बिहार…एक ऐसा नाम, जिसके बारे में जो जानते हैं वो गौरवान्वित होते हैं और जो नहीं जानते इसका मजाक बनाते हैं। लेकिन, आज की संपूर्ण पीढ़ी इतिहास और भारत की प्राचीन परंपरा एवं समृद्ध विरासत के बारे में जाने, ऐसी उम्मीद बेइमानी है। यही वजह है कि जब से हिंदू धर्म पर अपमानजक कमेंट करने और देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने पर लोगों ने आक्रोश दिखाना शुरू कर दिया तो आज के कथित स्टैंडअप कॉमेडियन का रूख बिहार और बिहारियों की तरफ हो गया है। बात सिर्फ स्टैंडअप कॉमेडियन तक ही नहीं है, उन सबके लिए जो बिहार के हेय दृष्टि से देखते हैं और बिहारियों को सिर्फ मजदूर और गुटखा-खैनी खाकर इधर-उधर थूकने वाला मानते हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे हजारों वीडियो भरे पड़े हैं, जिसमें बिहारियों का मजाक पैसे कमाने के लिए बनाया जा रहा है।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब केंद्रीय विद्यालय की एक नवयौवना शिक्षिका का स्थानांतरण बिहार के जहानाबाद में कर दिया गया। उस नवयौवना शिक्षिका ने पद की मर्यादा का ख्याल करते हुए ऐसे कई वीडियो बनाए, जिसमें उसने बिहार को जमकर कोसा और बिहारियों को जी भरकर गालियाँ दीं। एक आधुनिक एवं खूबसूरत दिखने की कोशिश करने वाली अध्यापिका माँ-बहन की जितनी हसीन गालियाँ दे सकती हैं, उस कोमलांगी ने सब कुछ देने की कोशिश की। क्या-क्या नहीं कहा। ऐसा-ऐसा कहा कि बिहार के बाहर का व्यक्ति सुन ले तो उसे बिहार से नफरत सी हो जाए। जैसे शास्त्रों में नरक एवं दोजख का चित्रण किया गया है, कुछ ऐसा ही मनोभाव उस रूपसी अध्यापिका का बिहार और बिहारियों के प्रति दिखा। उसे वाणी की मधुरता और शब्दों का तीखापन ऐसा बता रहा था, जैसे उसे नरक में ही भेज दिया गया हो।
उस अध्यापिका का जब वीडियो वायरल हुआ तो सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक हलके तक बवाल मच गया। वीडियो में शिक्षिका कह रही है, “मेरे एक दोस्त की पोस्टिंग हुई दार्जिलिंग… कैन यू अमेजिन! मेरी एक दोस्त की पोस्टिंग आई है सिलचर, नॉर्थ ईस्ट….वाऊ। मेरा एक दोस्त पोस्टेड है बेंगलोर। मेरे से ब###द ऐसी क्या दुश्मनी थी कि मुझे इंडिया के वर्स्ट F**king रिजन में पोस्टिंग दे दी? मैं अपनी फर्स्ट पोस्टिंग जिंदगी भर याद रखूँगी। मेरे को गोवा दे देते… ओडिशा दे देते… कहीं भी दे देते, मुझे कोई दिक्कत नहीं थी। मुझे साउथ में कही दे देते।”
वहीं, एक अन्य वीडियो में यह सरकारी टीचर कहती है, “बिहार एक फक्डअप स्टेट है। यह हाइप नहीं है। यहाँ के लोगों को कोई सिविक सेंस नहीं है। जो बिहार से दिल्ली यात्रा करते हैं…. ओ ग़ॉड! उनके पास जीरो सिविक सेंस है। मुझे लगता है कि इंडिया डेवलपिंग कंट्री बस इसीलिए है, क्योंकि बिहार उसमें है। अगर बिहार को इंडिया से हटा दिया जाए तो वह डेवलप हो जाएगा। यहाँ के लोगों ने रेलवे की बहन च***द दी।” इस टीचर का नाम दिपाली है और वह बंगाल की रहने वाली बताई जा रही है। हालाँकि, उसके वीडियो और गाली-गलौज एवं बिहार तथा बिहारियों के प्रति उसकी नफरत को देखते हुए फिलहाल केंद्रीय विद्यालय संगठन ने उसे निलंबित कर दिया और मुख्यालय से अटैच कर दिया है।
हालाँकि, यह बात सिर्फ दिपाली की नहीं है। हजारों दिपाली इस देश में हैं। ऐसी ही एक स्टैंडअप कॉमेडियन का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह बिहारियों का मजाक उड़ा रही है और बातों-बातों में सबको गुटखा खाने वाला बता रही है। सुरभि वंजारा नाम की यह कथित कॉमेडियन कहती है, “मेरी माँ महराष्ट्र से है और मेरे पिता बिहार से हैं।” इस दौरान वह बिहार को कुछ ऐसे संबोधित करती है कि दर्शकदीर्घा में बैठे लोग बेतहाशा हँसते हैं। लड़की आगे कहती है, “जब मैंने कहा कि मेरे पिता बिहार हैं तो मेरी सहेली बोली- मेरा उबर ड्राइवर भी बिहार से था। वो बहुत अच्छा चला रहा था… बहुत अच्छा चला रहा था। एक भी गड्ढा फील नहीं हुआ। बस एक ही प्रोब्लम थी…शीशा डाउन कर-कर के थूक रहा था। डोर खोल-खोल के थूक रहा था। मैंने बड़ी बहन की तरह बोला- वो शीशा डाउन किए बिना भी थूक सकता था। अब वो उबर नहीं लेती।” इस पूरे कॉमेडी में सुरभि वंजारा ये बताना जा रही है कि अगर ड्राइवर मिल जाए तो वो बिहार का होगा और कोई थूकता दिख जाए तो वो भी बिहार का ही होगा।
सुरभि वंजारा जब बिहार और बिहारियों को लेकर मजाक उड़ा रही थी, तब उनके सामने दर्शक के रूप में दर्जनों लोग बैठकर ठहाके लगा रहे थे। ये ठहाके लगाने वाले लोग कौन हैं, जिन्हें बिहार और बिहारियों का मजाक उड़ाने पर हँसी आ रही है? दरअसल, आत्ममुग्धता के शिकार ये वैसे लोग हैं, जो बिहारी शब्द को लोगों को ‘गाली’ देने के लिए करते हैं। ये दिल्ली, हरियाणा, पंजाब में आम बात है। जो लोगों इन राज्यों में रहते होंगे या गए होंगे वे इससे भलीभाँति परिचित होंगे। ये सिर्फ इन राज्यों की बात नहीं है। तमिलनाडु में पिछले साल बिहारियों पर हमले किए गए, जिसके चलते मजदूरों का पलायन हुआ। हाल में रिलीज हुई छावा मूवी को लेकर सोशल मीडिया पर बिहारियों के खिलाफ नफरत का ऐसा तूफान चला कि उन्हें मजदूर, भीखमंगा, दरिद्र, चोर, गुटखा खाने वाला, चोरी करने वाला और ना जाने-जिन किन-किन उपमाओं से विभूषित किया गया। असम में बिहारियों के साथ स्थानीय लोगों का वही व्यवहार है जो मराठी, तमिल, पंजाबी या दिल्ली वाले बिहारियों के साथ करते हैं। बंगाल के लोगों का भाषा बिहारियों के प्रति कोई अलग भाव नहीं है। जहानाबाद के केंद्रीय विद्यालय में पोस्टिंग आई शिक्षिका के बयान से आपने जान लिया होगा, क्योंकि वह भी बंगाल की ही है। हालाँकि, पड़ोसी होने के नाते बंगाली इस नफरत को खुलेआम प्रदर्शित नहीं करते।
बिहारियों के प्रति इन सबके मन में असीम घृणा का भाव है। अगर इन्हें मौका मिल जाए तो ये बिहार को पाकिस्तान को दे दें या बिहारियों को समुद्र में फेंकवा दें या फिर हिटलर ने जैसे यहूदियों को गैंस चैंबर में डालकर मारा था, उसी तरह ये भी बिहारियों को गैंस चैंबर में डाल कर मरवा दें। लेकिन, ये ऐसा नहीं हो सकता। क्यों नहीं हो सकता? इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि अगर बिहारी को मरवा देंगे तो इनके घरों में नौकरी कौन करेगा, बड़े-बड़े शहरों के कल-कारखानों से लेकर मजदूरी कौन करेगा? रिक्शा कौन चलाएगा? ऑटो कौन चलाएगा? पंजाब के किसानों के खेतों में काम कौन करेगा? गुजरात के व्यापारियों को धन-धान्य से परिपूर्ण कौन करेगा? ये सब बिहारी ही कर रहे हैं। आजादी के बाद से इस देश के राजनेताओं ने उनकी तकदीर में यही लिख दिया है कि बिहार एवं बिहारियों को गाली सुननी है, लेकिन दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करनी है, वर्ना जिस बिहार जैसे पिछड़े राज्य में भी सरकारें उद्योग धंधों का विस्तार करतीं। बिहारियों को भी भारतीय नागरिक मानकर उनका ख्याल करतीं। लेकिन ऐसा नहीं है।
बिहारियों को गाली सुनवाने में बिहार के नेताओं का बहुत बड़ा योगदान है। इन नेताओं ने बिहार की अस्मिता को पहचाना ही नहीं। बिहारी भावना को जागृत करने की कोशिश ही नहीं की, जो आज भी ‘मैं’ के बजाय ‘हम’ की बात करता है। वो सिर्फ अपनी बात नहीं करता, पूरे समाज और देश की बात करता है। इसलिए अपने संबोधन में भी हम का प्रयोग करता है। लेकिन, इस मामले में नेता अलग हैं। वे सिर्फ मैं की बात करते हैं। स्वार्थ उनके रग-रग में है। इन्होंने बिहार के लोगों के लिए कोई विजन नहीं तैयार किया, कोई सपना नहीं देखा, कोई रूपरेखा नहीं बनाई। किया तो सिर्फ राजनीति, वर्ना सिर्फ मिथिलांचल क्षेत्र से कई मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वो क्षेत्र आज बाढ़ जैसी विभीषिका झेल कर पलायन के अभिशप्त नहीं होता। लेकिन, राजनीति के स्वार्थी नेताओं ने महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, पंजाब आदि जैसे राज्यों से अपने लोगों के लिए कोई सबक नहीं लिया। इसलिए बिहारियों को मजबूरी में देश के दूसरे हिस्सों में जाना पड़ता है और गाली सुनकर अपने परिवार का पेट पालना पड़ता है।
हालात आज इतने बदतर हो गए हैं कि कंटेंट के दरिद्र बन चुके लोगों के लिए भी जीविकोपार्जन का एकमात्र जरिया बिहार और बिहारियों को गाली देना ही बचा है। ऐसे हजारों कंटेंट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जो बिहारियों को लज्जित करने के लिए ऐसे परोसे गए हैं, जैसे बिहारियों ने अपने भाग्य में दरिद्र चुनना स्वयं लिखा है। हालाँकि, लोकतंत्र में यह सच भी है, लेकिन इतना भी नहीं। यह बात दिपाली नाम की बंगाली शिक्षिका या सुरभि वंजारा नाम की कंटेंट क्रिएटर की नहीं है। यह बात बिहार की अस्मिता को कुचलने की है, यहाँ के लोगों की जिजीविषा को ललकारने की है, उनके उमंग एवं सपनों को तोड़ने की है, उनकी कर्मठता पर अपात्र बताकर हँसने की है। उनकी जीवटता को कोसने की है। उनकी अभिलिप्सा को मारने की है। उनके संघर्ष को जीवन का रंग मानने की रक्त-संचित खूबियों का तिरस्कार करने की है। वर्ना सुरभि वंजारा के कॉमेडी शो में बैठा कोई तो ऐसा शख्स होता, जो कहता कि ऐ सुरभि किसी राज्य का, उसकी गरीबी, वहाँ के लोगों की जीवटता का अपमान करना सही नहीं है। संभवत: उस शो में कई क्षेत्रों के लोग रहे होंगे, लेकिन ऐसा किसी ने किया, क्योंकि बिहारियों के लिए उनके दिल में कोई भाव नहीं है।
बिहार गरीब और पिछड़ा जरूर है, लेकिन यहाँ के लोग अपनी किस्मत पर रोने वाले लोग नहीं है। बिहार में आज भी किसानों की आत्महत्या दर सबसे कम है। जो राज्य बिहार के लोगों पर हँसते हैं, वो किसानों के आत्महत्या दर में सबसे आगे हैं। सबसे पहले स्थान पर वो महाराष्ट्र है, जो खुद को सबसे विकसित मानता है। दूसरे स्थान पर कर्नाटक, फिर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश थे। आखिर क्या वजह है कि भयानक गरीबी, पिछड़ापन और कर्ज का जाल होने के बावजूद बिहार के किसान आत्महत्या नहीं करते है? इसके पीछे ही जीवटता और संघर्ष करने की उनका पैतृक डीएनए। यही जीवटता बिहार को एक बार फिर उसके पुराने वैभव की ओर लेकर जाएगी, जो ईसा के जन्म से पूर्व था। जिसके नाम पर भारत भी खुद को गौरवान्वित महसूस करता था। जिसके नाम पर देश-दुनिया में शांति एवं सद्भाव का संदेश पहुँचा था।
बिहार से कोई कितनी भी नफरत कर ले, लेकिन बिहार की मिट्टी में अलग तेज है। आज भी यहाँ के छात्र या अन्य लोग जल्दी आत्महत्या नहीं करते। बलात्कार के मामले में बिहार अन्य विकसित राज्यों से पीछे है। छात्रों की आत्महत्या, अवैध संबंध, ठगी, तलाक, दहेज के लिए हत्या, माता-पिता को घर से निकालने जैसे गंभीर असामाजिक कुकर्मों में बिहार देश के अन्य राज्यों से अभी बहुत पीछे है। गरीब होने का मतलब ये नहीं है कि संस्कार का कम हो जाना। बिहार गरीब है, दरिद्र है, लेकिन अन्य राज्यों की अपेक्षा अपने लोगों में आज भी संस्कार सबसे अधिक है। गुटखा खाना नुकसानदेह है, लेकिन इसे खाकर संस्कारवान बने रहना ज्यादा फायदेमंद है। पैसे बिहार के लोगों की मेहनत से व्यापारी-व्यवसायी तो कमा ही रहे हैं। अगर कोई बिहारियों को गाली देकर अपने परिवार का पेट पाल रहा है तो बिहार तो इसे सहर्ष स्वीकार कर लेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि आधा पेट खाकर भी शिक्षा आदि के जरिए बच्चों का भविष्य कैसे सँवारा जाता है।
बाकी मगध साम्राज्य, सम्राट अशोक, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, चक्रवर्ती हरिश्चंद्र, वैरागी भर्तृहरि, देव ऋषि विश्वामित्र, सीता माता, ज्ञानी चाणक्य, खासला के गुरु गोविंद सिंह, 80 साल की उम्र में लोहा लेने वाले बाबू वीर कुँवर सिंह सहित हजारों-हजार व्यक्तित्व हैं, जिन पर भारत आज भी गर्व करता है और उनके नाम पर पड़ोसी देशों को अपने खेमे में मिलाने की कोशिश करता है। हालाँकि, यह सब बातें सभ्य, शालीन, पढ़े-लिखे लोगों के लिए हैं। जो पढ़ा-लिखा होने का दावा करके भी घृणा से ओत-प्रोत हो, उसके लिए इतिहास, संस्कार, विरासत, धरोहर, समाज, देश आदि के लिए कोई मायने नहीं हैं। यही आधुनिक भारत का पाखंड है।