ओबीसी आरक्षण पर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने जिस तरह से कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्णय पर उंगली उठाई है, उससे तो यही लग रहा है कि राजनीतिक वोट बैंक के लिए संविधान की जितनी अवमानना की जा सकती है, वह की जाती रहेगी, औऱ सामनेवाले को घेरने के लिए उसी संविधान की आड़ भी ली जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में इंडी गठबंधन के सत्ता में आते ही एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण को मुस्लिमों को देने की बात कह रहे हैं, वह भी इस घटना से साफ होता नजर आ रहा है। धर्म के आधार पर आरक्षण भारतीय संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों के खिलाफ है।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने क्या कहा
कलकत्ता हाई कोर्ट ने 22 मई को पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद जारी ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द करने का आदेश दिया है। जस्टिस तपोब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथर की बेंच ने कहा कि 2011 से प्रशासन ने किसी नियम का पालन किए बगैर ओबीसी सर्टिफिकेट जारी कर दिए गए । इस तरह से ओबीसी सर्टिफिकेट देना असंवैधानिक है।
यह सर्टिफिकेट पिछड़ा वर्ग आयोग की कोई भी सलाह माने बगैर जारी किए गए। इसलिए इन सभी सर्टिफिकेट को कैंसिल कर दिया गया है। हालांकि यह आदेश उन लोगों पर लागू नहीं होगा, जिन्हें पहले नौकरी मिल चुकी या मिलने वाली है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 के आधार पर ओबीसी की नई सूची पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग तैयार करेगी।
न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार को 1993 के कानून के मुताबिक आयोग की सिफारिश विधानसभा को सौंपनी होगी। इसी के आधार पर ओबीसी की लिस्ट बनाई जाएगी। तपोब्रत चक्रवर्ती की बेंच ने कहा, ‘ओबीसी किसे माना जाएगा, इसका फैसला विधानसभा करेगी। बंगाल पिछड़ा वर्ग कल्याण को इसकी सूची तैयार करनी होगी। राज्य सरकार उस लिस्ट को विधानसभा में पेश करेगी। जिनके नाम इस लिस्ट में होंगे उन्हीं को ओबीसी माना जाएगा।
ममता की चेतावनी, नहीं मानेंगी न्यायालय के निर्णय को
हाईकोर्ट के फैसले के तुरंत बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ कहा कि वह हाईकोर्ट और भाजपा के आदेश को नहीं मानेंगी। राज्य में ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा। एक रैली में ममता ने कहा कि जरा इन लोगों की हिम्मत तो देखिए। ये हमारे देश का एक कलंकित अध्याय है।
दरअसल, ममता सरकार के ओबीसी आरक्षण देने के फैसले के खिलाफ वर्ष 2011 में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इसमें दावा किया गया कि 2010 के बाद दिए गए सभी ओबीसी सर्टिफिकेट 1993 के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम को दरकिनार कर दिए गए।
जो लोग वास्तव में पिछड़े वर्ग से थे, उन्हें उनके सही सर्टिफिकेट नहीं दिए गए। अब 13 साल बाद फैसला आया है, जिस पर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हर साल कितने लाख लोग गैर संविधानिक तरीके से आरक्षण का लाभ ममता राज में उठा चुके हैं, जिसमें कि अधिकांश एक विशेष वर्ग इस्लाम को माननेवाले मुसलमान हैं।
ममता बनर्जी ओबीसी आरक्षण खत्म करना चाहती हैं– अमित शाह
इस प्रकरण में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की प्रतिक्रिया भी सामने आई है, उन्होंने साफ कहा है कि यह पूरा मामला मुस्लिम जातियों को ओबीसी में शामिल करने का है, जिसमें हाई कोर्ट ने स्थगित का आदेश दिया है। मैं हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं। ममता बनर्जी ओबीसी आरक्षण खत्म करना चाहती थीं। मुसलमानों को ओबीसी में शामिल किया गया, ये हाईकोर्ट का फैसला है, बीजेपी का नहीं। हम सुनिश्चित करेंगे की हाई कोर्ट के फैसले का पालन हो। एससी, एसटी और पिछड़ों का आरक्षण छीनकर यह मुस्लिमों को देना चाहते हैं लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।
यहां अमित शाह ने यह भी बताया कि कैसे ममता बनर्जी ने ओबीसी आरक्षण मुसलमानों को देने का खेल किया है। अमित शाह कहते हैं कि ममता बनर्जी सर्वे कराए बिना 118 मुसलमानों को आरक्षण दिया। अब कोई कोर्ट चला गया तो अदालत ने मामले पर संज्ञान लेते हुए 2010 से 2024 के बीच दिए सभी ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द कर दिए । अब ममता बनर्जी कह रही हैं कि वह कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करेंगीं । मैं जनता से पूछना चाहता हूं कि क्या कोई ऐसा मुख्यमंत्री होगा जो कहेगा कि वो कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करेगा। मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूं।
ओबीसी सूची में बांग्लादेशी और रोहिंग्या भी शामिल
पिछले साल राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने पश्चिम बंगाल सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे । उन्होंने कहा कि बंगाल की ओबीसी सूची में बांग्लादेशी प्रवासियों और कुछ रोहिंग्याओं को शामिल किए जाने की भी शिकायतें मिली हैं। बंगाल राज्य सूची में 179 ओबीसी समूहों में से 118 मुस्लिम समुदाय के हैं।
एनसीबीसी मामले की जांच कर रहा है और राज्य से समस्या का समाधान करने को कहा है। एनसीबीसी प्रमुख हंसराज अहीर का कहना है कि इतनी सारी मुस्लिम जातियों को ओबीसी का दर्जा देने के पीछे तुष्टिकरण की राजनीति है। उनका ममता सरकार पर आरोप है कि बंगाल में ओबीसी समुदायों को श्रेणी ए और बी में विभाजित किया गया है।
श्रेणी ए में अधिक संख्या में पिछड़ी जातियां सूचीबद्ध हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत मुस्लिम जातियां हैं। उन्होंने दावा किया कि श्रेणी बी में, जिसका लाभ कम है उसमें 54 प्रतिशत हिंदू जातियां हैं। अहीर बोले कि मेडिकल कॉलेजों में श्रेणी ए के तहत 91.5 प्रतिशत मुस्लिम और 8.5 प्रतिशत हिंदू पाए गए।
मुसलमानों को ओबीसी लिस्ट में जोड़ा
वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिमों को अधिक से अधिक फायदा पहुंचाने के लिए उनकी कई जातियों को ओबीसी की लिस्ट में जोड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य की नौकरी या अन्य सरकारी योजनाओं में आरक्षण का 90 प्रतिशत से अधिक फायदा मुस्लिमों को मिला है। इसको लेकर ओबीसी आयोग ने सरकार पर सवाल भी उठाए।
पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने रंगनाथ मिश्रा कमेटी की सिफारिशों के आधार पर मुस्लिम आरक्षण को लागू किया है, जिसमें ममता बनर्जी की सरकार ने समय-समय पर मुस्लिमों की जातियों को इसमें जोड़ा। इसलिए यहां इससे जुड़ा आंकड़ा यह है कि पश्चिम बंगाल में सरकारी संस्थाओं और नौकरियों में 45 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है, जिसमें 17 प्रतिशत ओबीसी, 28 प्रतिशत फीसदी आरक्षण समाज के एससी व एसटी वर्ग को दिया जाता है।
2011 तक, बंगाल में कुल ओबीसी जातियां 108 थीं, जिनमें से 53 मुस्लिम समुदाय की थी और 55 हिंदू थी। लेकिन 2011 के बाद, ओबीसी सूची में कुल जातियों की संख्या बढ़कर 179 हो गई, और नए 71 जुड़ने वालों में 65 मुस्लिम जातियां और छह हिंदू जातियां शामिल थीं।
अन्य राज्यों में मुसलिम आरक्षण का ये है हाल
सांस्कृतिक शोध संस्थान की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगाल में बड़ी संख्या में हिंदुओं ने इस्लाम अपना लिया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि भारत आए बांग्लादेशी मुसलमानों को भी ओबीसी सूची में शामिल किया गया है। आज अकेला बंगाल ही क्यों देश के कई राज्य जहां कांग्रेस या वामपंथी सरकार हैं, वहां भी मुसलमानों को धर्म के आधार पर पिछले वर्ग के नाम पर आरक्षण दिया जा रहा है। जिन राज्यों में इस तरह से आरक्षण देने की सुविधा मुहैया कराई गई है, उनमें दक्षिण भारत के तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं।
धर्म के आधार पर आरक्षण देने की शुरुआत केरल से हुई
धर्म के आधार पर आरक्षण देने का सबसे पहला मामला केरल से आया। 1956 में केरल के पुनर्गठन के बाद वामपंथी सरकार ने आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर 50 कर दिया, जिसमें ओबीसी के लिए आरक्षण 40 प्रतिशत शामिल था। सरकार ने ओबीसी के भीतर एक उप-कोटा पेश किया जिसमें मुस्लिम हिस्सेदारी 10 प्रतिशत रखी गई है। जिसमें कि वामपंथी केरल सरकार ओबीसी को अभी 30 प्रतिशत आरक्षण देती है।
सरकारी नौकरियों में मुस्लिम हिस्सेदारी अब बढ़कर 12 प्रतिशत और व्यावसायिक शैक्षणिक संस्थानों में आठ प्रतिशत हो चुकी है। यहां आश्चर्य तो यह है कि सामाजिक और आर्थिक स्थिति अच्छी होने के बावजूद केरल में सभी मुसलमानों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसके आधार पर उन्हें ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया गया है।
तमिलनाडु में धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गई है। तमिलनाडु सरकार ने मुस्लिमों और ईसाइयों में प्रत्येक के लिए 3.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है। इस तरह ओबीसी आरक्षण को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 23 प्रतिशत कर दिया गया है।
वहीं, तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की सरकार में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने राज्य के मुस्लिमों को ओबीसी श्रेणी में चार प्रतिशत आरक्षण दिया था। वे इस आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहते थे। इसके लिए वो तेलंगाना की विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पास करा चुके हैं, लेकिन केन्द्र सरकार ने प्रस्ताव को अपनी मंजूरी देने से इनकार कर दिया है।
आंध्र और कर्नाटक का पेंच फंसा न्यायालय में
आंध्र प्रदेश में न्यायालय का पेंच फंसा है, जब-जब भी सरकार मुसलमानों को आरक्षण देती है, उच्च न्यायालय इस पर रोक लगा देता है। अब आंध्र प्रदेश में मुसलमानों के आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इस पर अभी फैसला होना बाकी है। लेकिन इसमें तथ्य यह भी है कि आंध्र प्रदेश में तत्कालीन सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डी की अगुवाई में कांग्रेस सरकार ने साल 2004 में मुस्लिमों की कई जातियों को ओबीसी में शामिल कर लिया और इन्हें पांच प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की। दो माह बाद आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। इसके बाद जून 2005 में कांग्रेस ने अध्यादेश लाकर पांच प्रतिशत कोटे का ऐलान कर दिया।
इसी तरह से कर्नाटक में भी मुस्लिमों को चार प्रतिशत आरक्षण दिया जाता था, लेकिन राज्य में जब भाजपा की सरकार आई तो उसने इसे खत्म कर दिया। फिर जब दोबारा कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस आरक्षण को देने की कोशिश की गई, पर कोर्ट ने इस पर स्टे लगा रखा है।
बिहार में मुस्लिमों की पिछड़ी जातियों को आरक्षण मिल रहा है। बिहार में मुसलमानों की कुछ जातियों को ‘अति पिछड़ा वर्ग’ में शामिल किया गया है, जिसमें 18 फीसदी आरक्षण दिया जाता है। पिछले साल हुए बिहार के जातिगत सर्वे में 73 फीसदी मुसलमानों को ‘पिछड़ा वर्ग’ माना गया है।
निष्कर्ष यही है कि इंडी गठबंधन यदि केंद्र की सत्ता में आ गया तो पूरे देश में यह नई व्यवस्था लागू हो जाएगी, जिसमें अजा, जनजा और पिछड़े वर्ग का आरक्षण बहुत अधिक हद तक पश्चिम बंगाल की ममता सरकार एवं कुछ दक्षिण के राज्यों की तरह ही अन्य सभी राज्यों में मुसलमानों को दिए जाने की प्रवल संभावना है।
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