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25 जून 1989 का ‘मोगा नरसंहार’: संघ के स्वयंसेवकों के अमर बलिदान की स्मृति

25 जून, 1989 को पंजाब के मोगा में संघ की शाखा पर खालिस्तानी आतंकवादियों ने हमला किया था, जिसमें 25 निर्दोष कार्यकर्ताओं ने देश की एकता और अखंडता के लिए संघ की प्रार्थना के ‘पतत्वेष कायो’ वाक्य को चरितार्थ करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी ।

Dr. Mahender द्वारा Dr. Mahender
25 June 2025
in इतिहास, मत
25 जून 1989 का ‘मोगा नरसंहार’: संघ के स्वयंसेवकों के अमर बलिदान की स्मृति

25 जून 1989, ‘मोगा नरसंहार’: संघ के स्वयंसेवकों के अमर बलिदान की स्मृति

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25 जून एक ऐसी तिथि है जिसे देश शायद ही कभी भूल पाये। 25 जून 1975 की मध्य रात्रि इंदिरा गाँधी ने देश को आपातकाल की आग में झोंका था । इस वर्ष के 25 जून को लोकतंत्र और संविधान की हत्या करने वाले उस कुकृत्य के 50 वर्ष पुरे हो रहे हैं। आपातकाल के उस घोर कालखंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दूसरी बार प्रतिबंध का सामना करना पड़ा था और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हेतु संघ के लाखों कार्यकर्ताओं ने अपमान और घोर अत्याचारों को हँसते हँसते सहन किया था। संघ के कार्यकर्ता न झुके और और न ही टूटे, अन्ततोगत्वा फासीवादी सरकार और उसके दरबारियों का घमंड टूटा और 1977 के चुनावों में लोकतंत्र समर्थक शक्तियों की विजय हुई ।

संघ के लिए ‘आपातकाल’ लागू होने के अलावा भी ‘25 जून’ विशेष स्मरणीय दिवस है क्योंकि 25 जून, 1989 को पंजाब के मोगा में संघ की शाखा पर खालिस्तानी आतंकवादियों ने हमला किया था, जिसमें 25 निर्दोष कार्यकर्ताओं ने देश की एकता और अखंडता के लिए संघ की प्रार्थना के ‘पतत्वेष कायो’ वाक्य को चरितार्थ करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी । ये वही कालखंड है जिसमें पंजाब खालिस्तानी आतंकवाद की आग में जल रहा था । इसी कालखंड के लिए अटल जी ने लिखा था :-

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दूध में दरार पड़ गई
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी,
व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने स्थापना काल से ही भारत विरोधियों शत्रुओं की कुदृष्टि में रहा है। शुरुआत में अंग्रेजों की ख़ुफ़िया एजेंसियां नजर रखती थीं, स्वतंत्रता के बाद नेहरु ने झूठा प्रतिबन्ध लगा दिया, फिर इंदिरा ने आपातकाल में प्रतिबन्ध लगाया । इसके साथ ही रेडिकल इस्लामिक आतंकवादियों, नक्सलवादियों, शत्रु देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों के निशाने पर भी संघ सतत रहता है । कारण सिर्फ एक ही है कि संघ हर क्षण भारत के उत्थान या भारत के वैभव के बारे में सोचता है और काम करता रहता है ।

संघ की देशभक्ति की इसी चिढ़ के कारण आज भी देश में संघ के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जाता है, उनकी हत्या कर दी जाती है । लेकिन केशव के अनुयायी न तो रुकते हैं और न ही डिगते हैं । भारत का ‘खड़ग हस्त’ कहलाने वाला पंजाब जब उग्रवाद या आतंकवाद से जूझ रहा था तब भी संघ के स्वयंसेवक निर्भयता से भारत भक्ति में लीन थे और धरातल पर कार्य कर रहे थे । उसी आतंकी कालखंड में पाकिस्तान की उँगलियों पर नाचने वाले खालिस्तानी आतंकियों ने पंजाब के मोगा में 25 जून,1989 को सुबह लगने वाली शाखा पर कायरतापूर्ण हमला किया था । संघ पंजाब में अलगाववादी आंदोलन और आतंकवाद के चरम पर सिख-हिंदू एकता को अक्षुण बनाये रखने के लिए अथक परिश्रम करता रहा है। सिखों और हिंदुओं के मध्य दरार पैदा करने के उग्रवादी मंसूबों में संघ ही सबसे बड़ी बाधा थी, इसलिए आतंकियों ने संघ के स्वयंसेवकों निशाना बनाया।

आज भी संघ के स्वयंसेवक उस घटना को याद करते हुए बताते हैं कि आतंकवादियों ने शाखा में लगा भगवा ध्वज उतारने के लिए कहा था, लेकिन स्वयंसेवकों ने साफ मना कर दिया और जब आतंकियों ने ध्वज उतारने की कोशिश की तो स्वयंसेवकों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया था । लेकिन पाकिस्तानी टुकड़ों पर पलने वाले आतंकियों ने अन्धाधुन्ध फायरिंग कर दी, जिसमें 25 स्वयंसेवक बलिदान हो गए। यह सारा आतंकी कुकृत्य 25 जून, 1989 को सुबह 6 से 6:30 बजे के बीच तत्कालीन नेहरु पार्क (आज का शहीदी पार्क) में घटित हुआ था। उस दिन रोज की तरह बहुत से लोग पार्क में सुबह की सैर और व्यायाम कर रहे थे और वहीं दूसरी ओर संघ की शाखा लगी हुई थी। उस दिन संघ का नगर (शहर) का एकत्रीकरण था इसलिए सभी शाखाएं एक साथ लगी थीं। आतंकवादियों के हमला करते ही हर तरफ भगदड़ मच गई। उनके द्वारा बरसाई गयी गोलियों की बरसात रुकने के बाद चारों ओर रक्त ही रक्त दिख रहा था । घायल स्वयंसेवक तड़प रहे थे और गोलियाँ लगने के कारण कई स्वयंसेवक निष्प्राण हो चुके थे और कुछ ने अस्पताल में अपनी अन्तिम सांस ली थी। इस आतंकी गोली कांड में जहाँ 25 स्वयंसेवक बलिदान हुए, वहीं आसपास के लगभग 31 लोग घायल भी हुए थे।

इस कायरतापूर्ण गोली कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था । लेकिन, ‘मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित, चाहता हूँ मातृभू तुझको अभी कुछ और भी दूँ…’ इस मंत्र के साथ निर्भय होकर सतत कार्य करने वाले संघ के स्वयंसेवकों ने साहस का परिचय देते हुए अगले दिन अर्थात् 26 जून, 1989 को फिर से पूर्ण जोश के साथ शाखा लगाई। शाखा में संघ के स्वयंसेवक गीत गा रहे थे – कौन कहंदा हिन्दू-सिख वक्ख ने, ए भारत माँ दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ जिसका अर्थ है कि “कौन कहता है कि हिंदू-सिख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आँख के समान हैं”। उसी दिन शाखा में उन अमर बलिदानियों को श्रधांजली देते हुए उनकी स्नृति को सदैव जीवंत रखने के लिए उस पार्क में ‘शहीदी स्मारक’ बनाने का संकल्प लिया गया था और इसी कार्य के अंतर्गत ‘मोगा पीड़ित मदद और स्मारक समिति’ का भी गठन हुआ था। आज भी प्रतिवर्ष उन अमर बलिदानियों के स्मरण में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाता है। संघ के स्वयंसेवकों ने इतने क्रूर आघात को अत्यंत धैर्य के साथ झेला तथा अपने विवेक को विचलित न होकर समाज में स्नेह और सौहार्द बनाये रखने के लिए हर संभव प्रयास किया । यह सब  उनकी धयेयनिष्ठा और अनुशासन के गुणों के अनुरूप ही था, क्योंकि यदि प्रतिक्रिया होती तो बहुत विनाशक दंगे हो सकते थे ।  अलगाववादी तथा आतंकवादी यही चाहते थे, क्योंकि उनकी मंशा हिन्दू-सिख एकता में दरार पैदा करना था । लेकिन संघ के स्वयंसेवकों ने उनके विध्वंसकारी मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया । 

उस अमानवीय आतंकी गोली कांड में बलिदान हुए संघ के स्वयंसेवकों को श्रंधाजली देते हुए उनके नाम लिखना उनके प्रति वास्तविक श्रधांजली है। उन बलिदानी लोगों के नाम थे, “लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानन्द, अमन कुमार, ओम प्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओम प्रकाश और छिन्दर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पण्डित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवन्त सिंह ”।

इस गोली काण्ड में प्रेम भूषण, राम लाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीनानाथ, हंसराज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, रामप्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचन्द और कुछ अन्य स्वयंसेवक घायल हुए थे।

उसी स्थान पर दोबारा शाखा लगने के कारण इस घटना ने न केवल पंजाब में हिन्दू-सिख एकता को नवजीवन दिया, बल्कि आतंकवाद पर भी गहरी चोट की । इससे आतंकियों के हौसले पस्त हो गए और हिन्दू-सिख एकता जीत गई। देश की एकता और अखंडता के लिए अपने जीवन की आहुति देने वाले उन सभी संघ के कार्यकर्ताओं को नमन और देश विरोधी और अलगाववादी ताकतों को सन्देश कि “हम तो केशव के अनुयायी हैं, हमने तो केवल आआगे बढ़ना सीखा है ।” नारायणायेती समर्पयामि..

Tags: 100 Years of RSS25 जून25 जून 1989dr mahender thakurdrmahenderthakurRashtriya Swayamsevak Sanghrssअटल बिहारी वाजपेयीआपातकालआरएसएसइमरजेंसीमोगा नरसंहारराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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