कलाम की कहानी छोटे शहर के एक बच्चे की अपने समर्पण और संघर्ष के दम पर ‘पीपल्स प्रेसिडेंट’ बनने की कहानी है। उनका जीवन एक कहानी जैसा ही है, एयरफोर्स का पायलट बनने का सपना देखने वाले कलाम ने अपने जुनून के दम पर वे सारे ख्वाब पूरे किए जिनके बारे में लोग सिर्फ सोचते ही हैं। डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम आज ही दिन 1931 में तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मध्यम वर्गीय तमिल परिवार में जन्मे थे। कलाम साहब आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके किस्से आने वाली पीढ़ियों को सदियों तक प्रेरणा देते रहेंगे। आज आपको कलाम के जीवन के ऐसे ही कुछ पहलू बताएंगे जो बताते हैं कि उनकी साधारणता आखिर कितनी महान थी…
कलाम के गुरु स्वामी शिवानंद की कहानी
डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम एयरफोर्स में पायलट बनना चाहते थे इसके लिए देहरानदून में वायुसेना चयन बोर्ड में इंटरव्यू दिया। वायुसेना के लिए 25 में से 8 अधिकारियों का चयन हुआ था और उसमें कलाम का नंबर 9वां था। इससे कलाम निराश हो गए और कहा जाता है कि उन्होंने आत्महत्या करने का भी मन बनाया था और वह एक पहाड़ की चोटी पर चले गए थे। इन सबके बीच कलाम सब छोड़कर ऋषिकेश आ गए और यहां उनकी मुलाकात स्वामी शिवानंद से हुई जिन्होंने उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी थी। ‘अग्नि की उड़ान’ में कलाम लिखते हैं, “मैं भगवान बुद्ध की तरह दिखने वाले स्वामी शिवानंद से मिला। मैं उनकी सम्मोहक मुस्कान और कृपालु भाव देखकर दंग रह गया।” स्वामी शिवानंद ने कलाम से उनकी उदासी का कारण पूछा और बताया, “अपनी नियति को स्वीकार करो और जाकर अपना जीवन अच्छा बनाओ। नियति को मंज़ूर नहीं था कि तुम वायुसेना के पायलट बनो। नियति तुम्हें जो बनाना चाहती है, उसके बारे में अभी कोई नहीं बता सकता लेकिन नियति यह पहले ही तय कर चुकी है।” इसके बाद कलाम दिल्ली लौट आए और जीवन को नई तरह से शुरू कर दिया।
कुरान और गीता पढ़ने वाले कलाम
वामपंथियों और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग को कलाम से दिक्कत बनी रही। कट्टर वैज्ञानिक सोच वाले कलाम ने हमेशा दूसरे धर्मों और उनकी परंपराओं का सम्मान किया। डाक्टर कलाम के प्रेस सचिव रहे एस एम खान ने बताया कि डाक्टर कलाम धार्मिक मुसलमान थे और हर दिन सुबह की नमाज पढ़ा करते थे। उन्होंने बताया, “मैंने अक्सर उन्हें कुरान और गीता पढ़ते हुए भी देखा था। वो स्वामी थिरुवल्लुवर के उपदेशों की किताब ‘थिरुक्कुरल’ तमिल में पढ़ा करते थे। वो पक्के शाकाहारी थे और शराब से उनका दूर दूर का वास्ता नहीं था। पूरे देश में निर्देश भेज दिए गए थे कि वो जहाँ भी ठहरे उन्हें सादा शाकाहारी खाना ही परोसा जाए।” कहा जाता है कि डॉक्टर कलाम को रुद्र वीणा बजाने का बहुत शौक था।
अनाथालयों को दिया इफ्तार का पैसा
डॉक्टर कलाम 2002 से 2007 तक भारत के 11वें राष्ट्रपति रहे थे। 2002 से पहले तक राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया जाता था जिसे कलाम ने बंद करवा दिया। कलाम के सचिव रहे पीएम नायर के मुताबिक, नवंबर, 2002 में कलाम ने मुझे बुला कर पूछा, ‘ये बताइए कि हम इफ्तार का आयोजन क्यों करें? वैसे भी यहां आमंत्रित लोग खाते पीते लोग होते हैं। आप इफ़्तार पर कितना खर्च करते हैं’। इसके बाद राष्ट्रपति भवन के आतिथ्य विभाग ने बताया कि इफ्तार भोज पर मोटे तौर पर 2.5 लाख रुपए का खर्च आता है। तब कलाम ने कहा, ‘हम ये पैसा अनाथालय को क्यों नहीं दे सकते ? आप अनाथालयों को चुनिए और ये सुनिश्चित करिए कि ये पैसा बरबाद न जाए’।
नायर बताते है कि राष्ट्रपति भवन की ओर से इफ्तार के लिए निर्धारित राशि से आटे, दाल, कंबलों और स्वेटरों का इंतेजाम कर और उसे 28 अनाथालयों के बच्चों में बांटा गया। साथ ही, कलाम ने अपनी तरफ से भी एक लाख रुपए दिए और उस राशि का भी इफ्तार के लिए निर्धारित पैसे की तरह इस्तेमाल करने को कहा था।
‘कलाम तुम सफलता का सूट पहने हुए हो’
1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एसएलवी 3 के सफलतापूर्ण प्रक्षेपण के बाद डॉक्टर कलाम और प्रोफेसर सतीश धवन को प्रमुख सांसदों से मिलने बुलाया था। कलाम को औपचारिक मौकों से चिढ़ थी और जब उन्हें इस निमंत्रण का पता चला तो वे घबरा गए। उन्होंने प्रोफेसर धवन से कहा कि सर कार्यक्रम में जाने के लिए मेरे पास ना सूट है, ना जूते हैं सिर्फ मेरी चप्पल ही हैं। तब सतीश धवन ने मुस्कराते हुए उनसे कहा था, ‘कलाम तुम पहले से ही सफलता का सूट पहने हुए हो. इसलिए हर हालत में वहां पहुंचो’।
इसी दौरान कलाम और अटल बिहारी वाजपेयी की पहली मुलाकात हुई थी। चेंगप्पा ने अपनी किताब ‘वेपेंस ऑफ़ पीस’ में लिखा है, ‘उस बैठक में जब इंदिरा गांधी ने कलाम का वाजपेयी से परिचय कराया तो उन्होंने कलाम से हाथ मिलाने की बजाए उन्हें गले लगा लिया। ये देखते ही इंदिरा शरारती ढंग से मुस्कराई और उन्होंने वाजपेयी से कहा, ‘अटल जी लेकिन कलाम मुसलमान हैं।’ तब वाजपेई ने जवाब दिया, ‘जी हां, लेकिन वे भारतीय पहले हैं और एक महान वैज्ञानिक हैं।’
कलाम ने नहीं की शादी
डॉक्टर कलाम से एक कार्यक्रम में किसी ने पूछा- सर आपने शादी क्यों नहीं की? कलाम ने मुस्कुराते हुए कहा- मुझे शादी की तुलना में रॉकेट साइंस समझना ज्यादा आसान लगता है।’ हालांकि, एक बार उन्होंने माना था कि अगर उन्होंने शादी कर ली होती तो जीवन में जो भी हासिल किया है उसका आधा भी हासिल नहीं कर पाते। उनका मानना था कि शादी और बच्चों की वजह से व्यक्ति स्वार्थी बन जाता है। हालांकि, सिंगापुर में एक बच्चे ने डॉ. कलाम से शादी न करने की वजह पूछी तो उन्होंने सवाल को टाल दिया। इस दौरान उन्होंने कहा, ‘मैं कामना करता हूं कि आप सभी को बेस्ट लाइफ पार्टनर मिले’।
कलाम की खास हेयरस्टाइल की वजह
डॉक्टर कलाम की पर्सनैलिटी का एक अहम हिस्सा उनकी खास हेयरस्टाइल थी। वे अपने लंबे बालों को बीच से मांग निकालकर रखते थे लेकिन उनकी इस हेयरस्टाइल के पीछे भी एक वजह थी। कहते हैं कि जन्म से ही अब्दुल कलाम का एक कान आधा था, वो अपने कान को लंबे बालों से ढक कर रखते थे। हालांकि, कलाम के बाल मशहूर हेयर स्टाइलिस्ट जावेद हबीब काटते थे और कलाम की हेयरस्टाइल उन्हीं की देन है। उन्होंने बताया कि काम में उलझे रहने की वजह से कलाम को अक्सर ज्यादा टाइम नहीं मिलता था और इसीलिए उन्होंने ये स्टाइल तैयार की जो कलाम को भी बहुत पसंद आई।
संपत्ति के नाम पर बहुत सारी किताबें
27 जुलाई 2015 को जब कलाम का निधन हुआ था तब उनके पास संपत्ति के नाम पर 2,500 किताबें, एक रिस्ट वॉच, शर्ट, 4 पैंट, 3 सूट और एक जोड़ी जूते ही थे। उनके पास ना कोई कार थी, न टीवी यहां तक कि कोई फ्रिज भी नहीं था। हालांकि, बेंगलुरु में उनके पास एक प्रॉपर्टी थी, लेकिन बाद में उन्होंने उसे भी दान कर दिया था। यहां तक कि उन्हें अपने पिता से जो घर मिला था वो भी उन्होंने अपने बड़े भाई को दे दिया था जबकि वो अपना खर्च सरकार से मिलने वाली पेंशन और किताबों की रॉयल्टी से चलाते थे।
कलाम ने हार्ट पेशेंट्स के लिए बनाया स्टेंट
अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है लेकिन आप में से बहुत कम लोग जानते होंगे कि उन्होंने सिर्फ भारत के सिर्फ मिसाइलें ही नहीं तैयार कीं। उन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए खास किस्म का स्टेंट भी ईजाद किया था। हैदराबाद के मशहूर कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. बी. सोमा राजू के साथ मिलकर उन्होंने हार्ट पेशेंट्स के लिए एक खास किस्म का कोरोनैरी स्टेंट तैयार किया था। कलाम-राजू स्टेंट के नाम से मशहूर यह स्टेंट पहला स्टेंट था जो कि भारत में बनाया गया था और जहां विदेशों से आने वाले स्टेंट की कीमत 1 से डेढ़ लाख तक होती थी तो वहीं कलाम की वजह से ये स्टेंट सिर्फ 10 हजार रुपये में मिलने लगा और इसने हजारों लोगों की जानें भी बचाईं।