Rahul Gandhi US Visit: लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय दौरे को लेकर चर्चा में हैं। अमेरिका में उन्होंने भारत की चुनाव प्रणाली और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर तीखे हमले किए हैं। एक ओर दुनिया के कई नेता यहां तक कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत के चुनावी तंत्र की खुलेआम सराहना करते हैं। वहीं राहुल गांधी विदेश की धरती पर भारतीय लोकतंत्र को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बोस्टन में एक प्रवासी भारतीय कार्यक्रम में उन्होंने ऐसे दावे किए जो विदेश में भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करते नजर आए हैं। उनका लगातार आ रहे ऐसे बयानों और दौरों के बाद सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी ‘डीप स्टेट’ की भाषा बोल रहे हैं।
राहुल गांधी 2 दिन के दौरे पर अमेरिका पहुंचे हैं। शनिवार देर रात को वह बोस्टन एयरपोर्ट पर उतरे थे। बोस्टन में एक प्रवासी भारतीय कार्यक्रम को राहुल गांधी ने संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने भारत का चुनाव आयोग अब निष्पक्ष नहीं रहा। इसके बाद से वह भारत में लोगों के निशाने पर आ गए हैं।
वो 3 बातें जो राहुल ने कही
– मैं कई बार कह चुका हूं कि महाराष्ट्र में जितने बालिग नहीं हैं, उससे ज्यादा वोट पड़े हैं। आयोग ने हमें साढ़े पांच बजे वोटिंग का आंकड़ा बताया। बाद में पता चला कि 5:30 से शाम 7:30 के बीच 65 लाख वोटिंग हुई।
– 2 घंटे में 65 लाख वोटिंग मुमकिन नहीं है। एक वोटर को वोट डालने में करीब 3 मिनट लग जाते हैं। अगर गणित लगाएंगे तो पता चलेगा कि रात 2 बजे तक वोटर्स की लाइन लगनी थी। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ।
– राहुल गांधी ने दावा किया कि हमने वीडियोग्राफी मांगी तो आयोग ने साफ मना कर दिया। उन्होंने कानून भी बदल दिया ताकि हम आगे वीडियो के बारे में सवाल न कर सकें।
क्या ये डीप स्टेट के शब्द हैं?
विदेशी मंचों से भारतीय लोकतंत्र पर उनके लगातार हमलों ने न केवल राष्ट्रीय बल्कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर देश को बदनाम करने की कोशिश हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उनके दौरों और संप्रभु राष्ट्रों को अस्थिर करने के लिए दृढ़ संकल्पित पश्चिमी “डीप स्टेट” के साथ कथित सांठगांठ के बीच गहरा संबंध है।
राहुल गांधी की बयानबाजी जॉर्ज सोरोस जैसे वैश्विक अरबपतियों के साथ मेल खाती है जो भारत में खुले तौर पर शासन परिवर्तन की वकालत करते हैं। जॉर्ज सोरोस ने पहले भी चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश की है। जॉर्ज सोरोस के एजेंडे ‘डीप स्टेट मशीनरी’ और राहुल गांधी के शब्दों के बीच के तालमेल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हर बार जब राहुल गांधी भारत से बाहर निकलते हैं तो वे विदेशी लॉबी द्वारा बनाए गए शब्दों को दोहराते हैं। वो भारत को अलोकतांत्रिक, दमनकारी और टूटा हुआ दिखाते हैं। चाहे वह ईवीएम पर सवाल उठाना हो या जाति जनगणना के मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की मांग करना हो।
ट्रंप ने की थी हमारे प्रणाली की तारीफ
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ ही समय पहले भारत की आधार-लिंक्ड, बायोमेट्रिक वोटिंग प्रणाली को दुनिया की “सबसे सुरक्षित और पारदर्शी प्रणाली” बताया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि “अमेरिका को भारत से सीखना चाहिए।” ऐसे में राहुल गांधी की बातें न केवल विरोधाभासी लगती हैं, बल्कि एक वैश्विक लोकतंत्र में भारत की विश्वसनीयता पर भी चोट करती हैं।
सिर्फ बयान या कोई बड़ी बिसात?
ऐसा पहली बार नहीं है जब विदेशी धरती पर राहुल गांधी ने कोई ऐसा बयान दिया हो। ऐसे में लगता है कि उनकी टिप्पणी किसी सामान्य विपक्षी नेता की आलोचना नहीं है। इसके पीछे और भी कोई वजह है। वे विदेशों में जाकर भारत की संस्थाओं को जिस तरह बदनाम करते हैं, उससे एक सुनियोजित पैटर्न नजर आता है।
2023 में उन्होंने अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी अधिकारी डोनाल्ड लू से मुलाकात की थी। डोनाल्ड लू वहीं इंसान हैं जो कश्मीर, 370 और मानवाधिकारों जैसे मुद्दों पर भारत-विरोधी टिप्पणियों के लिए कुख्यात हैं। इसके अलावा भी उन्होंने पहले ऐसे मंचों को शेयर किया है जहां भारत को लेकर ऐसी बातें की जाती है।
देश का विपक्ष या विदेश का प्रवक्ता?
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां चुनावी प्रक्रिया बहुस्तरीय सत्यापन से गुजरती है। ईवीएम, आधार लिंक, फोटो आईडी और अमिट स्याही के साथ। यह प्रक्रिया भारतीय नागरिकों के लिए गर्व और विश्वास का प्रतीक है। हालांकि, जब देश का नेता ही इसे दुनिया के सामने संदिग्ध बनाता है तो यह केवल राजनीतिक आलोचना नहीं रह जाती। यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बन जाता है।
विदेश में बोलने की आदत है
ऐसा नहीं है है कि राहुल गांधी ने विदेश में जाकर केवल बीजेपी या मोदी सरकार पर निशाना साधते हैं। वो देश में विरोध नहीं कर पाते या नहीं करना चाहते तो विदेश की धरती पर भारत की संस्थाओं के बारे में ऐसी बात करते रहे हैं। विदेशों में जाकर भारत और भारत की संस्थाओं के बारे में बात करते रहे हैं।
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- मई 2022: ब्रिटेन दौरा, CBI-ED की पाकिस्तान से तुलना
- मार्च 2023: ब्रिटेन दौरा, भारत में लोकतंत्र पर सवाल
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अपना और पार्टी काम भी छोड़ देते हैं
राहुल गांधी विदेश दौरों के इतने आदी हो गए हैं कि वो अपने पार्टी और सरकार के काम को भी छोड़ देते हैं। वो कई अहम मौकों पर भी विदेश चले जाते हैं। जबकि, उस समय उनका देश में होना जरूरी हो जाता है।
- अक्टूबर 2019: महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव से पहले कंबोडिया दौरा
- दिसंबर 2019: CAA विरोध के बीच दक्षिण कोरिया दौरा
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- सितंबर 2023: G20 शिखर सम्मेलन के दौरान यूरोपीय देशों का दौरा
राहुल गांधी की कौन सी नीति?
यदि भारत के विपक्षी नेता को लोकतंत्र की रक्षा करनी है तो यह जिम्मेदारी संसद और जनता के बीच निभानी होगी। विदेशी मंचों में देश को कटघरे में खड़ा करने से कुछ हासिल नहीं होना है। देश में चुनाव लड़िए, आलोचना कीजिए, लेकिन विदेश जाकर अपने ही देश की छवि को धूमिल करना किसे उचित लग सकता है। हम तो इसे न राजनीति मानते हैं और न ही ये राष्ट्रनीति तो फिर राहुल गांधी ही जानें भ्रामक बयानों से वो देश का कौन सा भला कर रहे हैं।