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‘हम महमूद गजनवी की नस्ल’, पटेल बोले- पेट में अल्सर, निजाम के रजाकारों को भारतीय सेना ने यूं किया ढेर

पांच दिनों की सैन्य कार्रवाई में 1373 रजाकार मारे गए थे और उनका सरगना कासिम रजवी पकड़ा गया था।

Sudhakar Singh द्वारा Sudhakar Singh
13 November 2024
in इतिहास, चर्चित
‘हम महमूद गजनवी की नस्ल’, पटेल बोले- पेट में अल्सर, निजाम के रजाकारों को भारतीय सेना ने यूं किया ढेर

5 दिन की सैन्य कार्रवाई में के बाद हैदराबाद का भारत में विलय हुुआ

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र की एक जनसभा में रजाकारों का जिक्र किया। हैदराबाद के निजाम के वही रजाकार, जिनकी खूनी दास्तां इतिहास के पन्नों में दर्ज है। योगी ने खरगे को याद दिलाया कि रजाकारों ने उनकी मां, बहन, चाची और परिवार को जला दिया था। ये वही खूंखार रजाकार थे, जिनके निशाने पर बहुसंख्यक हिंदू समाज रहता था। रजाकारों का नापाक मकसद हैदराबाद को पाकिस्तान की तरह इस्लामिक राज्य बनाना था। लेकिन पांच दिनों के अंदर भारत की जांबाज सेना ने रजाकारों को उनके जुल्मो-सितम का सबक सिखा दिया। आजाद भारत के इतिहास में इसे ऑपरेशन पोलो के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं कि क्या था ऑपरेशन पोलो और कौन थे रजाकार?

निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव ठुकराया

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रजाकारों का इतिहास उस दौर से जुड़ा है, जब अंग्रेज भारत से अपना बोरिया-बिस्तर समेट रहे थे। दक्कन का बड़ा शहर हैदराबाद उस समय प्रिंसली स्टेट यानी एक रियासत था। 550 में से ज्यादातर रियासतों का भारत या पाकिस्तान में विलय हो चुका था।  सिर्फ हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब का मामला सुलझ नहीं पाया था। हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान के सामने भारत के साथ विलय का प्रस्ताव रखा गया। लेकिन हैदराबाद के निजाम ने इसे ठुकराकर हैदराबाद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। निजाम की इस जिद के पीछे रजाकारों के मुखिया कासिम रिजवी का वह मदोन्माद था, जिसमें उसने भारतीय सेना से मुकाबला करने में सक्षम होने का भरोसा दिया था।

1944 में रजाकारों की सेना कासिम के हाथ आई  

दरअसल ब्रिटिश राज में नवाब महमूद नवाज खान ने 1927 में मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) बनाई। 1938 में नवाब बहादुर यार जंग को एमआईएम का अध्यक्ष बनाया गया। बहादुर यार जंग ने रजाकारों की एक सेना बनाई। यह एक निजी मिलिशिया थी। रजाकार का अर्थ होता है इस्लाम के लिए खड़ा रहने वाला मुजाहिद। 1944 में बहादुर यार जंग की अचानक मौत के बाद सैयद कासिम रजवी को एमआईएम का नेता चुना गया। रजाकारों की फौज भी कासिम रजवी के हाथ में आ गई।  उसका मकसद रजाकारों की मिलिशिया के जरिए धर्म परिवर्तन कराना था। मूल रूप से रजाकार अरबी या पठान थे, जो स्थानीय लोगों से घुले-मिले थे।

रजाकारों की बर्बरता, मारकाट और धर्मांतरण

कासिम रजवी ने निजाम की करीबी हासिल कर ली और देखते ही देखते रजाकारों का आतंक और कट्टरता बढ़ती चली गई। कासिम रजवी के नेतृत्व संभालने के बाद रजाकार मारकाट और धर्म परिवर्तन पर आमादा हो गए। गांव के गांव पर हमला होता, उन्हें जला दिया जाता और लोगों को जबरन इस्लाम अपनाने को कहा जाता। मना करने पर पुरुषों की गोली मारकर हत्या कर दी जाती थी या आग में झोंक दिया जाता था। महिलाओं से रेप या उठाकर शादी कर ली जाती थी। केएम मुंशी अपनी किताब द एंड ऑफ एन इरा में लिखते हैं, ‘कासिम रजवी कहता था कि हम महमूद गजनवी की नस्ल के हैं। अगर हमने तय कर लिया तो हम दिल्ली के लाल किले पर आसफजाही (निजाम का) झंडा फहरा देंगे।‘

हैदराबाद को मुस्लिम राज्य बनाना चाहता था कासिम

हैदराबाद रियासत उस समय देश के कई राज्यों से बड़ी थी। हैदराबाद में दो सदियों से आसफजाही वंश का शासन था। इस रियासत में तीन भाषाई इलाके थे। तेलंगाना के आठ तेलुगु भाषी जिले, महाराष्ट्र के पांच मराठी भाषी जिले और कर्नाटक के तीन कन्नड़ बोलने वाले जिले। रियासत पर राज तो मुस्लिम का था लेकिन यहां की 84 फीसद आबादी हिंदुओं की थी। कासिम रजवी हैदराबाद को हिंदू बहुल से मुस्लिम बहुल बनाने के ख्वाब देख रहा था। 2 सितंबर 1947 को भी वारंगल के एक गांव में रजाकारों ने 22 लोगों पर गोलियां बरसाकर मार डाला था।

कासिम की गीदड़भभकी- तो हिंदुओं की राख-हड्डी मिलेगी

रजाकारों की बर्बरता के किस्सों में 1948 के भैरनपल्ली नरसंहार का भी जिक्र होता है। इस गांव में रजाकार घुस नहीं पा रहे थे। वजह थी गांव वालों का संगठित विरोध। अगस्त 1948 में रजाकारों ने हैदराबाद पुलिस के साथ मिलकर भैरनपल्ली गांव पर हमला कर दिया। गांव के पुरुषों को जिंदा जला दिया गया और महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं हुईं। भैरनपल्ली नरसंहार ने भारतीय सेना के ऑपरेशन पोलो का आधार तय कर दिया था। वीपी मेनन की किताब द इंटीग्रेशन ऑफ स्टेट्स में कासिम रजवी के एक भाषण का जिक्र है। इसमें वह कहता है, ‘भारत ने अगर हैदराबाद में घुसपैठ की कोशिश की, तो डेढ़ करोड़ हिंदुओं की राख और हड्डियों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।‘

निजाम को लगता था हैदराबाद पाक का हिस्सा हो सकता है

भारत के साथ स्टैंडस्टिल समझौते के बावजूद हैदराबाद का निजाम रजाकारों को ताकतवर बना रहा था। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक निजाम ने 1948 में एक ऑस्ट्रेलियाई पायलट को ग्रेनेड, मशीनगन, विमानभेदी तोप और गोला-बारूद की सप्लाई का काम दिया। उधर देश के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास हैदराबाद के नापाक मंसूबों की रिपोर्ट पहुंच रही थी। बीबीसी से एक बातचीत में हैदराबाद के सेंट एनीज कॉलेज की इतिहास विभाग की अध्यक्ष डॉ. उमा जोजेफ ने कहा, ‘निजाम को लग रहा था कि हैदराबाद पाकिस्तान का हिस्सा हो सकता है। अगर हैदराबाद पाकिस्तान में शामिल होता तो भारत के लिए सदैव परेशानी बनी रहती। सरदार पटेल हैदराबाद को भारत के पेट में अल्सर कहते थे।‘

जिन्ना ने निजाम का प्रस्ताव किया खारिज

के एम मुंशी ने किताब ‘द एंड ऑफ एन इरा’ में लिखते हैं, ‘निजाम ने मोहम्मद अली जिन्ना से संपर्क कर यह जानने की कोशिश की थी क्या वह भारत के खिलाफ उनके राज्य का समर्थन करेंगे?’ दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइंस’ में जिन्ना को निजाम के प्रस्ताव के आगे की कहानी लिखी है। नैयर लिखते हैं, ‘जिन्ना ने निजाम के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह मुट्ठीभर एलीट लोगों के लिए पाकिस्तान के अस्तित्व को खतरे में नहीं डालना चाहेंगे।‘ उधर रजाकारों के आतंक का अंत करीब था। आखिरकार पटेल ने हैदराबाद निजाम के मंसूबों को पस्त करने के लिए सैन्य कार्रवाई का फैसला लिया।

ऑपरेशन पोलो इसलिए पड़ा नाम, 1373 रजाकार ढेर

13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने हैदराबाद पर हमला कर दिया। इस सैन्य ऑपरेशन को नाम दिया गया- ऑपरेशन पोलो। इस नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। दरअसल उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे। इसी वजह से सेना की कार्रवाई का नाम ऑपरेशन पोलो पड़ा। भारतीय सेना का नेतृत्व मेजर जनरल जेएन चौधरी कर रहे थे। भारतीय सेना को ऑपरेशन के दौरान पहले और दूसरे दिन थोड़ा प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। आखिरकार रजाकारों की आतंकी मिलिशिया ने घुटने टेक दिए। 17 सितंबर 1948 की शाम को हैदराबाद निजाम की सेना ने हथियार डाल दिए। निजाम के अरब कमांडर अल इदरूस ने जनरल चौधरी के सामने सरेंडर कर दिया। पांच दिनों तक चली कार्रवाई में 1373 रजाकारों को ढेर कर दिया गया। हैदराबाद के निजाम की सेना के 807 जवान भी इस ऑपरेशन में मारे गए। भारतीय सेना के 66 जवान इस अभियान में शहीद हुए। इसके साथ ही हैदराबाद का भारत में विलय हो गया।

रजाकारों के सरगना कासिम रजवी का क्या हुआ?

रजाकारों के सरगना कासिम रजवी को गिरफ्तार करने के बाद जेल में कैद कर दिया गया। हैदराबाद के भारत में विलय के बाद एमआईएम पर बैन लग गया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक कासिम रजवी को राजद्रोह और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के मामले में करीब दस साल तक जेल में रखा गया। उसे इस शर्त पर जेल से रिहाई मिली कि छूटने के 48 घंटों के अंदर ही वह पाकिस्तान चला जाएगा। कासिम रजवी को भारत सरकार की शर्त के मुताबिक हिंदुस्तान छोड़कर पाकिस्तान में बसना था। पाकिस्तान जाने से पहले कासिम ने असदुद्दीन ओवैसी के दादा अब्दुल वाहिद ओवैसी को 1958 में एमआईएम पार्टी सौंपी थी। 15 जनवरी 1970 को कासिम की पाकिस्तान के कराची में मौत हो गई। ओवैसी के दादा महाराष्ट्र के लातूर से आए थे। उस वक्त लातूर निजाम के ही अधिकार क्षेत्र में था। उस दौर में कासिम रजवी की वजह से एमआईएम इतनी कुख्यात हो गई थी कि ओवैसी के दादा ने उसके नाम में ऑल इंडिया जोड़ा। पार्टी का नया नाम अब एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) हो गया था।

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