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कल्पना चावला: भारत की वो बेटी, जिसने एक नहीं दो-दो बार अंतरिक्ष में फहराई हिंदुस्तान की विजय पताका

जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा से मिली प्रेरणा – भारतीय आसमान में उड़ने का सपना

himanshumishra द्वारा himanshumishra
17 March 2025
in इतिहास, चर्चित
Kalpana Chawla

Know All About Kalpana Chawla (image Source: financialexpress)

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हरियाणा के करनाल की गलियों से उठकर अंतरिक्ष की अनंत गहराइयों तक पहुंचने वाली भारत की बेटी ‘कल्पना चावला’ सिर्फ एक अंतरिक्ष यात्री नहीं, बल्कि साहस, संकल्प और भारतीय गौरव की जीवंत मिसाल थी। 17 मार्च 1962 को जन्मी कल्पना बचपन से ही आसमान को छूने का सपना देखती थीं। घर में सब प्यार से उन्हें ‘मोंटू’ कहते थे, लेकिन इस बच्ची की आंखों में केवल सपने नहीं, बल्कि इतिहास रचने की आग थी।

कल्पना चावला ने दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय बेटियां कमजोर नहीं, बल्कि अपने पुरुषार्थ से असंभव को भी संभव बनाने की ताकत रखती हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि हौसला अगर अटूट हो, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। अपने जीवन के हर कदम पर उन्होंने अपने साहस से न केवल विज्ञान की दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई, बल्कि हर भारतीय महिला के लिए प्रेरणा बन गईं। उनका जीवन केवल एक सफलता की कहानी नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति, परिश्रम और अदम्य जज़्बे का वह अमिट अध्याय है, जिसे आने वाली पीढ़ियां गर्व से पढ़ेंगी और याद करेंगी।

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जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा से मिली प्रेरणा

कल्पना चावला का जीवन केवल एक लड़की के असाधारण सपने की कहानी नहीं, बल्कि भारतीय नारी शक्ति और संकल्प का प्रतीक है। बचपन से ही उनके मन में अंतरिक्ष को लेकर एक गहरी जिज्ञासा थी। जब उन्होंने आठवीं कक्षा में कदम रखा, तो उन्होंने अपने परिवार के सामने इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर की। उनके पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर या शिक्षिका बनें, लेकिन कल्पना का सपना इससे कहीं बड़ा था। उनकी माँ, संज्योथी चावला, ने बेटी के इस जुनून को समझा और आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया।

कल्पना की उड़ान के प्रति दीवानगी भारतीय विमानन उद्योग के पितामह जहाँगीर रतनजी दादाभाई (JRD) टाटा से प्रेरित थी। टाटा न केवल भारत के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे, बल्कि देश के पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट भी थे। उनकी यह उपलब्धि कल्पना के दिल और दिमाग में बस गई थी, और उन्होंने बचपन में ही तय कर लिया था कि एक दिन वह भी आसमान में उड़ान भरेंगी।

वहीं, अगर बात करें इनके शिक्षा और अंतरिक्ष तक के इस सुनहरे सफर की तो कल्पना चावला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा टैगोर बाल निकेतन स्कूल, करनाल से प्राप्त की। 1976 में उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की और पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़ में दाखिला लिया, जहाँ से 1982 में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। लेकिन यह उनकी यात्रा का अंत नहीं था—उनकी नजरें अंतरिक्ष पर टिकी थीं।

1982 में, वह संयुक्त राज्य अमेरिका चली गईं, जहाँ उन्होंने टेक्सास विश्वविद्यालय, आर्लिंगटन से 1984 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, 1986 में उन्होंने एक और मास्टर डिग्री पूरी की और फिर 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय, बोल्डर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट (PhD) की उपाधि प्राप्त की। सिर्फ यही नहीं बताते चले कि कल्पना सिर्फ एक वैज्ञानिक ही नहीं थीं, वह एक कुशल पायलट भी थीं। उन्होंने हवाई जहाज, ग्लाइडर और व्यावसायिक विमानों के लाइसेंस प्राप्त किए और एक प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक भी बनीं। एकल और बहु-इंजन विमानों को उड़ाने में भी वह पूरी तरह प्रशिक्षित थीं।

1988 में, कल्पना ने अपने सपनों की धरती नासा एम्स रिसर्च सेंटर में कदम रखा, जहाँ उन्होंने कम्प्यूटेशनल फ्लुइड डायनामिक्स (Computational Fluid Dynamics – CFD) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध किए। उनका काम मुख्य रूप से विमानों के चारों ओर जटिल वायु प्रवाह को अनुकरण (सिमुलेट) करने पर केंद्रित था। इस परियोजना के तहत उन्होंने समानांतर कंप्यूटरों के प्रवाह सॉल्वरों की मैपिंग की, जिससे उन्नत एयरोडायनामिक विश्लेषण संभव हो सका।

कल्पना चावला केवल भारत की बेटी नहीं थीं, बल्कि वह पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन गईं। उन्होंने अपने कठिन परिश्रम और अटूट साहस से यह साबित कर दिया कि यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा आपके सपनों के आड़े नहीं आ सकती।

एक नहीं दो दो बार की थी अंतरिक्ष यात्रा

कल्पना चावला सिर्फ एक अंतरिक्ष यात्री नहीं थीं, बल्कि सपनों को हकीकत में बदलने वाली भारतीय नारी शक्ति का प्रतीक थीं। उनका सफर सिर्फ एक मिशन तक सीमित नहीं रहा—उन्होंने दो बार अंतरिक्ष की यात्रा की और अपने संकल्प, परिश्रम और निडरता से पूरी दुनिया को प्रेरित किया। 1993 में, कल्पना चावला ने ओवरसेट मेथड्स इंक, लॉस अल्टोस में उपाध्यक्ष और शोध वैज्ञानिक के रूप में काम शुरू किया। यहां उन्होंने जटिल एयरोडायनामिक समस्याओं के समाधान पर शोध किया और ऐसी कुशल तकनीकों के विकास व कार्यान्वयन की जिम्मेदारी संभाली, जो वायुगतिकीय अनुकूलन को और बेहतर बना सकें।

दिसंबर 1994 में, नासा ने उनकी काबिलियत को पहचाना और उन्हें मार्च 1995 में जॉनसन स्पेस सेंटर में 15वें अंतरिक्ष यात्री समूह के तहत एक उम्मीदवार के रूप में चुना। कठोर प्रशिक्षण और मूल्यांकन के एक साल बाद, उन्हें अंतरिक्ष यात्री कार्यालय में EVA (Extravehicular Activity), रोबोटिक्स और कंप्यूटर शाखाओं के लिए चालक दल के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।

इस दौरान उन्होंने शटल एवियोनिक्स इंटीग्रेशन लैबोरेटरी (SAIL) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ उन्होंने रोबोटिक सस्पेंशन अवेयरनेस डिस्प्ले और स्पेस शटल कंट्रोल सॉफ्टवेयर के परीक्षण पर काम किया। यह कार्य भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों की सफलता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण था।

पहली अंतरिक्ष यात्रा – STS-87 (19 नवंबर – 5 दिसंबर 1997)
नवंबर 1996 में, कल्पना को STS-87 मिशन के लिए मिशन विशेषज्ञ और प्रमुख रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में चुना गया। यह मिशन 19 नवंबर से 5 दिसंबर 1997 तक चला और यह चौथी यूएस माइक्रोग्रैविटी पेलोड उड़ान थी। इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में वैज्ञानिक और भौतिक प्रक्रियाओं पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना था।

इस ऐतिहासिक उड़ान में, कल्पना चावला ने पृथ्वी की 252 कक्षाओं में 10.4 मिलियन मील (लगभग 1.67 करोड़ किलोमीटर) की दूरी तय की और कुल 376 घंटे 34 मिनट अंतरिक्ष में बिताए।

दूसरी अंतरिक्ष यात्रा – STS-107 (16 जनवरी – 1 फरवरी 2003)
उनकी असाधारण क्षमताओं को देखते हुए, कल्पना को दोबारा स्पेस शटल कोलंबिया (STS-107) मिशन के लिए चुना गया। हालांकि, शटल इंजन फ्लो लाइनर्स में दरारों और गड़बड़ियों के कारण यह मिशन कई बार टला और आखिरकार 16 जनवरी 2003 को लॉन्च किया गया।

STS-107 पूरी तरह से वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रयोगों के लिए समर्पित था। इस 16-दिवसीय अभियान में चालक दल ने 24 घंटे की दो शिफ्टों में लगातार काम करते हुए लगभग 80 प्रयोग पूरे किए। इनमें अंतरिक्ष में जैविक प्रक्रियाओं, दहन अनुसंधान और माइक्रोग्रैविटी में भौतिकी से जुड़े परीक्षण शामिल थे।

एक दर्दनाक त्रासदी
1 फरवरी 2003, जब कोलंबिया स्पेस शटल पृथ्वी पर लौट रही थी, तो एक भयानक दुर्घटना हो गई। वायुमंडल में प्रवेश करते समय शटल में तकनीकी खराबी आ गई, जिससे यह टेक्सास के ऊपर 60 किलोमीटर की ऊँचाई पर विघटित हो गई। इस हादसे में कल्पना चावला सहित सभी छह चालक दल के सदस्यों की जान चली गई।

यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक गहरा आघात था। कल्पना चावला, जो एक साधारण भारतीय परिवार की बेटी थीं, अंतरिक्ष में भारत का झंडा गर्व से लहराने वाली अमर नायिका बन गईं।

 

सम्मान और प्रेरणा का प्रतीक

कल्पना चावला की वीरगति के बाद, उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया:

  • फरवरी 2004 में, उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मरणोपरांत नासा के विशिष्ट सेवा पदक (NASA Distinguished Service Medal) से सम्मानित किया गया।
  • भारत सरकार ने मौसम उपग्रह METSAT का नाम बदलकर “कल्पना-1” कर दिया, ताकि उनकी स्मृति सदैव जीवित रहे।
  • उनके नाम पर अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थानों, सड़कों, और पुरस्कारों की एक श्रृंखला शुरू की गई, ताकि नई पीढ़ी उनकी प्रेरणादायक यात्रा से सीख सके।

 

 

स्रोत: कल्पना चावला, कल्पना चावला लास्ट मिशन, नासा, Kalpana Chawla, Kalpana Chawla Last Mission, NASA
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