पाकिस्तान के अशांत राज्य बलूचिस्तान के सिब्बी ज़िले में मंगलवार (11 मार्च) को हथियारबंद बलूच लड़ाकों ने एक ट्रेन को हाईजैक कर लिया और इसमें सवार यात्रियों को बंधक बना लिया। बताया जा रहा है कि क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस नाम की इस ट्रेन में पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारी, उनकी पत्नियाँ एवं बच्चे सहित लगभग 200 लोग सवार थे। ट्रेन का अपहरण करने की जिम्मेदारी बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) नाम के संगठन ने ली थी। अब पाकिस्तानी सेना ने दावा किया है कि जाफर एक्सप्रेस ट्रेन का रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा हो गया है। पाकिस्तानी सेना के मुताबिक, BLA के सभी लड़ाकों को मार दिया गया है और सभी बंधकों को रिहा करा लिया गया है। वहीं, पाक सेना के लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ के मुताबिक, BLA के विद्रोहियों ने ट्रेन को हाईजैक करने के बाद 21 यात्रियों की हत्या कर दी थी जिनमें अर्धसैनिक बल के चार जवान भी शामिल थे।
इससे पहले बलूच लड़ाकों ने पाकिस्तानी सेना को चेतावनी दी थी कि अगर ट्रेन और बंधकों छुड़ाने की कोशिश की गई तो वह सारे लोगों की हत्या कर देगा। बलूच लड़ाकों ने लगभग 30 पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या किए जाने का दावा भी किया। बलूच लड़ाके बंधकों को रिहा करने के बदले में अपने कैदी साथियों की रिहाई और बलूचिस्तान में चीन की परियोजनाओं को हटाने की माँग कर रहे थे। बलूचों का आरोप है कि पाकिस्तानी सेना बलूचों पर जुल्म ढा रही है और उनके यहाँ की खनिज संपदा का दोहन कर रही है, लेकिन इसका फायदा स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा है। लड़ाकों का यह भी आरोप है कि पाकिस्तानी सेना बलूच बुजुर्ग से लेकर छोटे-छोटे बच्चों को निशाना बना कर रही है और उनका अपहरण करके या तो उन्हें मारकर फेंक दे रही है या फिर कैदखाने में डाल दे रही है। उनका कहना है कि ऐसे हजारों बलूच लोग हैं, जो लापता हैं।
BLA ने जाफर एक्सप्रेस को कैसे बनाया निशाना?
पाकिस्तान की इस हाईफाई ट्रेन को निशाना बनाने के लिए BLA ने काफी तैयारी की थी। इस काम को बलूच लिबरेशन आर्मी के सबसे खतरनाक विंग मजीद ब्रिगेड ने अंजाम दिया है। दरअसल यह ट्रेन बलूचिस्तान के क्वेटा से खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के पेशावर के बीच चलती है। 11 मार्च की सुब 9 बजे यह ट्रेन क्वेटा से पेशावर के लिए निकली थी। यह ट्रेन दोपहर 1.30 बजे सिब्बी पहुँचती, इससे पहले ही इस जिले के बोलान के माशफाक सुरंग में BLA लड़ाकों ने हमला कर दिया। यह पूरा इलाका पहाड़ी है और यहाँ 17 सुरंगें हैं। यही कारण है कि यहाँ से गुजरने के दौरान ट्रेनों की रफ्तार धीमी करनी पड़ती है।
जाफर एक्सप्रेस के साथ भी यही हुआ। इस ट्रेन की रफ्तार जैसे ही धीमी हुई, पहले से ही घात लगाकर बैठे BLA के मजीद ब्रिगेड के लड़ाकों ने माशफाक में टनल नंबर-8 को विस्फोट से उड़ा दिया। विस्फोट होते ही जाफर एक्स्प्रेस पटरी से उतर गई और लड़ाकों ने इस पर कब्जा कर लिया। इस दौरान ट्रेन में तैनात पाकिस्तानी सेना के जवानों ने बलूच लड़ाकों का मुकाबला करे की कोशिश की लेकिन इसमें 30 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। जिस सुरंग में जाफर एक्सप्रेस को बंधक बनाया गया, वह क्वेटा से लगभग 157 किलोमीटर की दूर है। दुर्गम पहाड़ी और खतरनाक दर्रों से घिरे होने के कारण इस इलाके में मोबाइल नेटवर्क भी काम नहीं करता।
बंधकों में पाकिस्तान की सेना के जवान और उनके परिवार, पुलिस, सुरक्षा बल, एंटी-टेररिज्म फोर्स (ATF) और खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के एक्टिव ड्यूटी कर्मचारी शामिल रहे। ये सभी पंजाब जा रहे थे। ट्रेन को बंधक बनाने के बाद BLA के लड़ाकों ने कहा कि उन्होंने महिलाओं, बच्चों और बलूच यात्रियों को छोड़ दिया है। उन्होंने सिर्फ पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के कर्मचारियों को ही बंधक बनाकर रखा है।
जाफर एक्सप्रेस ही निशाने पर क्यों?
दरअसल, जाफर एक्सप्रेस पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण ट्रेनों में से एक है। यह बलूचिस्तान के क्वेटा से खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के पेशावर के बीच चलती है। यह ट्रेन बलूचिस्तान सहित पाकिस्तान के बेहद महत्वपूर्ण इलाकों से होकर गुजरती है। इसे कुल 1,632 किलोमीटर (1,014 मील) की दूरी तय करने में करीब 34 घंटे का समय लगता है। जाफर एक्सप्रेस का रूट रोहरी-चमन रेलवे लाइन और कराची-पेशावर रेलवे लाइन के माध्यम से गुजरता है। यही कारण है कि इस इस ट्रेन से अक्सर सैनिक, सरकारी कर्मचारी और सरकारी अधिकारी यात्रा करते हैं। ऐसे में बीएलए ने काफी सोच-विचारकर इस ट्रेन को निशाना बनाया ताकि सरकार पर आसानी से दबाव बनाया जा सके। इसके साथ ही बलूच लड़ाके इस ट्रेन पर हमला करके पाकिस्तानी सेना और ISI के मनोबल को भी तोड़ना चाहते हैं।
इसकी अहमियत को देखते हुए और पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों द्वारा इसके सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने के कारण जाफर एक्सप्रेस को पहले भी निशाना बनाया जा चुका है। 16 अगस्त 2013 को भी इस ट्रेन पर हमला किया गया था। उस दौरान बोलान जिला के मच्छ टाउन के पास इस ट्रेन पर रॉकेट हमला किया गया था। इस हमले में 2 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 10 से अधिक लोग घायल हो गए। इस हमले की जिम्मेदारी भी बलूच लिबरेशन आर्मी ने ली थी।
बलूच लिबरेशन आर्मी और उसका उद्देश्य?
आधुनिक बलूचिस्तान का अधिकांश हिस्सा स्वतंत्रता से पहले कलात रियासत कहलाता था। भारत के बँटवारे के पहले यहाँ राजा को खान ऑफ कलात कहा जाता था। भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के बाद कलात रिसायत ने खुद को आजाद घोषित कर दिया था। बलूचों का मानना है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान में नहीं मिलना चाहता था, लेकिन पाकिस्तान की सेना ने उस पर सैन्य कार्रवाई करके अपने साथ मिला लिया था। कलात के राजा से जबरन विलय पत्र पर दस्तख़त कराए गए। दरअसल, पाकिस्तान को डर था कि बलूचिस्तान को कहीं भारत सैन्य कार्रवाई करके अपने साथ ना मिला ले।
हालाँकि, बलूचिस्तान की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए मुमकिन नहीं था लेकिन सीमांत गाँधी के नाम से प्रसिद्ध यहाँ के सबसे प्रभावशाली नेता खान अब्दुल गफ्फार का भारत से लगाव और इसके प्रति झुकाव पाकिस्तान के मन में संदेह पैदा कर दिया। इसके बाद उसने बलूचिस्तान पर 1948 में सैन्य करके उसे खुद में मिला लिया। बता दें कि खान अब्दुल गफ्फार खान अकेले ऐसे विदेशी नेता हैं, जिन्हें भारत ने अपना सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया है।
पाकिस्तान के इस जबरन कब्जे के बाद वहाँ पाकिस्तान सेना के खिलाफ छिटपुट विद्रोह शुरू हो गया था। उस दौरान कलात राज्य के राजकुमार करीम ने सशस्त्र संघर्ष शुरू किया था। इस तरह असंगठित विद्रोह जारी रहा। इसी बीच 1960 के दशक में पाकिस्तानी सेना यहाँ के प्रसिद्ध नेता नौरोज़ खान और उनके बेटों को गिरफ़्तार कर लिया। इसके बाद यहाँ मन में पाकिस्तान के प्रति मन में दबा विद्रोह फिर से जाग उठा। छोटा सशस्त्र आंदोलन आखिरकार एक संगठित विद्रोह में बदल गया।
इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने 1970 के दशक में बलूचिस्तान की पहली निर्वाचित विधानसभा और सरकार को निलंबित कर दिया। इतना ही नहीं, उस दौरान बलूचिस्तान के अलगाववादी नेताओं में से प्रमुख नवाब खैर बख़्श मरी और शेर मुहम्मद उर्फ़ शेरोफ़ मरी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके अलावे भी कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद यह विद्रोह फूट पड़ा। माना जाता है कि BLA का उदय इसी दौरान हुआ था। उस दौरान पहली बार BLA का नाम सामने आया था।
इसके बाद सैन्य शासक ज़ियाउल हक़ ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके बाद उन्होंने बलूच अलगाववादी नेताओं से बातचीत की। इसके तहत गिरफ्तार किए गए नेताओं को छोड़ दिया गया और उन्हें सुरक्षित अफगानिस्तान जाने दिया गया। इस तरह विद्रोह के प्रमुख चेहरा नवाब खैर बख्श मरी अफगानिस्तान चले गए। नेता के अभाव में बलूचों का सशस्त्र आंदोलन धीरे-धीरे शांत हो गया। इस तरह बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी भी शांत हो गई। जब अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार आई तो वे वापस पाकिस्तान चले आए।
इसके बाद उनके ग्रुप के लोगों ने साल 2000 में पाकिस्तान के प्रमुख ठिकानों पर हमले शुरू कर दिए। दिसंबर 2005 में पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ़ की कोहलू यात्रा के दौरान उनके हैलिकॉप्टर पर रॉकेट दागे गए। तब भी BLA का नाम प्रमुखता से उभरा। इसके बाद साल 2007 में पाकिस्तान सरकार ने इसे आतंकवादी संगठन बताकर इसे आतंकियों की लिस्ट में डाल दिया। इतना ही नहीं, नवंबर 2007 को अफ़ग़ानिस्तान में नवाब ख़ैर बख़्श मरी के बेटे नवाबज़ादा बालोच मरी की हत्या कर दी गई। उस समय पाकिस्तानी अधिकारियों ने उन्हें BLA का प्रमुख बताया था। साल 2005 के बाद से BLA पाकिस्तान में कई हमले कर चुकी है। वह अपनी आजादी के लिए लड़ रही है। इस समय BLA के पास लगभग 3,000 लड़ाके हैं। इसका सबसे खतरनाक ग्रुप मजीद ग्रुप है, जो फियादीन हमले के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, इसमें फतेह स्क्वॉड, स्पेशल टैक्टिकल ऑपरेशंस स्क्वॉड (STOS) और इंटेलिजेंस विंग जिराब भी है।
बलूच लड़ाकों का मानना है कि पाकिस्तान ने उस पर अवैध कब्जा किया है। उसके खनिज संपदा का इस्तेमाल वह अपने लोगों यानी पंजाबियों के लिए करता है। दरअसल, पाकिस्तान के कुल जमीन के 44 प्रतिशत हिस्से में फैला बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है। यहाँ पाकिस्तान की आबादी के सिर्फ 6 प्रतिशत लोग ही रहते हैं। इसलिए पाकिस्तान इन लोगों पर तरह-तरह के जुल्म ढाकर मनमानी करते रहता है।
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन को सौंप दिया है। यहाँ की खनिज संपदा को निकालने के लिए चीन की कंपनियाँ लगी हुई हैं। हालाँकि, यहाँ के मूल निवासियों बलूच और मरी जनजातीय को कोई फायदा नहीं मिलता है। यही कारण है कि बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी सहित कई अलगाववादी गुटों ने चीनी नागरिकों पर भी हमले किए हैं। बता दें कि ग्वादर बंदरगाह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का एक प्रमुख हिस्सा है। इस परियोजना का भारत विरोध करता हैं, क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर जाता है। इस परियोजना पर चीन ने 62 बिलियन डॉलर खर्च करने का अनुमान लगाया है।