2018 में उत्तर प्रदेश के कासगंज में गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा यात्रा निकालते समय ABVP के कार्यकर्ता चंदन गुप्ता की हत्या कर दी गई थी। NIA कोर्ट ने बीते 3 जनवरी को इस मामले में 28 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अब इस मामले में एक हैरान करने वाला खुलासा हुआ है। कट्टरपंथियों की जिस भीड़ ने ‘भारत माता की जय’ कहने पर चंदन गुप्ता की हत्या कर दी गई थी उन्हें बचाने के लिए ना केवल भारत बल्कि अमेरिका और यूके समेत दुनियाभर के कई NGOs इकट्ठा हो गए थे। इसमें तीस्ता सीतलवाड़ के NGO का नाम भी सामने आया है।
कोर्ट ने इन NGOs की भूमिका को लेकर गंभीर रूप से चिंता जाहिर की है। दरअसल, इन NGOs ने चंदन के हत्यारों को बचाने के लिए महंगे वकीलों को काम पर रखा था। NIA की अदालत ने केंद्र और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के मामलों में आरोपियों का बचाव करने वाले एक दर्जन से अधिक NGOs के फंड स्रोतों और उनके कामकाज के तरीके की जांच करने का निर्देश दिया है।
किन NGOs की होगी जांच?
कोर्ट के इन फैसले के बाद दिल्ली, मुंबई से लेकर न्यूयॉर्क और लंदन के तक कई NGOs जांच के घेरे में आ गए हैं। इन NGOs में मुंबई की सिटीजन फॉर जस्टिस ऐंड पीस, दिल्ली की पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज व यूनाइटेड अगेंस्ट हेट और लखनऊ की रिहाई मंच शामिल हैं। इनके साथ-साथ कई विदेशी NGOs की भी जांच की जाएगी जिनमें न्यूयॉर्क (अमेरिका) स्थित अलायंस फॉर जस्टिस ऐंड अकाउंटेबिलिटी, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) की इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल और लंदन (यूेक) की साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप शामिल हैं।
कोर्ट ने क्या कहा?
इन NGOs को लेकर अपने फैसले मेंकोर्ट ने कहा है कि कासगंज सांप्रदायिक हिंसा मामले में इन एनजीओ की भूमिका पर भी गौर करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “न्यायिक प्रणाली के हितधारकों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि उप्र के कासगंज में सांप्रदायिक झड़प में इन एनजीओ की क्या दिलचस्पी हो सकती है।” पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को इन NGOs के उद्देश्यों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने और न्यायिक प्रक्रिया में इनके अनुचित हस्तक्षेप को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करने को भी कहा है।
कोर्ट ने कहा कि आखिर ऐसे NGOs आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के मामलों में आरोपियों का बचाव करने और उन्हें कानूनी सहायता देने के लिए आगे क्यों आते हैं जबकि कानून में पहले से ही प्रावधान हैं। वहीं, इस मामले को लेकर अभियोजन पक्ष ने अदालत में कहा था कि कई एनजीओ ऐसे आरोपियों के वकीलों के लिए भेजते हैं और यह केवल मुस्लिम आरोपियों के लिए किया जाता है। अभियोजन पक्ष ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताकर कहा था कि इससे अवांछित तत्वों का मनोबल बढ़ता है और अदालत को इस प्रवृत्ति को रोकना चाहिए।
तीस्ता सीतलवाड़ के NGO पर बिफरा कोर्ट
कोर्ट ने चंदन की हत्या के मामले में जिन NGOs के रवैये को लेकर सवाल खड़े किए हैं उनमें मुंबई स्थित सिटीजन फॉर जस्टिस ऐंड पीस भी शामिल है। इस एनजीओ को तीस्ता सीतलवाड़ ने बनाया था। कोर्ट ने बचवा पक्ष के वकील जिया उल जिलानी द्वारा पेश की गई ‘Truth Of Kasganj: Sham Police Probe Protects Hindus, Frames Muslims’ नामक रिपोर्ट पर भी सवाल उठाए हैं।
इस रिपोर्ट को सिटीजन फॉर जस्टिस ऐंड पीस ने अगस्त 2018 में पब्लिश किया था। कोर्ट ने बताया कि रिपोर्ट देने वकील ने खुद ही माना था कि इस रिपोर्ट को बनाने के लिए किसी टीम ने कासगंज का दौरा तक नहीं किया था। कोर्ट ने कहा, “ऐसी रिपोर्ट्स न्यायपालिका पर अनुचित दबाव डालने का प्रयास करती हैं और उनकी सामग्री जांच प्रक्रिया पर भी सवाल उठाती है।”
महाराष्ट्र में जन्मीं तीस्ता सीतलवाड़ पर इससे पहले गुजरात दंगों के दौरान तत्काली मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने के भी आरोप लगे थे। 2007 में पद्यश्री सम्मान प्राप्त कर चुकीं तीस्ता को गुजरात दंगों में सबूतों से छेड़छाड़ करने और खुद सबूत बनानेे के लिए गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने कथित तौर पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान चलाया था और उन्हें व अन्य बीजेपी नेताओं को फंसाने की कोशिश की थी। तीस्ता पर इसके साथ ही विदेश से आए पैसे का गलत तरीके से इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं।