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चीन की दुखती रग है अंडमान निकोबार, यहां समझिए जासूसी गुब्बारे का काला सच

अमेरिका ही नहीं, उससे पहले भारत के अंडमान पर भी मंडराया था ऐसा ही खतरा!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
8 February 2023
in रक्षा
Chinese Spy Balloon

Source- Google

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Chinese spy balloon: “चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से न जाए।” चीन की कुटिल नीतियों और उसके साम्राज्यवादी विचारधारा से आप सभी किसी न किसी रूप में परिचित होंगे। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि कुपित जिनपिंग के सपने बहुत बड़े हैं। तभी भारत, ताइवान, यहां तक कि फ़िजी जैसे देशों से पिटकर भी इनका मन नहीं भरा है और ये हर कीमत पर अपनी मंशा को पूरा करने को उद्यत हैं, चाहे उसके लिए जासूसी के सभी मापदंड क्यों न तोड़ने मरोड़ने पड़े। इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि कैसे चीनी प्रशासन अब “जासूसी गुब्बारों” (Chinese spy balloon) के माध्यम से हरसंभव जासूसी कर जानकारी जुटाने के लिए उद्यत हैं और कैसे उसकी नजरें भारत पर टिकी हुई है।

दरअसल, हाल ही में चीन का एक जासूसी गुब्बारा भारत के अंडमान एवं निकोबार के निकट देखा गया। अभी चीन द्वारा एलईडी बल्बों एवं इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण के माध्यम से जासूसी की अटकलें लोगों को पची भी नहीं थी कि ये सामने आया कि चीन का यह जासूसी गुब्बारा भारत भी आया था। वो कैसे? अमेरिका के डिफेंस एक्सपर्ट एचआई सटन के हवाले से कई मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिसंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच चीन के जासूसी गुब्बारों (Chinese spy balloon) ने भारत के सैन्य बेस की जासूसी की थी। इस दौरान चीन के जासूसी गुब्बारे ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के ऊपर से उड़ान भरी थी।

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भारत की जासूसी…

ध्यान देने योग्य है कि कैप्सूल के आकार के यह गुब्बारे कई वर्ग फीट बड़े होते हैं। यह जमीन से काफी ऊंचाई पर उड़ने की क्षमता रखते हैं, इस तरह के गुब्बारों का ज्यादातर इस्तेमाल मौसम से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए किया जाता रहा है। खासकर किसी एक तय क्षेत्र के मौसम को जानने के लिए। हालांकि, चीन जिस गुब्बारे (Chinese spy balloon) को उड़ा रहा था उसे जासूसी से जुड़ा बताया जा रहा है।

तो इसमें अंडमान निकोबार को किस प्रकार से नुकसान होता और यह भारत के लिए क्यों चिंता का विषय है? आपको बता दें कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह केवल ऐतिहासिक रूप से ही नहीं, अपितु सांस्कृतिक एवं सामरिक दृष्टिकोण से भी भारत के लिए एक अति महत्वपूर्ण द्वीप है। कहा जाता है कि दिसंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में अंडमान और निकोबार कमान (ANC) भारत की एकमात्र त्रि-सेवा कमान ने एक बहु-डोमेन अभ्यास संपन्न किया था। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के इस जासूसी गुब्‍बारे की तस्‍वीर तब ही सामने आई थी।

ठीक कुछ समय बाद 6 जनवरी को, पोर्ट ब्लेयर के ऊपर एक अज्ञात उच्च ऊंचाई वाले गुब्बारे के सार्वजनिक रूप से देखे जाने की सूचना सोशल मीडिया पर दी गई। सोशल मीडिया पर स्थानीय लोगों द्वारा तस्वीरें साझा की गई और एक स्थानीय समाचार पोर्टल द्वारा प्रकाशित तस्वीरों में चीनी जासूस गुब्बारे के साथ वहीं समानताएं दिखाई देती हैं, जो हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में मिले चीनी गुब्बारे (Chinese spy balloon) में देखी गई, जिसे बाद में अमेरिकी एफ-22 रैप्टर द्वारा मार गिराया गया।

अमेरिका में चीन का जासूसी गुब्बारा

ज्ञात हो कि अंडमान निकोबार में भारतीय सैन्याबलों का प्रथम एवं अति महत्वपूर्ण त्रिस्तरीय थियेटर कमांड सम्मिलित है, जिसमें थलसेना, वायुसेना एवं नौसेना, सभी के चुने हुए सैनिकों को तैनात किया जाता है। व्यापार एवं नौसेना की दृष्टि से भी अंडमान निकोबार द्वीप समूह एक महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसे में यदि चीन इस क्षेत्र की जासूसी करे और ये काफी समय बाद पता चले, तो निस्संदेह चिंता का विषय तो है ही।

वहीं, अंडमान निकोबार कमांड वह इकलौती कमान है जहां पर तीनों सेनाएं मौजूद हैं। अंडमान द्वीप भारत के लिए बहुत ही महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि भारत का ज्‍यादातर व्‍यापार इसी रास्‍ते स‍े होता है। चीन की गुस्‍ताखियों के बाद भी भारत यहां से व्‍यापार जारी है। जिस तरह से चीन हिंद महासागर पर अपनी शक्तियों को बढ़ा रहा है, उसे देखते हुए भारत ने मैरीटाइम सर्विलांस और क्षमताओं को बढ़ाया है। वर्ष 2001 में इस एकीकृत कमान की शुरुआत हुई थी। इसका गठन दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक जरूरतों को देखते हुए किया गया था। तब से ही इस क्षेत्र में मिलिट्री की क्षमताओं को बढ़ाया गया है। चीन की नौसेना लगातार हिंद महासागर क्षेत्र में सक्रिय हो रही है। अक्‍सर इस क्षेत्र में चीनी पनडुब्बियों को देखा गया है।

बता दें कि पहले अमेरिकी क्षेत्र और उसके बाद लैटिन अमेरिका में चीनी गुब्बारा (Chinese spy balloon) देखे जाने के बाद एक बार फिर से अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ गया है। स्थिति तो यह हो गई कि अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपना चीन का दौरा रद्द कर दिया है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन की तरफ से शुक्रवार यानी 03 फरवरी, 2023 की रात बयान जारी कर दूसरे चीनी गुब्बारे की जानकारी दी गई।

और पढ़ें: जयशंकर की एक चाल और चीनी ‘जासूसी जहाज’ श्रीलंका से बाहर

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बुधवार यानी 01 फरवरी, 2023 को एक चीनी गुब्बारा (Chinese spy balloon) अमेरिका के मोंटाना इलाके के ऊपर देखा गया था। अमेरिका का यह क्षेत्र संवेदनशील है। यहां अमेरिकी एयरफोर्स का बेस होने के साथ-साथ न्यूक्लियर मिसाइलें भी रखी हुई हैं। पेंटागन की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, गुब्बारे का आकार तीन बसों के बराबर है, जो 60 हजार फीट पर उड़ रहा है। गुब्बारे की जाँच के लिए लड़ाकू विमानों को भी उड़ाया गया था।

परंतु इससे चीन को क्या लाभ होगा और भारत के ऊपर जिस प्रकार चीनी “गुब्बारों” ने विचरण किया, वह भी अंडमान एवं निकोबार जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, तो इससे हमें क्यों सतर्क रहना चाहिए? यह सम्पूर्ण कथा उस समय से प्रारंभ होती है, जब श्रीलंका के महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह के निकट चीन ने अपना एक जासूसी युद्धपोत तैनात किया था और भारत ने उसे अपने आक्रामक कूटनीति के बल पर खाली हाथ लौटने पर विवश कर दिया था।

चीन ने भेजा था अपना जहाज

यह बात है अगस्त 2022 की। कई दिनों से चर्चा ज़ोरों पर थी कि श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का युआन वांग 5 जहाज़ आने वाला है, जो यहां 6 दिन रुकने के बाद आगे बढ़ता। कहने को चीन ने इस जहाज को अनुसंधान और सर्वेक्षण पोत के रूप में चिह्नित किया था परंतु भारतीय मीडिया के कुछ रिपोर्ट्स की माने, तो यह एक दोहरे उपयोग वाला जासूसी जहाज था।

इस 130 फीट बैलून में समा जाएंगी तीन बसें, 60 हजार फीट पर उड़ रहा है चीन का जासूसी#ChinaSpyBalloon #airspace https://t.co/ZvqRrK1A04

— TV9 Bharatvarsh (@TV9Bharatvarsh) February 4, 2023

युआन वांग 5 चीन के नवीनतम पीढ़ी के अंतरिक्ष-ट्रैकिंग जहाजों में से एक है जिसका उपयोग उपग्रह, रॉकेट और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की निगरानी के लिए किया जाता है। ये जहाज़ युआन वांग श्रृंखला की तीसरी पीढ़ी का ट्रैकिंग जहाज है जो साल 2007 में चीनी सेना में शामिल हुआ। इस जहाज़ को जियांगन शिपयार्ड में बनाया गया है। इतना ही नहीं, ऐसे जहाज़ मुख्य रूप से सैन्य उद्देश्यों के लिए चीन, फ्रांस, भारत, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेनाओं द्वारा उपयोग किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त उक्त चीनी पोत अपने ट्रैकिंग के लिए भी चर्चा का केंद्र बना हुआ था।

इसका सर्वेक्षण रेंज अथवा हवाई पहुँच 750 किलोमीटर के आसपास है, अर्थात् केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कई बंदरगाह चीन के रडार पर थे। इसका अर्थ जानते हैं आप? इसका अर्थ था कि लगभग समूचा दक्षिण भारत ही चीन के रडार पर होता और सामरिक ही नहीं, अन्य जानकारी भी चीन और उसके सहयोगियों के पहुंच में होती, जो निस्संदेह एक देश को बहुत अधिक लाभ देती।

इसी का अनुमोदन करते हुए एक रिपोर्ट का मानना था कि “ चीन द्दवारा दक्षिण भारत में कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की जासूसी करने की प्लानिंग थी क्योंकि हंबनटोटा से भारत के कई परमाणु संयत्रों की दूरी बहुत अधिक नहीं है, ऐसे में भारत की बड़ी जासूसी का खतरा था। यही वजह है कि भारत सरकार ने जहाज के आगमन को लेकर श्रीलंका से आपत्ति जताई थी।”

युआन वांग 5 का किया था भेजा फ्राई

ऐसे में केंद्र सरकार उसे कैसे हल्के में लेती? गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत हर तरफ से अपनी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना चाहता था। चीन ने श्रीलंका को अपने पाले में लेते हुए किसी भांति अपना जहाज तो पहुंचाया परंतु भारत ने भी उसे मजा चखा दिया।

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो भारत ने चीन द्वारा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक संयंत्र का दुरुपयोग करने की खुजली, उसी के विरुद्ध बड़े ही चतुराई के साथ प्रयोग में लिया। युआन वांग 5 द्वारा उत्पन्न हुए सुरक्षा खतरे का मुकाबला करने के लिए भारत ने चार उपग्रह और एक युद्धपोत तैनात किया। भारत द्वारा उपग्रहों का उपयोग चीनी जासूसी जहाज की निगरानी के लिए किया गया। इस उद्देश्य के लिए भारत ने दो जीसैट 7 उपग्रह, RI SAT, EMISAT जासूसी उपग्रह और नौसेना के संचार युद्धपोत को तैनात किया था।

भारत के सैन्य उपग्रहों रुक्मिणी और एंग्री बर्ड ने चीन को बखूबी जवाब देने का काम किया। EMISAT उपग्रह पर कौटिल्य इलेक्ट्रॉनिक खुफिया पैकेज का उपयोग करके सिग्नल परीक्षण किया गया। इसके अलावा बड़े पैमाने पर एंटीना, रडार, सेंसर, डेटा अवशोषित प्रणाली और चीनी जहाज पर निगरानी को भी इंटरसेप्ट किया गया। अल्ट्रा-हाई फ्रीक्वेंसी को पकड़ने के लिए एंग्री बर्ड का प्रयोग किया गया।

ऐसे में अब चीन द्वारा जासूसी गुब्बारा भेजना उसकी अधीरता को दर्शाता है कि कैसे भी करके भारत से और अन्य विरोधी देशों की जासूसी कर सूचना निकाली जा सके। परंतु भारत ने भी तय कर लिया है कि इस बार चीन की खैर नहीं। लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए भारत को अपना हर दांव बड़ी चतुराई से चलना होगा, चाहे कूटनीतिक हो या सामरिक। अब चीन अजेय भले न हो परंतु उसे हल्के में लेना भी कोई समझदारी की बात नहीं है।

और पढ़ें: चीनी विमानों की कार्यक्षमता का एहसास करने के बाद अब नेपाल उन्हें डंप करने हेतु पूरी तरह तैयार है

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