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जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर: कैसे समरकन्द का भगोड़ा बना मुगल साम्राज्य का संस्थापक

और कुछ लोग आज भी मुगलों को महान बताते हैं।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
24 April 2023
in इतिहास
जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर: कैसे समरकन्द का भगोड़ा बना मुगल साम्राज्य का संस्थापक
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जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर: जब NCERT ने मुगलों के उल्लेख को इतिहास के पुस्तकों से हटाया, तो कई लोग द्रवित थे, और आप विश्वास नहीं मानोगे, उन लोगों में मैं भी सम्मिलित था। इसलिए नहीं कि मुगल महान थे, अपितु मुझे चिंता इस बात की अधिक थी कि मुगलों का वास्तविक रूप कौन बताएगा? अगर सुधार करना ही है तो मुगलों का वो रूप दिखाइए जो कोई वामपंथी नहीं चाहता, जैसे अय्याश अकबर, नशेड़ी जहांगीर, और इनके भगोड़े परदादा बाबर को कैसे भूल सकते हैं?

इस लेख में पढिये जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर के वास्तविक रूप को, और कैसे एक भगोड़े ने मुगलों को भारत में बसाया।

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न घर का न घाट का

सब योद्धा वीर हम्मीर की भांति तो नहीं हो सकते, जो अपने ग्राम सिसोद से निकल मेवाड़ पहुंचे, और उसे राजपूताना का गौरव बना दे। कुछ जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर जैसे अपरिपक्व भगोड़े भी होते है। वैसे बाबर और बाबर आज़म में एक बात समान है : दोनों को उनकी औकात से ज़्यादा प्रशंसित किया गया है।

वैसे बाबर आधा मँगोल और आधा उज़बक था। हाँ हाँ ठीक ही सुने है, परंतु उधर फोकस कम करते हैं, और ये देखते हैं कि ई माणूस, जो उज्बेकिस्तान में जन्मा, भारत तक कैसे पहुंचा?

बाबर का जन्म फ़रग़ना वादी के अन्दीझ़ान नामक शहर में हुआ था जो अब उज्बेकिस्तान में है। वो अपने पिता उमर शेख़ मिर्ज़ा, जो फरगना घाटी के शासक थे तथा जिसको उसने एक ठिगने कद के तगड़े जिस्म, मांसल चेहरे तथा गोल दाढ़ी वाले व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है, तथा माता कुतलुग निगार खानम का ज्येष्ठ पुत्र था। जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर जिस मंगोल जाति (जिसे फ़ारसी में मुगल कहते थे) का होने के बावजूद उसकी जनता और अनुचर तुर्क तथा फ़ारसी लोग थे। उसकी सेना में तुर्क, फारसी, पश्तो के अलावा बर्लास तथा मध्य एशियाई कबीले के लोग भी थे।

जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर कहने को व्यक्तित्व से हृष्टपुष्ट था, परंतु दिमाग से….. परंतु एक बात अनदेखी नहीं की जा सकती, उसकी इच्छाशक्ति काफी मजबूत थी। मात्र 12 वर्ष की आयु में उसे फ़रगना घाटी के शासक का पद सौंपा गया। उसके चाचाओं ने इस स्थिति का फ़ायदा उठाया और बाबर को गद्दी से हटा दिया। कई सालों तक उसने निर्वासन में जीवन बिताया जब उसके साथ कुछ किसान और उसके सम्बंधी ही थे। 1496 में उसने उज़्बेक शहर समरकंद पर आक्रमण किया और 7 महीनों के बाद उसे जीत भी लिया। लेकिन परिस्थिति ऐसी बनी कि न वे समरकन्द पर शासन कर पाए, और नही फरगना प्राप्त कर पाए। इसी बीच, जब वह समरकंद पर आक्रमण कर रहा था तब, उसके एक सैनिक सरगना ने फ़रगना पर अपना अधिपत्य जमा लिया। जब बाबर इसपर वापस अधिकार करने फ़रगना आ रहा था तो उसकी सेना ने समरकंद में उसका साथ छोड़ दिया जिसके फलस्वरूप समरकंद और फ़रगना दोनों उसके हाथों से चले गए।

और पढ़ें:- पंचशील सिद्धांत जिस पर अड़कर नेहरू ने भारत की छवि ‘एक दुर्बल देश’ के रूप में प्रस्तुत की

भगोड़ा जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर आया काबुल

फरगना से अपने चन्द वफ़ादार सैनिकों के साथ भागने के बाद अगले तीन सालों तक उसने अपनी सेना बनाने पर ध्यान केन्द्रित किया। इस क्रम में उसने बड़ी मात्रा में बदख़्शान प्रांत के ताज़िकों को अपनी सेना में भर्ती किया। सन् 1504 में हिन्दूकुश की बर्फ़ीली चोटियों को पार करके उसने काबुल पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। नए साम्राज्य के मिलने से उसने अपनी किस्मत के सितारे खुलने के सपने देखे। कुछ दिनों के बाद उसने हेरात के एक तैमूरवंशी हुसैन बैकरह, जो कि उसका दूर का रिश्तेदार भी था, के साथ मुहम्मद शायबानी के विरुद्ध सहयोग की संधि की। पर 1506 में हुसैन की मृत्यु के कारण ऐसा नहीं हो पाया और उसने हेरात पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। पर दो महीनों के भीतर ही, साधनों के अभाव में उसे हेरात छोड़ना पड़ा।

धीरे धीरे काबुल में अपना आधिपत्य जमाने के बाद बाबर की आँखें भारत की ओर गई। इन्हे लगा कि दिल्ली सल्तनत तो किसी तैमूरवंशी के पास ही होनी चाहिए, और इसी उद्देश्य से वे भारत पर धावा बोल दिए। 1526 में पानीपत के मोर्चे पर बाबर ने इब्राहिम लोदी को पटकते हुए मुगल वंश की नींव रखी। अगर शिलादित्य तोमर ने विश्वासघात नहीं किया होता, तो राणा सांगा ने बाबर की भारत में आधिपत्य जमाने की इच्छा को लगभग नष्ट ही कर दिया था।

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भारत से थी विशेष घृणा

परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं थी। बाबर केवल भारत को लूटना चाहता था, और यहाँ के सनातनियों एवं सनातन संस्कृति से उसे विशेष घृणा थी। ये उसके बाबरनामा तक में स्पष्ट है, जहां ये लिखता है,

“हिन्दुस्तान में आकर्षण बहुत कम है। यहाँ के लोग अच्छे नहीं है, सामाजिक आदान प्रदान, भुगतान और प्राप्त करने के लिए वहाँ कोई नहीं है, यहाँ कोई प्रतिभा और क्षमता नहीं है, कोई शिष्टाचार नहीं, हस्तकला और कार्य में कोई रूप या समरूपता, विधि या गुणवत्ता नहीं है; कोई अच्छा घोड़ा, कोई अच्छा कुत्ता, कोई अंगूर, कस्तूरी या पहले दर्जे का फल, बर्फ या ठंडा पानी, कोई अच्छी रोटी या बाजरे में पका हुआ भोजन, कोई गर्म-स्नान, कोई मदरसा, कोई मोमबत्ती, मशाल या मोमबत्ती उपलब्ध नहीं है”।

आज जब कोई मुगलों को महान बताता है, तो क्रोध कम, हंसी अधिक आती है। जिनका पूर्वज भगोड़ा, जिसका उत्तराधिकारी भगोड़ा, जिसके पोते भगोड़े, वो वीर और महान कैसे हुए, पूछता है भारत!

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