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वार्नर ब्रदर्स और डिज़्नी भारत में क्यों विफल रहे?

असफल महत्वकांक्षाओं की एक अनकही कथा

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
20 July 2023
in चलचित्र
वार्नर ब्रदर्स और डिज़्नी भारत में क्यों विफल रहे?
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भारत को यूँ ही “सोने की चिड़िया” नहीं कहा जाता है. ये किसी भी उद्योग के लिए असीमित सागर सामान है, जिसमें जितना गहरा जाओ, रत्न और संसाधन मिलेंगे। इसी के पीछे  देश को अधीनता के कई प्रयासों का सामना करना पड़ा है, और प्रभुत्व के लिए संघर्ष राजनीति के दायरे से परे तक फैला हुआ है। हालाँकि, जब कॉन्टेंट की बात आती है, तो यहाँ कथा तनिक अलग है.

इस लेख में जानिये वॉर्नर और डिज़्नी के असफल भारत यात्रा, और किन कारकों ने भारतीय कंटेंट स्पेस पर कब्जा करने में वार्नर ब्रदर्स और डिज़नी को विफल किया ।

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“श्रीगणेश ही गलत!”

१९९१ में केवल भारतीय अर्थव्यवस्था का ही उदारीकरण नहीं हुआ था, अपितु भारतीय सिनेमा का भी उदारीकरण हुआ था. अब ऐसे में अमेरिकी कंटेंट दिग्गजों ने सोचा, क्यों न भारत में ट्राई किया जाए?

भारतीय कॉन्टेंट क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रारंभिक प्रयास 20वीं सेंचुरी फॉक्स की ओर से हुआ, जब उन्होंने 90 के दशक के अंत में भारतीय फिल्मों के वितरण में कदम रखा। हालाँकि, उन्हें सीमित सफलता का सामना करना पड़ा और इन फिल्मों के लिए खरीदार ढूंढने में संघर्ष करना पड़ा।

और पढ़ें: बच्चों के पसंदीदा होने से लेकर ‘वोक्स’ के फेवरेट होने तक- ये रही ‘वॉल्ट डिज्नी’ की अद्भुत गाथा

इस शुरुआती झटके ने भारतीय फिल्म उद्योग की अनूठी प्रकृति को उजागर किया, जो दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए ताज़ा और नवीन कहानी कहने की मांग करता है। पिछली सफलताओं को दोहराना इस गतिशील परिदृश्य में भविष्य की जीत की गारंटी नहीं देता है।

लेकिन इससे अविचलित होते हुए कई प्रोडक्शन दिग्गजों ने भारत में धड़ाधड़ निवेश किया. इनमें अग्रणी था वॉर्नर ब्रदर्स, जिसकी फिल्मों की एक झलक के लिए लोग लालायित रहते हैं. 2007 के अंत में वॉर्नर ब्रदर्स भारतीय बाजार पर सीधा धावा बोला। हालाँकि, उनकी आकांक्षाएँ अल्पकालिक थीं क्योंकि उन्हें अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेहमैन ब्रदर्स संकट और “चांदनी चौक टू चाइना” जैसी निराशाजनक फिल्में महत्वपूर्ण बाधा साबित हुईं। सर्किट की ज़ुबानी बोले, “भाई ये तो शुरू होते ही खत्म हो गया!”

ज़िद्दी डिज्नी

परन्तु इस अनुभव से डिज़्नी ने कुछ नहीं सीखा. अपने प्रभाव को बढ़ाने हेतु इन्होने YRF [यश राज फिल्म्स] के साथ अनुबंध किया, परन्तु हाथ कुछ न लगा. २०११ में इन्होने प्रभावशाली यूटीवी मोशन पिक्चर्स का अधिग्रहण किया, जिसका सञ्चालन रॉन्नी स्क्रूवाला, सिद्धार्थ रॉय कपूर और ज़रीना मेहता जैसे दिग्गजों के हाथ में था. परन्तु डिज्नी एक छोटी सी बात भूल गई : किसी भी क्षेत्र के बारे में कुछ बेसिक समझ और विश्लेषण होनी ही चाहिए.

डिज़्नी की गहन बाज़ार अनुसंधान की कमी और भारतीय दर्शकों की सटीक समझ के कारण कई गलतियाँ हुईं। उनकी “मोहनजो दारो,” “फितूर,” “तमाशा,” “कट्टी बट्टी,” और “फैंटम” जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल साबित हुईं। यहां तक कि 2017 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई बहुप्रतीक्षित रणबीर कपूर अभिनीत फिल्म “जग्गा जासूस” भी इनकी इज्जत बचाने में असफल रही। “जग्गा जासूस” ने तो डिज़्नी इंडिया पर ताला ही लगा दिया। भले ही फॉक्स स्टार को डिज़्नी द्वारा अधिगृहीत कर लिया गया, लेकिन उनकी किस्मत में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। “ब्रह्मास्त्र” का हाल याद दिलाएं?

और पढ़ें: बस अपनी Disney subscription रद्द करें, यह अब आपके बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है

इसी कारणवश वार्नर ब्रदर्स, डिज़नी और सोनी और फॉक्स स्टार सहित कई अन्य वैश्विक संस्थाओं को भारत में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सोनी “सांवरिया” के साथ लड़खड़ा गई, वहीँ फॉक्स स्टार को “बॉम्बे वेलवेट” के कारण फजीहत झेलनी पड़ी। ये उदाहरण भारतीय फिल्म उद्योग की जटिल बारीकियों को समझने और भारतीय दर्शकों के दिलों पर कब्जा करने में अंतरराष्ट्रीय स्टूडियो के सामने आने वाली कठिनाइयों को उजागर करते हैं।

रिलायंस का भौकाल

इस सम्पूर्ण प्रकरण में केवल एक ही अपवाद उभरा है : वायकॉम,  वह भी रिलायंस लिमिटेड के साथ इसके सहयोग के कारण। रिलायंस और वायाकॉम के बीच साझेदारी ने एक मजबूत मनोरंजन साम्राज्य की स्थापना को सक्षम बनाया। JioCinema और JioStudios जैसे प्लेटफार्मों में रिलायंस के रणनीतिक निवेश ने बाजार में हलचल मचा दी है, जिससे आने वाले समय में कॉन्टेंट जगत में इनका प्रभाव बढ़ना तय है!

JioCinema और JioStudios जैसे मनोरंजन प्लेटफार्मों में रिलायंस के भारी निवेश ने अमेज़ॅन और डिज़नी + सहित वैश्विक खिलाड़ियों को असहज महसूस कराया है, खासकर खेल आयोजन प्रसारण के मामले में। रिलायंस का ग्राहक सेवा मॉडल, भारतीय दर्शकों को समझने की प्रवृत्ति के साथ मिलकर, उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्टूडियो से अलग करता है।

इसके अतिरिक्त, “वोक” कॉन्टेंटके प्रति वैश्विक स्टूडियोज़ के झुकाव ने उन्हें भारतीय बाजार से अलग कर दिया है, जिससे निकट भविष्य में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल करने की उनकी संभावना कम हो गई है। आगे की जानकारी नेटफ्लिक्स से पूछिए.

भारत में वार्नर ब्रदर्स और डिज़्नी की विफलताएँ एक विविध और लगातार विकसित हो रहे बाज़ार में प्रवेश करने से जुड़ी अनूठी चुनौतियों को रेखांकित करती हैं। सफलता की कुंजी भारतीय संस्कृति की बारीकियों को समझने, दर्शकों को प्रभावित करने वाली सामग्री प्रदान करने और उद्योग की गतिशील प्रकृति को अपनाने में निहित है। संक्षेप में, जो भारत और भारतीयों को समझने में सफल होगा, वही कॉन्टेंट जगत पे राज करेगा!

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