जब भारत ने आतंकवाद के खिलाफ एक सख्त रुख अपनाते हुए ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान को जवाब दिया, तो यह केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि भारत की ओर से एक स्पष्ट संदेश था कि अब आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान को उसकी ही ज़मीन पर घेरने का काम किया और भारत ने यह दिखा दिया कि वह सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि रणनीति और साहस में भी आगे है। लेकिन इस निर्णायक कार्रवाई के बीच चीन ने एक बार फिर अपनी भूमिका को लेकर संदेह पैदा कर दिया। दुनिया जब भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की सराहना कर रही थी, तब चीन ने खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े होने का ऐलान किया। यह वही चीन है जो खुद को वैश्विक मंचों पर जिम्मेदार शक्ति बताने की कोशिश करता है, लेकिन जब बात भारत की सुरक्षा और आतंक के खिलाफ एकजुटता की होती है, तो वह पाकिस्तान जैसे आतंक-समर्थक देश का पक्ष लेने से नहीं चूकता।
चीन की यह भूमिका केवल कूटनीतिक समर्थन तक सीमित नहीं रही। अब उसने पाकिस्तान में मोहमंद डैम जैसे ‘फ्लैगशिप’ प्रोजेक्ट को तेज़ी से आगे बढ़ाने की घोषणा कर दी है और वह भी ऐसे समय में जब भारत ने सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को दी जाने वाली पानी की आपूर्ति पर पुनर्विचार की बात की थी। चीन की सरकारी कंपनी चाइना एनर्जी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन 2019 से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और अब यह डैम निर्माण अपने निर्णायक चरण में पहुंच चुका है। यह महज़ एक जल परियोजना नहीं, बल्कि चीन की एक सोची-समझी रणनीतिक चाल है पाकिस्तान को तकनीकी और आर्थिक सहारा देकर भारत की भू-राजनीतिक संतुलन को प्रभावित करने की कोशिश।
इन सबके बीच, चीन ने हाल ही में एक और उकसावे भरा कदम उठाते हुए भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य में मौजूद कुछ स्थानों के नाम बदल दिए। यह एक बेहद गंभीर संकेत है कि अब चीन केवल परोक्ष रणनीति पर नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष मानसिक और राजनीतिक दबाव डालने की नीति पर काम कर रहा है। यह प्रयास न तो नया है, न ही अप्रत्याशित, लेकिन समय और संदर्भ इसे और भी अधिक चिंताजनक बनाते हैं। यह कदम यह दर्शाता है कि चीन अब भारत की क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देने में कोई संकोच नहीं कर रहा।
सवाल यह है कि चीन बार-बार ऐसे उकसावे क्यों कर रहा है? क्या वह पाकिस्तान जैसे देश को मजबूत कर भारत को पश्चिमी मोर्चे पर उलझाना चाहता है, जबकि पूर्व में अरुणाचल के ज़रिए तनाव पैदा कर सामरिक दबाव बनाए रखना चाहता है? या फिर वह भारत की वैश्विक छवि और रणनीतिक प्राथमिकताओं को ध्वस्त करने की एक व्यापक नीति पर चल रहा है? और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या अब भारत को सिर्फ कूटनीतिक प्रतिक्रिया तक सीमित रहना चाहिए, या फिर चीन की इन योजनाओं को उसी की भाषा में जवाब देने का समय आ गया है?
पेशावर में 30 करोड़ गैलन पानी सप्लाई होगी
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लेकर चल रहे तनाव के बीच चीन ने पाकिस्तान में मोहमंद डैम के निर्माण को तेज़ करने की घोषणा कर दी है। यह परियोजना तकनीकी दृष्टि से चाहे जितनी बड़ी हो, लेकिन इसके पीछे की भूराजनीतिक मंशा को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। चीन द्वारा इसे ‘नेशनल फ्लैगशिप प्रोजेक्ट’ करार देना और इसका तेजी से आगे बढ़ाया जाना यह संकेत देता है कि बीजिंग पाकिस्तान को केवल आर्थिक मदद ही नहीं, बल्कि रणनीतिक बढ़त भी देने की कोशिश कर रहा है।
मोहमंद डैम पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मोहमंद जिले में स्वात नदी पर बनाया जा रहा है। इस बहुउद्देशीय परियोजना में बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, जल आपूर्ति और बिजली उत्पादन सभी पहलू शामिल हैं। डैम की ऊंचाई 700 फीट होगी, जो इसे दुनिया के सबसे ऊंचे बांधों में से एक बनाएगी। इसके पूरा होने के बाद यह डैम 800 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन करेगा और पेशावर शहर को हर दिन 30 करोड़ गैलन पीने योग्य पानी उपलब्ध कराएगा। साथ ही यह हजारों एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई करेगा और क्षेत्र को मौसमी बाढ़ से राहत देगा।
इस परियोजना का निर्माण चीन की सरकारी कंपनी चाइना एनर्जी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन कर रही है, जिसने वर्ष 2019 में काम शुरू किया था। हाल ही में साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट में बताया गया कि डैम में कंक्रीट भरने का काम शुरू हो गया है। दिलचस्प बात यह है कि यह खबर ऐसे समय पर आई है जब पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री इशाक डार चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात करने बीजिंग जा रहे हैं। इसका अर्थ साफ है कि डैम केवल एक विकास परियोजना नहीं, बल्कि उच्च-स्तरीय राजनीतिक और रणनीतिक सहयोग का प्रतीक बन चुका है।
पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार डैम निर्माण का कार्य तय समय से आगे चल रहा है। इस समय पावर और सिंचाई टनल की खुदाई, स्पिलवे का निर्माण और अपस्ट्रीम कॉफरडैम पर कार्य तेज़ी से जारी है। डॉन अखबार की रिपोर्ट के अनुसार डैम 2027 तक पूरा हो सकता है। इसके अलावा, चीन पाकिस्तान की जल भंडारण क्षमता को और बढ़ाने के लिए डायमर-भाषा डैम परियोजना में भी सहयोग कर रहा है, जो खैबर पख्तूनख्वा और गिलगित-बाल्टिस्तान के पास सिंधु नदी पर चिलास क्षेत्र में बनाया जा रहा है।
इन दोनों परियोजनाओं का एक बड़ा संदेश छिपा हुआ है। चीन पाकिस्तान में जल परियोजनाओं के माध्यम से केवल आर्थिक हित नहीं साध रहा, बल्कि भारत पर बहुस्तरीय दबाव बनाने की एक ठोस रणनीति पर काम कर रहा है। यह जल कूटनीति, जिसे अब डैम डिप्लोमेसी कहा जा सकता है, भारत की सामरिक और जल नीतियों को नई चुनौती दे रही है। अब सवाल यही है कि क्या भारत इन बढ़ती परियोजनाओं को केवल आर्थिक सहयोग का नाम देकर अनदेखा कर सकता है, या फिर यह समय है कि जल संसाधनों पर पड़ते भूराजनीतिक प्रभावों को केंद्र में रखकर रणनीतिक योजना तैयार की जाए। यह डैम एक दीवार भर नहीं, चीन और पाकिस्तान की साझा मंशा का एक ठोस संकेत है, और भारत को इसे गंभीरता से लेना ही होगा।