“गरज रहे हुनमान गगन में, मथुरा की तैयारी है। काम हो गया अवधपुरी का अब काशी बारी है।” श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई है। कुल 5 लोगों को यह रिपोर्ट दी गई है।
839 पेज की रिपोर्ट में वुजूखाने को छोड़कर हर कोने का एक-एक ब्योरा है। ज्ञानवापी की दीवारों से लेकर शिखर तक का ब्योरा एएसआई ने इसमें लिखा है। ज्ञानवापी के अंदर एएसआई को क्या-क्या मिला और क्या-क्या दिखा इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। जो वस्तुएं यहां से मिली थी उसे पहले ही प्रशासन की कस्टडी में दिया जा चुका है।
अधिवक्ता विषणु शंकर जैन ने दी जानकारी
हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता विषणु शंकर जैन ने बताया कि ज्ञानवापी में मंदिर का स्ट्रक्चर मिला है। उनका कहना है कि बाबा मिल गए हैं। सर्वे रिपोर्ट से सब कुछ साफ हो गया। मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई, यह भी पता चल गया।
विष्णु जैन ने कहा कि एएसआई ने अपनी रिपोर्ट कहा है कि 1669 में मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया है। वर्तामान ढांचे का निर्माण भी मंदिर के अवशेष पर करया गया है। जैन ने बताया कि गुंबद केवल साढ़े तीन सौ वर्ष पुराना है। कई स्थानों पर मंदिर के अवशेष मिले हैं। कई पीलर पर देवी देवताओं के चित्र मिले हैं। देवनागरी और संस्कृत में कई श्लोक लिखे हैं।
जैन ने बताया कि नागर शैली के कई ऐसे निशान मिले हैं जो बताते हैं कि एक हजार वर्ष पुराने हैं। जबकि मस्जिद केवल साढ़े तीन सौ वर्ष पुरानी है। विष्णु जैन ने कहा कि अब हिंदुओं को पूजा-पाठ की अनुमति मिलनी चाहिए। दूसरी तरफ से मुस्लिम पक्ष ने कानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाने का एलान किया है।
रिपोर्ट में मिले कई साक्ष्य
विष्णु जैन ने बताया कि एएसआई की सर्वे रिपोर्ट में ज्ञानवापी परिसर में जनार्दन, रुद्र और विश्वेश्वर के शिलालेख मिले हैं। एएसआई ने सर्वे के दौरान एक पत्थर पाया जो टूटा हुआ था। ऐसे में जदूनाथ सरकार की फाइंडिंग को सही पाया गया। 1669 में 2 सितंबर को मंदिर ढहाया गया था। जो पिलर थे पहले के मंदिर के उनका उपयोग मस्जिद के लिए किया गया। जो तहखाना S2 है, उसमें हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां थी।
विष्णु शंकर जैन ने बताया कि एएसआई रिपोर्ट में कहता है कि पश्चिमी दीवार एक हिंदू मंदिर का हिस्सा है। उसे आसानी से पहचाना जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, 17वीं शताब्दी में मंदिर तोड़ा गया था, फिर उसे मस्जिद बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया। एएसआई ने रिपोर्ट में कहा है कि यहां मस्जिद से पहले हिंदू मंदिर का स्ट्रक्चर था। वहीं हिंदू पक्षकारों का कहना है कि अब सील वजूखाना की एएसआई सर्वे की मांग सुप्रीम कोर्ट से करेंगे।
जानिए सर्वे रिपोर्ट में क्या-क्या लिखा, पढ़ें 12 बड़ी बातें
- ASI ने 839 पन्ने की रिपोर्ट तैयार की है, जो बताती है कि मस्जिद से पहले वहां हिंदू मंदिर था।
- सर्वे में 32 ऐसे जगह प्रमाण मिले हैं, जो बताते हैं कि वहां पहले हिंदू मंदिर था।
- ASI ने जदुनाथ सरकार के इस निष्कर्ष पर भरोसा जताया है कि 2 सितंबर 1669 को मंदिर ढहा दिया गया था।
- देवनागरी, ग्रंथा, तेलुगु, कन्नड़ में लिखे पुरालेख मिले हैं।
- जनार्दन, रुद्र और विश्वेश्वर के बारे में पुरालेख मिले हैं।
- एक जगह महामुक्ति मंडप लिखा है, जो ASI के मुताबिक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है।
- मंदिर ढहाए जाने के बाद उसके स्तंभों का इस्तेमाल मस्जिद बनाने में किया गया।
- तहखाना S2 में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां थीं।
- ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार एक हिंदू मंदिर का हिस्सा थी, उसे आसानी से पहचाना जा सकता है।
- तहखाने में मिट्टी के अंदर दबी ऐसी आकृतियां मिलीं जो उकेरी हुई थीं।
- एक कमरे में अरबी और फारसी में लिखे पुरालेखों में मिले हैं जो बताते हैं कि मस्जिद औरंगजेब के शासनकाल के 20वें वर्ष यानी 1667-1677 में बनी।
- सर्वे में जो पुरालेख मिले हैं, उनमें तीन नामों का जिक्र प्रमुखता से है- जनार्दन, रूद्र, उमेश्वर।
क्या है विवाद
हिन्दू पक्ष का मानना है कि विवादित स्थल 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र धार्मिक स्थल है जो धार्मिक दृष्टि से हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और अब इसी स्थल पर मस्जिद का निर्माण हो चुका है। वर्ष 1669 में क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने प्राचीन हिन्दू मंदिर को धराशायी कर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। आज जिस जगह काशी विश्वनाथ मंदिर स्थ्ति है, ठीक उसी से सटी जमीन पर यह मस्जिद है लेकिन हिन्दू पक्ष के लोग मानते हैं कि जिस जगह पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थापित था, वह अब मस्जिद में तब्दील हो चुकी है।
दरअसल, ज्ञानवापी परिसर में मंदिर तोड़कर किए गए मस्जिद निर्माण के बारे में कभी कोई संशय रहा ही नहीं। न सिर्फ मस्जिद स्थल पर साक्ष्य चीख-चीख कर मंदिर ध्वस्तीकरण की गवाही देते हैं, बल्कि औरंगजेब का राजकीय अभिलेख ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ स्वयं बादशाह के आदेश पर काशी विश्वनाथ समेत अनेक मंदिरों के ध्वस्तीकरण को बड़ी शान से दर्ज करता है।
ज्ञानवापी मस्जिद को देखकर कोई बात चौंकाती है तो बस यह कि हिंदुओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण मंदिर को तोड़कर बनाई गई मस्जिद में विध्वंस के स्पष्ट दिखते चिन्हों के बाद भी कोई संवेदनशील व्यक्ति वहां इबादत कैसे कर सकता है? कैसे मजहबी उन्माद में तोड़े गए मंदिरों पर बनाई गई मस्जिदों को कोई अपनी अस्मिता का प्रतीक बना सकता है? यदि इसके सिवा कोई और बात हैरान करती है तो वह है भारत के तथाकथित सेक्युलर वर्ग की ढिठाई।
ज्ञानवापी मस्जिद में न्यायालय जो भी निर्णय दे, वह सबको मंजूर होना चाहिए, मगर न्यायिक फैसले सामाजिक वैमनस्य को कभी कम नहीं कर पाएंगे। भारतीय सभ्यता पर इस्लामी आक्रांताओं के घाव गांव-गांव, शहर-शहर इतने फैले हुए हैं कि सत्य से साक्षात्कार के बिना सुलह-समन्वय नहीं बन पाएगा।