प्रोजेक्ट 75 भारत: चीन और पाकिस्तान भारत के दो सबसे बड़े दुश्मन और दोनों ही भारत के पड़ोसी। दोनों ही देशों के साथ भारत युद्ध कर चुका है। पाकिस्तान को तो कई बार भारत ने धूल चटाई है लेकिन 1962 में चीन से भारत को हार का मुंह देखना पड़ा था। ऐसे में अब भारत अपनी सैन्य तैयारी को लेकर पूरी तरह से सजग है। रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया को लेकर सरकार की पहल अब अगले चरण में पहुंच गई है। डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी बनाने के लिए अब भारत को रूस का साथ मिला है।
इस लेख में पढ़िए कैसे रूस भारत के साथ डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी बनाने के लिए आगे आ गया है।
रूस का प्रस्ताव
रक्षा क्षेत्र में सबसे बड़ा साझेदार होने के नाते रूस ने कई मौकों पर भारत के साथ हाथ मिलाया है। अब, भारतीय नौसेना रूस के साथ अपनी एक पुरानी परियोजना पर गहराई से काम कर रही है, जो भारतीय समुद्री सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत ने हाल ही में रक्षा क्षेत्र में अन्य देशों के साथ संबंध बढ़ाने के साथ-साथ अपनी सैन्य शक्ति दिखाने के लिए एयरो इंडिया शो की मेजबानी की है। शो में देखी गई सबसे दिलचस्प बात यह थी कि भारत के साथ रक्षा व्यापार बढ़ाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस दोनों देशों ने ही अपनी उत्सुकता दिखाई है।
इस दौरान सैन्य-तकनीकी सहयोग के लिए रूसी संघीय सेवा के उप-निदेशक, व्लादिमीर ड्रोझझोव ने संयुक्त रूप से डीजल पनडुब्बी विकसित करने की पेशकश की है। यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि क्यों कि इससे पहले रूस ने भारत की महत्वाकांक्षी डीजल पनडुब्बी परियोजनाओं P75 और P75I में बोली लगाने से इनकार कर दिया था।
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रूस ने इससे पहले भारतीय नौसेना की उस डील से हाथ खींच लिए थे, जिसके तहत 6 एडवांस्ड पनडुब्बियों का निर्माण होना था। उस समय छह दावेदारों में से 3 देश फ्रांस, रूस और स्पेन इस समझौते से पीछे हट गए थे। लेकिन अब रुस ने भारत के साथ संयुक्त रूप से रूसी अमूर-1650 पनडुब्बी पर आधारित एक गैर-परमाणु पनडुब्बी विकसित करने की पेशकश की है।
रुस ने इस दौरान कहा कि डीजल पनडुब्बी 80-20 के फॉर्मूले पर विकसित की जाएगी- अर्थात 80 प्रतिशत लोकलाइज़ेशन होगा। रुसी अधिकारियों ने इसके साथ ही कहा कि रुस डिजाइनिंग से लेकर प्रोडक्शन तक लोकलाइजेशन को ध्यान में रखेगा और दोनों देशों की सरकारों के बीच हुए अंतर-सरकारी समझौतों के तहत होगा।
क्या है प्रोजेक्ट 75 भारत?
समुद्र में भारत को शक्तिशाली बनाने और दुश्मन की किसी भी हिमाकत का बिना देरी मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सरकार ने नौसेना को मजबूती देने के लिए प्रोजेक्ट 75 भारत की शुरूआत की थी। इसके तहत 1997 में रक्षा मंत्रालय ने 24 सबमरीन खरीदने की योजना को मंजूरी दी थी।
1999 में करगिल युद्ध के बाद भारत सरकार ने चीन-पाकिस्तान के खतरे को देखते हुए 30 वर्ष का लक्ष्य करके प्रोजेक्ट 75 भारत को औपचारिक आकार दिया था। इसके तहत 2030 के अंत तक 24 परंपरागत पनडुब्बी के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है।
बाद में प्रोजेक्ट 75 भारत के तहत पनडुब्बियों के भारत में ही निर्माण की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की गई। मेक इन इंडिया के तहत बनने वाली इन पनडुब्बियों को विदेशी कंपनियों की मदद से भारत में बनाया जा रहा है।
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वर्तमान में, प्रोजेक्ट 75 भारत में केवल दक्षिण कोरियाई कंपनी एकमात्र बोलीदाता है इस परियोजना से अधिकांश दावेदारों के द्वारा कदम पीछे खीच लेने के बाद यह माना गया कि परियोजना को रोक दिया गया था। लेकिन, नौसेना प्रमुख ने पिछले साल दिसंबर में नौसेना दिवस से पहले कार्यक्रम के प्रति सेवा की प्रतिबद्धता जाहिर की थी। ऐसे में रूसी पक्ष की ओर से प्रस्ताव सही समय पर आया है।
क्या है आवश्यकता?
चीन तेजी से हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी और ताकत को बढ़ा रहा है। उसके पास 50 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी और 10 परमाणु पनडुब्बी हैं। वहीं हिन्द महासागर सामरिक दृष्टि से भारत के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से है।
इसकी महत्ता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं की पूरे विश्व का 80 प्रतिशत तेल व्यापार इस क्षेत्र से होकर गुजरता है और भारत के लिए इसकी रणनीतिक अहमियत कितनी है इसी बात से प्रतिबिम्बित होती है कि यह दुनिया का एकमात्र महासागर है जिसका नामकरण एक देश के नाम पर हुआ है।
अगर आप भौगोलिक दृष्टि से भी अवलोकन करें तो पाएंगे की भारत का एक बड़ा भूभाग हिन्द महासागर से लगता है। इस क्षेत्र में भारत और उसकी नौसेना का दबदबा है। इस क्षेत्र में दबदबा भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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बता दें कि प्रोजेक्ट 75 भारत के तहत निर्मित चार पनडुब्बियां – आईएनएस कलवरी, आईएनएस खंडेरी और आईएनएस करंग और आईएनएस वेला, आईएनएस वागीर
पहले ही भारतीय नौसेना में शामिल हो चुकी हैं। समंदर में भारत के सामरिक हितों को देखते हुए नौसेना के लिए और पनडुब्बियों की ज़रूरत थी। इसी के लिए एक 30 साल लंबा प्लान बनाया गया था जिसे 2030 में पूरा होना है। प्रोजक्ट में ढेर साले बदलाव हुए। जनवरी, 2019 में जाकर निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता वाले डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल ने प्रोजेक्ट 75 भारत को अंतिम मंज़ूरी दी थी।
मौजूदा सरकार ने देश की सीमाओं की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया है। सरकार में ना सिर्फ रक्षा मंत्रालय का बजट बढ़ाया गया, बल्कि सशस्त्र बलों के लिए उत्तम हथियारों की भी व्यवस्था पर विशेष जोर दिया गया है।
इसी के तहत वायुसेना को दुनिया का सबसे तेज लड़ाकू विमान राफेल मिल सका है. तो थलसेना को भी तमाम अत्याधुनिक हथियारों मिले। इसी क्रम में अब केंद्र सरकार इंडियन नेवी को और अधिक शक्तिशाली बनाने में जुटी है।
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