फैन मत बनिए, नागरिक बनिए। जब भी आप फैन बन जाते हैं, आप अपनी नागरिकता खो देते हैं। गोदी मीडिया, चाटुकारिता के सिवाय करता ही क्या है? एक डरा हुआ पत्रकार, एक मरा हुआ नागरिक पैदा करता है। टीवी मत देखिए, टीवी को टीवी हो गया है। यह सब बातें किसी और ने नहीं बल्कि इस दौर के सबसे बड़े एजेंडाबाज एंकर रवीश कुमार ने कही हैं। इन बातों से हमें कोई समस्या नही है। नैतिक बातें करना अच्छी बात है लेकिन हमें समस्या यह है कि दुनियाभर का ज्ञान देने वाला यह शख्स आज अपने भक्तों से अपनी चरण वंदना करवा रहा है। इस लेख में हम आपके सामने रवीश कुमार का मुखौटा उतारने जा रहे हैं।
गोदी मीडिया, इस शब्द की उत्पत्ति रवीश कुमार ने की है। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी, इसकी उत्पत्ति का श्रेय भी इन्हीं एंकर महोदय को जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि दूसरों पर पत्थर मारने वाला यह शख्स आज अपनी चरण वंदना करवाने में ज़रा भी नहीं हिचक रहा है। एनडीटीवी से इस्तीफा देने के बाद एंकर महोदय ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो डाला है। इस वीडियो में एंकर महोदय करीब-करीब रोते हुए दिख रहे हैं।
इसके बाद इनके भक्त सोशल मीडिया पर गंदगी फैलाने में लगे हैं, रवीश कुमार को महान साबित करने पर तुले हैं। रवीश कुमार के भक्त इस तरह से लिख रहे हैं मानो वह इस मृत संसार के प्रथम और अंतिम एंकर हो- मैं जानता हूं कि आप लोग सोच रहे होंगे कि हम इन्हें पत्रकार क्यों नहीं बोल रहे- सॉरी पाठकों, यह शख्स पत्रकार कभी था ही नहीं, टेलीप्रॉम्टर पढ़ने वाले आदमी को पत्रकार कैसे कहा जाए?
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रवीश कुमार 2014 से पहले और बाद
लेकिन इनके भक्तों के लिए इकलौते यही पत्रकार हुए हैं। तो भक्त जिस शख्स को महान बनाने पर तुले हैं, आइए, थोड़ा-सा उनके बारे में जान लेते हैं। कांग्रेस की सरकारों के वक्त यह शख्स सॉफ्ट मुद्दों पर रिपोर्टिंग किया करता था, जैसे- किसी इलाके में लोग कैसे रह रहे हैं? प्रवासी मजदूर कैसे रह रहे हैं? शेरो-शायरी पर प्रोग्राम, गांव-गांव घूमकर वहां के रहन-सहन को दिखाना। कभी भी खुलकर इस शख्स ने कांग्रेस सरकारों की आलोचना नहीं की। हमें पता है, आप कापसहेड़ा वाली उस रिपोर्ट का हवाला देंगे, जिसमें एंकर महोदय मनमोहन सिंह का नाम लेते हैं- एक-दो और वीडियो होगी लेकिन इससे ज्यादा नहीं। अब इसकी तुलना 2014 के बाद से कीजिए। हर दिन स्टूडियो में बैठकर एक पार्टी के विरुद्ध, एक विचारधारा के विरुद्ध, सरकार के विरुद्ध किस तरह से इस शख्स ने एजेंडे चलाया है, उसे उठाकर देख लीजिए।
एक भी ऐसा कार्यक्रम नहीं किया होगा जहां सरकार की आलोचना न की हो। हम आलोचना के विरुद्ध नहीं हैं, कीजिए आप, लेकिन एजेंडा के तहत आलोचना क्यों? सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना क्यों? और फिर यही क्यों यानी टीवी पर ही क्यों? ग्राउंड रिपोर्टिंग पर ज्ञान देने वाले इस शख्स ने पिछले 8 वर्षों में कितनी ग्राउंड रिपोर्टिंग की है, यह संख्या नगण्य है लेकिन फिर भी यह एंकर महोदय ज्ञान ऐसे देंगे मानो इनसे ज्यादा किसी ने ग्राउंड रिपोर्टिंग की ही ना हो। अब आप कहेंगे कि इन्होंने ग्राउंड रिपोर्टिंग नहीं की फिर क्या किया? स्टूडियो में बैठकर एजेंडा चलाया और जब से कोरोना महामारी की शुरूआत हुई तब से तो यह शख्स अपने घर से ही एजेंडा चला रहा है। ख़ैर, हम बस इतना कहना चाहते हैं कि उपदेश देने का अधिकार उसके पास होता है, जो स्वयं उन मूल्यों का पालन करता है।
रवीश के लिए वफादारी- गजबे है!
अब दूसरे मुद्दे पर आते हैं। इस शख्स ने सदैव ही यह कहा कि फैन नहीं बनना चाहिए, व्यक्ति पूजा से बचना चाहिए। आज क्या हो रहा है? इस्लामिस्ट और वामपंथी, एंकर महोदय के समर्थन में निरंतर अभियान चला रहे हैं। ट्वीटर पर हैशटैश चलाए जा रहे हैं। इस्लामिस्ट और वामपंथी, एंकर महोदय को लेकर ट्वीट कर रहे हैं, फेसबुक पोस्ट कर रहे हैं, मतलब हद ही है। 26 वर्षों तक एनडीटीवी में रहने के बाद जिस शख्स ने कोई एक सिंगल ब्रेकिंग न्यूज़ न दी हो, कोई एक इन्वेस्टिगेटिंग स्टोरी न की हो, किसी एक बड़े नेता का इंटरव्यू न लिया हो, उसके एनडीटीवी छोड़ने से कौन-सी क्रांति होते-होते रह गई?
जो सभी रवीश भक्त इसके भक्ति में लगे हैं और अगर यह अपनी वफादारी साबित कर रहे हैं या फिर अपने एजेंडाबाज मित्र का समर्थन कर रहे हैं तो यह एंकर महोदय क्यों सार्वजनिक तौर पर आकर नहीं कहते कि मेरी पूजा मत करो मेरे भक्तों, मैं व्यक्तिगत पूजा का विरोधी हूं। एंकर महोदय, बिल्कुल भी इसे रोक नहीं रहे हैं बल्कि बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि इसी में एंकर महोदय को मजा आता है। इस तरह की तमाम बातें हैं, जो साबित करती हैं कि एंकर महोदय एक औसत एंकर हैं, इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
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