एक समय एक महोदय ने कहा था, “हमारी तरफ देखने की भी कोशिश की, तो इनका भी हश्र इंदिरा गांधी जैसा होगा” कॉन्फिडेंस देख रहे हैं? परंतु कितनी जल्दी यह कॉन्फिडेंस फुर्र हो गया, और अमृतपाल को भूमिगत होना पड़ा, ये किसी भी राजनीतिक विश्लेषक ने सोचा नहीं होगा।
इस लेख में पढिये कि कैसे भगवंत मान की पंजाब सरकार अमृतपाल सिंह के विरुद्ध एक्शन लेने को बाध्य हुई, और कैसे इसमें अमित शाह की महत्वपूर्ण भूमिका है।
प्रारंभ आम आदमी पार्टी की स्थापना से
हाल ही में खालिस्तानी उग्रवादी अमृतपाल सिंह के विरुद्ध पंजाब एक्शन मोड में आ चुकी है। परंतु इस कथा का प्रारंभ होता है 2013 से, जब आम आदमी पार्टी की स्थापना हुई थी। अब आप सोच रहे हैं कि अमृतपाल सिंह और AAP की स्थापना में क्या कनेक्शन? कनेक्शन है, जिसके लिए आम आदमी पार्टी के इतिहास पर ध्यान देना होगा।
जब अरविन्द केजरीवाल ने “India Against Corruption” अभियान की सफलता देखी, तो उन्होंने राजनीति में अपना भाग्य आजमाने का निर्णय लिया। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों से गणमान्य सदस्यों को आमंत्रित किया। चाहे प्रशासन में कुशल किरण बेदी हो, या फिर विधि के क्षेत्र में दक्ष भूषण परिवार [शांति भूषण एवं प्रशांत भूषण], कवि कुमार विश्वास हो या फिर हास्य कलाकार जैसे भगवंत मान, गुरप्रीत गुग्गी, समाजशास्त्री योगेंद्र यादव या फिर पत्रकार आशुतोष एवं आशीष खैतान, केजरीवाल ने चुनचुनकर अपनी पार्टी को ऐसे लोगों से समृद्ध बनाया।
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इसका असर प्रारम्भिक चुनावों में भी दिखा। आम आदमी पार्टी ने सभी को चौंकाते हुए 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जोड़ तोड़कर अपनी सरकार बनाई, और 49 दिन के लिए ही सही, परंतु अरविन्द केजरीवाल ने प्रशासन संभाला। परंतु परदे के पीछे से सभी गतिविधियों का संचालन केजरीवाल के “विश्वासपात्र” मनीष सिसोदिया कर रहे थे। अगर केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का प्रचार प्रसार कर रहे थे, तो सिसोदिया दिल्ली को एक ‘अभेद्य गढ़’ के रूप में विकसित कर रहे थे।
सत्ता के लिए उग्रवाद को भी बढ़ावा दो
परंतु शीघ्र ही आम आदमी पार्टी के बारे में दो बातें स्पष्ट हो गई : एक तो अरविन्द केजरीवाल से बड़ा पार्टी में कोई नहीं हो सकता, और दूसरा कि सत्ता में बने रहने के लिए ये पार्टी किसी भी स्तर तक जाने को तैयार है।
वो कैसे? जब जब अरविन्द केजरीवाल को लगा कि कोई उनसे अधिक प्रभावी हो रहा है, उसका पत्ता बड़ी ही सफाई से काटा गया है। पिछले 8 वर्षों में केजरीवाल मंत्रिमंडल से अब तक 7 मंत्रियों को कुर्सी छोड़नी पड़ी है। इनमें जितेंद्र तोमर, कपिल मिश्रा, संदीप सिंह, राजेंद्र पाल गौतम, आसिम खान, सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया का नाम सम्मलित हैं।
केवल इतना ही नहीं, जिन लोगों ने वैचारिक तौर पर केजरीवाल का विरोध किया, उन्हे भी अरविन्द केजरीवाल ने या तो पार्टी छोड़ने पर विवश कर दिया, नहीं तो अपमानित करते हुए पार्टी से बाहर निकाला। उदाहरण के लिए योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को जिस तरह से धक्के मारकर पार्टी से निकाला गया, वह किसी से छुपा नहीं है।
इतना ही नहीं, जब कुमार विश्वास ने केजरीवाल के भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति पर प्रश्न उठाया, तो उन्हे भी इतना सताया गया कि अंत में उन्होंने पार्टी छोड़ना ही उचित समझा।
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यहाँ तक कि जब आबकारी घोटाले से केजरीवाल को अपनी सत्ता छिनने का खतरा स्पष्ट दिखाई पड़ा, तो मनीष सिसोदिया को भी वैसे ही निकाल फेंका, जैसे चाय में से मक्खी! अब केवल राघव चड्ढा और भगवंत मान ही ऐसे राजनेता बचे हैं, जो यदि केजरीवाल से बेहतर नहीं, तो उनके जितने ही प्रभावी है।
परंतु इन सबका खालिस्तान, विशेषकर अमृतपाल सिंह वाले मामले से क्या नाता है? स्मरण है 2017 के विधानसभा चुनाव? इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अपना सब कुछ झोंक दिया, और भले ही वे सरकार नहीं बना पाए, परंतु उन्होंने प्रमुख विपक्षी पार्टी का तमगा प्राप्त कर लिया। इसी के बाद जहां एक ओर आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने लगी, तो वहीं पंजाब के वोट शेयर पर कब्ज़ा जमाने के लिए इन्होंने अराजक तत्वों से भी हाथ मिलाने में कोई हिचक नहीं दिखाई। विश्वास नहीं होता तो 2022 की प्रचंड बहुमत के बाद जिस प्रकार से पंजाब में उग्रवाद बढ़ा है, उसके आँकड़े ही बताने के लिए काफी है कि सत्ता प्राप्ति के लिए केजरीवाल और आम आदमी पार्टी किस स्तर तक जा सकती है।
भगवंत मान को सिसोदिया न समझे
तो अब प्रश्न उठता है, कि सत्ता प्राप्ति के लिए इस हद तक जाने वाली AAP की पंजाब सरकार अचानक अमृतपाल जैसे व्यक्ति को पकड़ने के लिए कैसे उद्यत हुई, और इसका अमित शाह से क्या कनेक्शन है? जैसा कि पहले बताया, भगवंत मान और राघव चड्ढा ही अब AAP में प्रभावी नेता के रूप में बचे हैं।
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परंतु राघव चड्ढा से केजरीवाल को कोई खतरा नहीं, क्योंकि कुछ सूत्रों के अनुसार वे जल्दी ही केजरीवाल परिवार के सदस्य बन सकते हैं, और ऐसे में तो उन्हे दिल्ली ही उपहार में मिल जाएगी।
So Amritpal Singh declared fugitive. As many news outlets suggested he is arrested, but he was not.
Possibilities to be unfolded with time- agencies have some 'other plan' to eliminate him or provided safe passage to be disappeared. Keeping him in custody for (given the courts… https://t.co/4t6qblP44Y pic.twitter.com/ONP9XBDZiC— The Hawk Eye (@thehawkeyex) March 18, 2023
परंतु भगवंत मान की बात अलग है। भले ही लोग उन्हें प्रशासन के लिए कम, और उनके विवादों के लिए अलग जानते हो, परंतु वे पंजाब के मुख्यमंत्री हैं, दिल्ली जैसे “आधे राज्य” के नहीं। इसके अतिरिक्त जब अजनाला का विवाद राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा में आया, तो गृह मंत्री अमित शाह बहुत क्रोधित हुए, और उन्होंने भगवंत के साथ एक विशेष मीटिंग की। इसके बाद ही जी 20 सम्मेलन हेतु CRPF एवं RAF की कुछ विशेष टुकड़ी पंजाब भेजी गई, जो मात्र संयोग नहीं हो सकता। इतना ही नहीं, गृह मंत्रालय पंजाब सरकार से निरंतर संपर्क में बनी हुई, ऐसे में उनकी आँखों में धूल झोंकने का दुस्साहस करना इस समय भगवंत के बस की बात नहीं।
As per multiple media reports MHA in constant touch with Punjab Govt; #AmritpalSingh likely to be booked under NSA
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) March 18, 2023
कहीं न कहीं भगवंत मान को ये बात समझ में आ गई होंगी कि यदि सत्ता में बने रहने, तो औपचारिकता के लिए सही, परंतु ये उग्रवाद प्रेम त्यागना होगा। अन्यथा इतनी आसानी से अमृतपाल सिंह एवं “वारिस पंजाब दे” के सदस्यों के पीछे पंजाब पुलिस सक्रिय हो जाए, कभी सोचा है? अमृतपाल सिंह अभी कहाँ है, ये एक रहस्य है, परंतु इतना तो स्पष्ट है, भगवंत मान चाहके भी सिसोदिया वाली भूल नहीं दोहरा चाहेन्गे, और यहीं पर वे अरविन्द केजरीवाल से अलग और सशक्त दिखाई पड़ते हैं।
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