, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे हिंसक नेताओं में से एक, कृष्णा देसाई को सरेआम मृत्युलोक पहुंचाया गया, और जब पूछा गया कि किसने किया, तो बालासाहेब ठाकरे स्वयं उनकी पैरवी के लिए आगे आए। उस दिन के पश्चात कम्युनिस्ट ने अनेक आंदोलन किये, जिनमें से कुछ दत्ता सामंत के नेतृत्व में सफल भी हुए, परंतु कोई भी कलकत्ता की भांति बॉम्बे को बर्बाद करने में सफल नहीं सिद्ध हुआ।

और पढ़ें- Astraverse – Brahmastra का आधार ही बकवास और अपमानजनक है

एक ही सिक्के के दो पहलू

जहां एक ओर अपराध राजनीति और समाज के मायाजाल में उलझ रहा था, तो अंडरवर्ल्ड में परिवर्तन की लहर आ चुकी थी। वरदराजन मुदलियार का स्थान उन्हीं के ‘शिष्य’ ने लिया, जो उन्हीं के स्थान तमिलनाडु से आता था और जिनकी भूमिका को आत्मसात कर अजय देवगन वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में काफी लोकप्रिय भी हुए। हम बात कर रहे हैं हाजी मस्तान मिर्ज़ा की, जिनके नेतृत्व में बॉम्बे और संगठित माफिया, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हो गए।

हाजी मस्तान ने दक्षिण बॉम्बे में विभिन्न स्थानों पर संपत्तियां खरीदी, जिनमें पेडर रोड पर समुद्र का सामना करने वाला बंगला भी शामिल है। वह अपने बंगले की छत पर बने एक छोटे से कमरे में रहते थे। वह अपने विशेष वस्त्रों के लिए काफी चर्चा में रहते थे, जिनकी सफेदी कई लोगों को खटकती थी। मस्तान ने अपने जीवन में बाद में फिल्म वित्तपोषण में कदम रखा, जिससे मुंबई में निर्माताओं को कुछ आवश्यक धन उपलब्ध कराया गया। वह अंततः खुद एक फिल्म निर्माता बने। आज बॉलीवुड को जो हेय की दृष्टि से देखा जाता है उसमें एक महत्वपूर्ण योगदान इनका भी है, क्योंकि फिल्म उद्योग का उपयोग अंडरवर्ल्ड के कालेधन को सफेद करने हेतु होने लगा था।

रियल एस्टेट, इलेक्ट्रॉनिक सामान और होटलों में भी उसकी व्यावसायिक रुचि थी। क्रॉफर्ड मार्केट के पास मुसाफिर खाना में उसकी कई इलेक्ट्रॉनिक दुकानें थी। मस्तान ने गिरोह के अन्य नेताओं के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे। जब मुंबई में अंतर-गिरोह प्रतिद्वंद्विता बढ़ने लगी तो मस्तान ने गिरोह के सभी शीर्ष नेताओं को एक साथ बुलाया और मुंबई को गिरोहों के बीच विभाजित कर दिया ताकि वे संघर्ष में आए बिना काम कर सकें। इसमें माफिया रानी, ​​जेनाबाई दारुवाली ने उनकी मदद की।

पहले जेनाबाई को चावलवाली के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वह कालाबाजारी में राशन बेचने का कारोबार करती थी। लेकिन जैसा कि वह महत्वाकांक्षी थी, उसने तत्कालीन शराब निर्माता और विक्रेता वरदराजन मुदलियार उर्फ ​​वरदा भाई के साथ संपर्क विकसित किया। इसके बाद उसे जेनाबाई दारूवाली के नाम से जाना जाने लगा। जेनाबाई के मस्तान और दाऊद इब्राहिम परिवार और करीम लाला पठान के साथ अच्छे संबंध थे। इसलिए मस्तान की सहमति से उसने मस्तान के पेडर रोड बंगले बैतुल सुरूर की एक छत के नीचे सभी प्रतिद्वंद्वियों की एक बैठक की व्यवस्था की। कहते हैं, जब वरदारजन मुदलियार की मृत्यु हुई, तो उनके अंतिम संस्कार का प्रबंध भी हाजी मस्तान ने ही कराया।

तो अंडरवर्ल्ड में ऐसा क्या था, जो वह गलत और अनुचित होते हुए भी अन्य लोगों के लिए आकर्षक था? धन और वैभव तो था ही, और साथ ही उस समय जो लोग उसे चलाते थे, उन सभी में कुछ मापदंड थे, आदर्श थे, जिसके कारण लोग अपने आप ही इनके तरफ खिंचे चले आते थे, चाहे प्रशासन हो, राजनीतिज्ञ हो, या फिर फिल्म उद्योग। परंतु ज्यादा मीठा भी सेहत के लिए हानिकारक होता है, और ऐसे में प्रवेश हुआ एक ऐसे व्यक्ति का, जिसने मुंबई के अंडरवर्ल्ड का मानचित्र ही सदैव के लिए बदल कर रख दिया।

और पढ़ें- रमिंदर और देविंदर से लेकर अर्शजोत और गुरनूर तक: सिख नामों का बदल रहा है ट्रेंड

दाऊद इब्राहिम ने बदल दी मुंबई अंडरवर्ल्ड की दशा और दिशा

इस खेल में प्रवेश हुआ बॉम्बे पुलिस के हवलदार इब्राहिम कास्कर मनियार का, जो रत्नागिरी के मुमका ग्राम से संबंध रखते थे। वे स्वयं इस अपराध जगत के भागीदार नहीं थे, परंतु उनके पुत्र, साबिर और अनीस प्रारंभ से ही हाजी मस्तान को अपना आदर्श मानते थे, और उनके जैसा बनना चाहते थे। लेकिन इब्राहिम कास्कर का एक पुत्र ऐसा भी था, जो इन सबसे अलग था, और वह पूरे अंडरवर्ल्ड को अपना बनाना चाहता था। यही था दाऊद इब्राहिम कास्कर, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड की दशा और दिशा दोनों बदल दी।

सट्टेबाज़ी, सोने की तस्करी, ड्रग माफिया, आप बोलते जाइए और दाऊद इब्राहिम सब करता था। बॉलीवुड के अनेक प्रचलित हस्ती और देश के चर्चित क्रिकेटर सब इनके दास थे, इनके बिना बॉम्बे में कोई चूं तक नहीं कर सकता था। इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण थे भरत शाह, जिन्हें आपने 90 के दशक के अनेक फिल्मों में अवश्य निर्माता के रूप में टाइटल क्रेडिटस में अवश्य देखा होगा, और बाद में अंडरवर्ल्ड से यही संबंध उनके विनाश का कारण बना।

समाद खान की हत्या के पश्चात दाऊद को भारत हमेशा के लिए त्यागना पड़ा, जिसके पश्चात भारत में अपने कार्यों हेतु इन्होंने दो लोगों को विशेष तौर पर डेप्यूट किया – राजेन्द्र सदाशिव निखालजे उर्फ छोटा राजन, एवं अरुण गुलाब गवली, जो प्रारंभ से ही एक अलग गुट बनाकर चल रहा था।

परंतु स्थिति बदली 1992 में। जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, तो देशभर में हिंसक घटनाएं हुई, परंतु मुंबई में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गयी। दंगे भड़क उठे और काफी नुकसान हुआ, जिसमें दाऊद इब्राहिम और उसके अनुयायी, मुश्ताक उर्फ टाइगर मेमन के कई संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचा। ऐसे में दोनों ने तय किया कि वे सम्पूर्ण मुंबई को तहस-नहस कर देंगे, और पहली बार आरडीएक्स विस्फोटकों का प्रयोग किया गया जिसमें सरकारी अफसरों की मिलीभगत भी भरपूर रही।

प्रारंभ में यह हमला 12 जगहों पर छत्रपति शिवाजी महाराज के जयंती के अवसर पर की जानी थी, परंतु 9 मार्च 1993 को गुल मोहम्मद शेख के पकड़े जाने पर यह हमला आनन फानन में 12 मार्च को शिफ्ट कर दिया। 250 से अधिक लोग मारे गये और 1400 से अधिक लोग घायल हुए थे।

इन बम विस्फोटों ने अंडरवर्ल्ड की नींव को भी हिला दिया। इस घटना के बाद दाऊद का छोटा शकील पर भरोसा बढ़ गया। 1993 मुंबई बम धमाके में सबसे काला चेहरा दाऊद और छोटा राजन का ही था। मुंबई के अपराध जगत के रग-रग से परिचित कलमकार हुसैन जैदी लिखते हैं, ‘छोटा राजन ने मीडिया के जरिए अपना पक्ष रखने की कोशिश की। उसने दाऊद का भी बचाव किया।’ छोटा राजन बम धमाकों में अपना नाम आने से परेशान था। लेकिन इसी बात का फायदा उठाया छोटा शकील ने। उसने छोटा राजन को गद्दार कहना शुरू किया। एक सा‍ल के भीतर ही ये दूरियां ऐसी बढ़ीं कि छोटा राजन ने दाऊद गैंग के लिए काम करना बंद कर दिया। छोटा राजन अब हिंदुस्‍तान लौटना चाहता था।

इसी बीच अरुण गवली ने भी विद्रोह कर दिया था और अंडरवर्ल्ड के अब दो फाड़ हो चुके थे, जिसका लाभ मुंबई पुलिस के एनकाउन्टर स्क्वाड ने खूब उठाया। इन आपराध‍िक वारदातों के बाद इंटरपोल ने छोटा राजन के लिए रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया। 2015 में खबर आयी कि छोटा राजन पर ऑस्ट्रेलिया में हमला हुआ। उसी साल अक्टूबर महीने में छोटा राजन को इंडोनेशिया के बाली में गिरफ्तार कर लिया गया। हत्‍या, वसूली, ड्रग्स का धंधा, हथियार रखने, तस्करी समेत करीब 70 मामलों में आरोपी छोटा राजन को पत्रकार ज्‍योतिर्मय डे की हत्या का दोषी माना गया और आजीवन कैद की सजा सुनायी गयी। तब से इस गैंगस्‍टर का पता दिल्‍ली स्‍थ‍ित तिहाड़ जेल का बैरक है।

अभी के समय में मुंबई का संगठित माफिया इतिहास तो नहीं है परंतु वह पहले की भांति शक्तिशाली भी नहीं रहा। कभी जिस माफिया के बिना मुंबई में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था, आज वही माफिया अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। इसे समय का फेर कहिए या फिर कर्म परंतु यही सत्य है।

Other Sources – Mumbai Fables by Gyan Prakash

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