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आचार्य प्रशांत: असली धर्मगुरु या ब्रैंडिंग से बने बाबा, क्या हैं उनके आलोचक और समर्थकों के दावे?

आचार्य प्रशांत के समर्थकों का तर्क है कि वह सनातन की अंधविश्वास और पोंगापंथी रीति-रिवाजों के खिलाफ बोलते हैं

khushbusingh1 द्वारा khushbusingh1
15 March 2025
in चर्चित
आचार्य प्रशांत की शिक्षा को लेकर भी कई लोगों ने सवाल उठाए हैं

आचार्य प्रशांत की शिक्षा को लेकर भी कई लोगों ने सवाल उठाए हैं

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प्रयागराज महाकुंभ 2025 को अपनी दिव्यता एवं भव्यता के साथ संपन्न हुए दो सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है। दुनिया के उस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में करीब 66 करोड़ लोगों ने गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के पवित्र संगम पर स्नान किया था। इसी दौरान जनवरी 2025 में प्रशांत त्रिपाठी उर्फ आचार्य प्रशांत नाम के एक कथित धर्मगुरु का एक कथित वीडियो सोशल मीडिया पर आया, जिसमें वे कुंभ को अंधविश्वास बता रहे थे। इसको लेकर जमकर बवाल हुआ। गुस्से में लोगों ने प्रशांत की सैकड़ों किताबें जला दीं। इन किताबों को बाँटने वाले प्रशांत के लोगों पर भी हमला करने की बात मीडिया में आई। दक्षिणपंथी लोगों ने इस वीडियो को खूब शेयर किया और सोशल मीडिया पर आचार्य प्रशांत की जमकर आलोचना शुरू कर दी। जयपुर डायलॉग्स के संजय दीक्षित, इंडिया स्पीक्स डेली के संजय देव और इस्कॉन से जुड़े कुछ सोशल मीडिया अकाउंट ने प्रशांत की जमकर आलोचना की।

हालाँकि, प्रशांत के समर्थकों ने इस फर्जी वीडियो बताया और कहा कि दक्षिणपंथी प्रशांत को बदनाम करने के लिए यह फर्जी वीडियो वायरल कर रहे हैं। प्रशांत एवं उनसे जुड़े ने तर्क दिया कि कुंभ को अंधविश्वास बताने वाले वीडियो प्रशांत के एनजीओ से जुड़े लोगों ने नहीं बनाए थे। उनका कहना था कि आचार्य प्रशांत को बदनाम करने के लिए एक साजिश के तहत इस वीडियो को डाला गया और लोगों को भड़काया गया। हालाँकि, दक्षिणपंथी लोगों ने इस वीडियो को सही और प्रशांत का ही बताया। उस समय से शुरू हुआ यह हालिया विवाद महाकुंभ खत्म होने के बाद भी सोशल मीडिया पर लगातार जारी है।

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सोशल मीडिया पर लोग प्रशांत के आचार, व्यवहार, आख्यानों, भाषणों को शेयर कर रहे हैं और उन्हें फर्जी बाबा बता रहे हैं। उनके विरोधियों का कहना है कि आचार्य प्रशांत एक फर्जी धर्मगुरु हैं, जो चरक एवं आचार्य रजनीश के सेक्स एवं समाधि का कॉकटेल बनाकर लोगों के बीच पेश कर रहे हैं। उनका आरोप है कि वे आधुनिकता के आवरण में परिवार, शादी, विवाह जैसे सामाजिक एवं भारतीय परंपराओं एवं धार्मिक मूल्यों को आडंबर बताकर उनकी आलोचना कर रहे हैं और ये सब फर्जी कथा-कहानियों एवं धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्याओं के जरिए कर रहे हैं। कई सोशल मीडिया उनके बयानों को तर्क के साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं।

आचार्य प्रशांत एवं उनके समर्थकों का कहना है कि वे अद्वैत एवं वेदांत को सरल शब्दों में लोगों तक पहुँचाने का काम करते हैं। उनका तर्क है कि सनातन की अंधविश्वास और पोंगापंथी रीति-रिवाजों के खिलाफ बोलते हैं, जिसने लोगों को सनातन के वास्तविक मूल्यों से दूर कर दिया है। इसलिए लोगों को इन पाखंड और आडंबरों से दूर होना चाहिए। उनका मानना है कि प्रशांत लोगों को शुद्ध वेदांत से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए धर्म का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए करने वाले लोग उनका विरोध कर रहे हैं। उनके अनुयायी प्रशांत को भगवान बुद्ध और भगवान महावीर से लेकर आदि शंकराचार्य, संत कबीर, संत रविदास, गुरु नानक तक से लेकर राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, ज्योतिबा फुले, ईश्वर चंद्र विद्यासागर जैसे सुधारकों से करते हैं।

दरअसल, सोशल मीडिया पर 7 करोड़ से अधिक अनुयायियों वाले आचार्य प्रशांत कर्मकांड को आडंबर बताते हैं। वे जातिवाद, पितृसत्ता और अंधविश्वास को समाज की प्रगति में सबसे बड़ी रुकावट मानते हैं। वे विवाह, श्राद्ध जैसी प्राचीन परंपराओं पर सवाल उठाते हैं। इतना ही नहीं, इन सबकी की व्याख्या भी वे अपने ढंग से करते हैं। वे हिंदू एकता के भी विरोधी हैं। उनका मानना है कि इस तरह का प्रयास धर्म के असली उद्देश्यों से दूर कर देता है और कुछ विशेष समूहों को लाभ पहुँचाता है।

वे पूरी व्यवस्था को ही गलत साबित कर अराजकता वाली स्थिति पैदा करने की कोशिश करते दिखते हैं। अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है, “इस दुनिया में मज़े मारने नहीं आते हैं आप, लुटने आते हो। ये जगत है ही इसीलिए कि हमको मूर्ख बना-बनाकर हमें लूटता जाए। एक-एक चीज़, एक-एक व्यवस्था, आप जिसमें शामिल हैं, आप अगर देख पायें तो दिखेगा कि कैसे उसमें आपका शोषण होता है। एक अस्पताल में आपका जन्म हुआ, जिनके आँख होगी उन्हें दिखेगा, पहले आप यही बोलते थे, अरे! सरकारी अस्पताल है, गंदे पड़े हैं, डॉक्टर देर से आता है, भीड़ बहुत है। आज आपके अस्पताल फाइव स्टार होटल जैसे हो गए हैं। तो आपको ये भ्रम हो जाता है कि मामला बढ़िया है।”

वे दुनिया को गुलामी का अड्डा बताते हैं। वे आगे लिखते हैं, “आबादी में रोगियों का अनुपात बढ़ा है या कम हुआ है? पहले हज़ार लोगों में कितनों को कैंसर था, आज कितनों को है? लेकिन आप ख़ुश बहुत हो, क्योंकि अब बहुत सारे अस्पताल आ गये हैं जो कहते हैं कि हम कैंसर ट्रीटमेंट में सुपरस्पैशलाइज़ करते हैं। ये आप पूछते ही नहीं कि इतने कैंसर रोगी आ कहाँ से गये, पहली बात। हमें पता ही नहीं चलता कि हमारा उपचार हो रहा है या हमें सबसे पहले बीमार बनाया जा रहा है ताकि उपचार करा जा सके।” ऐसी अनेक बातें हैं, जिन्हें लिखी जाए को वो कई वॉल्यूम में किताब बन जाएगी। उनके वीडियो के देखा जाए तो साफ लगेगा कि उनकी बातें सतही हैं। उनसे बेहतर एक दूर-दराज के गाँव में रहने वाला व्यक्ति धर्मशास्त्रों की व्याख्या उनसे बेहतर कर सकता है।

दरअसल, प्रशांत लोगों को आत्मज्ञान का मार्ग बताने के बाद मानव स्वरूप के एक अंग असंतोष को अपना हथियार बनाकर लोगों को उकसाने का काम करते हैं। प्रशांत भूल जाते हैं कि मानव जीवन में कर्म की प्रधानता है। वे कर्म को प्रभावी बनाने वाली बातें कम, कोसने का काम करते ज्यादा दिखता है। उनकी बातें सुनने से व्यवहारिक लग सकती हैं, लेकिन आध्यात्मक को थोड़ा सा भी समझने वाला व्यक्ति उसे सतही मानेगा। उनकी बाते करने का अक्खड़ स्वाभाव, शब्दों का चयन, उनका उच्चारण साफ बताता है कि वे धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन नहीं कर पाए हैं। वे भारतीय परंपरा को भी अच्छे से नहीं समझते हैं।

वे खुद को बौद्ध और हिंदुओं के वेदांत एवं अद्वैतवाद का जानकार होने का दावा करते हैं, लेकिन उनकी बातों में ‘ज्ञान’ का तत्व दिखेगा। इससे अलग ज्ञानी के स्वभाव वाले शांत, संयम, धीर, विनम्र आदि गुण तो उनमें हैं ही नहीं। वे आलोचना करने वालों को ना धमकाते और उन्हें नकारा बताते रहे हैं। वे अपने वेबसाइट पर लिखा है, “छोटे आदमी की पहचान ही ये होती है कि हर छोटा मुद्दा उसके लिए बहुत बड़ा हो जाता है।” वे आदमी को छोटा और बड़ा की दृष्टि से देखते हैं, जो संत भाव के बिल्कुल विपरीत है। वहीं, उनके फॉलोवर आलोचना करने वालों को गाली-गलौच और धमकी तक देते हैं। उनका यह व्यवहार उन्हें आम आदमी भी नहीं साबित करता है।

कोट-पैंट पहनकर, लेकिन दाढ़ी और बाल लंबे करके अद्वैतवाद एवं वेदांत की बात करने वाले आचार्य प्रशांत का मूल नाम प्रशांत त्रिपाठी है। वे विभिन्न विषयों पर 160 किताबें लिखने का दावा करते हैं। वे IIT, दिल्ली से इंजीनियरिंग और IIM, अहमदाबाद से प्रबंधन में मास्टर डिग्री लेने का दावा करते हैं। ये सब कुछ उनकी वेबसाइट पर बताया गया है। हालाँकि, उन्होंने ये नहीं बताया है कि उन्होंने IIT और IIM में कहाँ पढ़ाई की है। उन्होंने यहाँ तक दावा किया गया है कि उन्होंने जिस साल IIM की परीक्षा पास की थी, उसी साल UPSC की परीक्षा भी पास किया था, लेकिन IAS कैडर नहीं मिलने के कारण वे IIM में चले गए। इसके बाद वहाँ से निकलकर वे कॉरपोरेट वर्ल्ड में आए। हालाँकि, उन्होंने कंपनी आदि के बारे में कुछ नहीं बताया है, जहाँ उन्होंने काम किया है। उन्होंने अपने जन्मस्थान और माता-पिता के बारे में भी कुछ नहीं बताया है।

आचार्य प्रशांत के आलोचक उन्हें ढोंगी और फ्रॉड बताते हैं। उनका कहना है कि आचार्य प्रशांत कभी IIT या IIM नहीं गए और इन सर्वोच्च संस्थानों के नाम पर अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं। सोशल मीडिया यूजर सवाल उठा रहे हैं कि आचार्य प्रशांत बताएँ कि वे किस साल में IIT और IIM गए और उनके कुछ प्रसिद्ध सहपाठी लोगों के नाम बताएँ। उनके आलोचक तर्क देते हैं कि प्रशांत ने सोशल मीडिया पर ऐड देकर और पीआर कंपनी के जरिए अपनी इमेज बिल्डिंग की और अब धर्मगुरू का आवरण धारण कर रहे हैं। हालाँकि, आलोचक जो कहें, लेकिन ये सच है कि धर्मगुरु बनने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं है। जरूरत है तो बस आत्मज्ञान और ईश्वर के प्रति श्रद्धा की। हालाँकि, ये सच है कि धर्मशास्त्रों का मन माफिक व्याख्या करना भी सही नहीं है।

स्रोत: महाकुंभ 2025, आचार्य प्रशांत, सनातन धर्म, वेदांत, हिंदू धर्म, Maha Kumbh 2025, Acharya Prashant, Sanatan Dharma, Vedanta, Hinduism,
Tags: Acharya PrashantHinduismMaha Kumbh 2025sanatan dharmaVedantaआचार्य प्रशांतमहाकुंभ 2025वेदांतसनातन धर्मंहिंदू धर्म
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