अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात् कोई भी व्यक्ति अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और ऋषि मार्कण्डेय का नित्य स्मरण करेगा तो वह जीवनभर स्वस्थ और 100 वर्ष तक जीवित रहेगा। सनातन धर्म को मानने वाले अधिकतर लोग इन नामों से परिचित तो हैं परन्तु आज भी जब चिरंजीवियों की बात की जाती है तो 7 लोगों के नाम ही गिनाए जाते हैं, जबकि प्राचीन भारत के इतिहास में 7 नहीं बल्कि 8 चिरंजीवी हुए हैं।
अश्वत्थामा
अष्ट चिरंजीवियों में सबसे पहला नाम है अश्वत्थामा का। अश्वत्थामा गुरू द्रोणाचार्य और कृपी के पुत्र थे। गुरू द्रोणचार्य को भगवान शिव की छवि के समान पुत्र चाहिए था इसलिए उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या की, जिसके बाद माथे पर मणि धारण किए शिवजी के आशीर्वाद से चिरंजीवी अश्वत्थामा का जन्म हुआ। महाभारत काल में अश्वत्थामा कौरवों की ओर से लड़ने वाले और युद्ध के बाद जीवित बने रहने वाले योद्धाओं में से एक थे। हालांकि, उन्हें महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु की पत्नि उत्तरा के गर्भ पर बाण साधने के कारण भगवान कृष्ण ने तीन हजार वर्षों तक मणि के स्थान पर घाव के साथ जीवित रहने का श्राप भी दिया था। इसलिए उन्हें चिरंजीवी भी कहा गया।
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राजा बलि
अष्ट चिरंजीवियों में आने वाले राजा बलि, विष्णुभक्त, दानवीर और महान योद्धा थे और वैरोचन नामक साम्राज्य के सम्राट थे, जिसकी राजधानी महाबलिपुरम हुआ करती थी। समुद्र मंथन के बाद उन्होंने एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया, जिसका उद्देश्य तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करना था। इस अनर्थ को होता देख सभी देवता चिंतित हुए और भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने इस यज्ञ को रोकने के लिए वामन अवतार लिया और ब्राह्मण का वेश धर राजा बलि के पास गए। राजा बलि से उन्होंने तीन पग भूमि दान में मांगी और संकल्प पूरा होते ही विशाल रूप धारण कर प्रथम दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया। शेष दान के लिए राजा बलि का मस्तक नपवा लिया। जिसके बाद राजा बलि के पास रहने के लिए कोई स्थान नहीं रहा और उन्हें पाताल लोका का राजा बना दिया।
वेद व्यास
राजा बलि के बाद अष्ट चिरंजीवियों में वेद व्यास हैं। यदि इनके बारे में संक्षेप में कहा जाए तो ये अभी तक के सबसे अधिक तेजस्वी, बुद्धिमान और ज्ञानवान विद्वान हैं। इनके बारे में बताया जाता है यह पैदा होने के बाद कुछ समय में ही 16 वर्ष के एक परिपक्व बालक हो गए थे। यही नहीं, इन्हें वेदों की महिमा के बारे में भी जन्म के समय से ही पता था। इसी के साथ इनके द्वारा की गई रचनाओं के बारे में बात की जाए तो अधिकतर लोग आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि एक व्यक्ति इतनी रजनाएं कैसे कर सकता है। आपको बता दें कि वेदव्यास ने ही अठारह पुराणों की रचना की थी और महाभारत की रचना को सर्वविदित है।
हनुमान जी
हनुमान जी के बार में तो अधिकतर लोग जानते ही हैं। बजरंग बली, पवनपुत्र और अंजनी पुत्र समेत कई नामों से इन्हें जाना जाता है। हनुमान जी राम भक्त होने के साथ-साथ बहुत बुद्धिमान भी थे। उदाहरण के लिए श्रीराम के लंका पहुंचने से पूर्व लंका में जाकर वहां की यथास्थिति को जानना हो या फिर लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाना हो। हर जगह महाबली हनुमान की लीला हमें देखने को मिली है।
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विभीषण
विभीषण के बारे में बात की जाए तो वैसे यह रावण के भाई थे परन्तु उन्होंने भगवान राम से युद्ध लड़ने से पूर्व रावण को युद्ध के परिणाम को लेकर चेताया था। यही नहीं, वो एक राम भक्त भी थे। रावण की नाभि कलश के बारे में भगवान राम को विभीषण ने ही बताया था। विभीषण को आठ चिरंजीवियों में इसलिए गिना जाता है क्योंकि भगवान राम ने पृथ्वी छोड़ने से पूर्व उन्हें पृथ्वी पर लोगों की सेवा करने, उन्हें सत्य और धर्म के मार्ग पर मार्गदर्शन करने का आदेश दिया था। इसलिए, विभीषण को आठ अमर या चिरंजीवियों में से एक माना जाता है।
कृपाचार्य
कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरू थे। इनकी बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था, जिनसे अश्वत्थामा पैदा हुए। कुरुक्षेत्र के युद्ध में ये कौरवों के साथ थे और उनके नष्ट हो जाने पर पांडवों के पास आ गए। बाद में इन्होंने परीक्षित को अस्त्रविद्या सिखाई। भगवान विष्णु से उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त दिया था।
परशुराम
परशुराम अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं। वो भगवान विष्णु के अवतार हैं। उन्होंने पृथ्वी पर हो रहे अत्याचारों को कम करने के लिए ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था। परन्तु उन्होंने जीवनभर क्षत्रिय धर्म निभाया और अत्याचारियों का संहार किया। उनका प्रमुख उद्देश्य धर्म की रक्षा करना था। उन्होंने क्षत्रियों के अत्याचार से कई बार पृथ्वी को मुक्त भी किया था। सीता-राम स्वयंवर की कहानी आपको अच्छे से पता है। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहां उन्होंने धर्म की रक्षा की है।
ऋषि मार्कण्डेय
चिरंजीवियों में सबसे अंतिम हैं मार्कण्डेय ऋषि। मार्कण्डेय, भृगु वंश के थे, जो शिव और विष्णु दोनों के भक्त हुआ करते थे। उनके माता पिता मृकंडु ऋषि और माता मरुद्वती ने भगवान शिव की पूजा की और उनसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा। जिसके बाद मार्कण्डेय ऋषि का जन्म हुआ। उनके बारे में यह भी बताया जाता है कि 16 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु तय थी परन्तु इनकी माता मरुद्वती लगातार कई वर्षों तक शिवजी की पूजा अर्चना की और परिणाम यह हुआ कि यमराज उन्हें नहीं ले जा सके और ये अमर हो गए।
ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि धरती पर 7 नहीं आठ चिरंजीवी हैं और इन्हें चिरंजीवी इसलिए कहा जाता है क्योंकि ‘चिर’ यानी ‘हमेशा’ और ‘जीवी’ यानी ‘जीवित रहने वाला’। अर्थात् जो सदा जीवित रहे और आज भी ये 8 चिरंजीवी जीवित हैं।
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