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उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से आई एक ताज़ा मेडिकल रिपोर्ट ने महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी एक बेहद गंभीर लेकिन आम तौर पर अनदेखी रहने वाली समस्या को उजागर कर दिया है। उमानाथ सिंह स्वायत्त मेडिकल कॉलेज के आर्थोपेडिक्स विभाग द्वारा किए गए इस अध्ययन के मुताबिक, मुस्लिम महिलाओं में विटामिन D की भारी कमी पाई गई है, जिससे उनकी हड्डियां कमजोर हो रही हैं और बिना किसी बड़े कारण के फ्रैक्चर तक हो रहे हैं।
यह अध्ययन उमानाथ सिंह स्वायत्तशासी चिकित्सा महाविद्यालय के हड्डी रोग विभाग द्वारा वरिष्ठ ऑर्थोपेडिक सर्जन प्रो. डॉ. उमेश कुमार सरोज के नेतृत्व में किया गया। शोध में कुल 200 महिलाओं को शामिल किया गया, जिनमें 100 मुस्लिम और 100 हिंदू महिलाएं थीं। इस दौरान उनके विटामिन D के स्तर और उसके हड्डियों पर पड़ने वाले प्रभाव का विस्तार से मूल्यांकन किया गया।
क्या कहती है रिपोर्ट?
रिपोर्ट में एक चौंकाने वाली बात सामने आई कि 70% मुस्लिम महिलाएं विटामिन D की गंभीर कमी से जूझ रही हैं। इस कारण उनमें ऑस्टियोमलेसिया नामक रोग देखा गया, जिसमें हड्डियां नरम और भुरभुरी हो जाती हैं। तुलना में केवल 30% हिंदू महिलाएं ही इस स्थिति से प्रभावित पाई गईं।
ऑर्गेनाइज़र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. सरोज बताते हैं, “यह बीमारी बेहद खतरनाक है क्योंकि इसके लक्षण शुरू में बहुत सामान्य लगते हैं। हड्डियों में कमजोरी धीरे-धीरे बढ़ती है और महिलाएं बिना किसी चोट या गिरावट के भी फ्रैक्चर का शिकार हो रही हैं।”
किशोरियों से लेकर अधेड़ महिलाओं तक पर असर
10 से 20 वर्ष की मुस्लिम लड़कियों में 60 से अधिक मामलों में हड्डी टूटने की घटनाएं दर्ज की गईं। वहीं 21 से 50 वर्ष की महिलाओं में भी लगभग 35 मामलों में हड्डियों से जुड़ी जटिलताएं पाई गईं। यह समस्या केवल किसी एक आयु वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर उम्र की महिलाओं को प्रभावित कर रही है, चाहे वह किशोरियां हों, गृहिणी हों या उम्रदराज महिलाएं हों।
क्या है बीमारी की वजह?
शोधकर्ताओं के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं में विटामिन D की व्यापक कमी का मुख्य कारण धूप के संपर्क में न आना है, जो इस विटामिन का प्राकृतिक स्रोत है। विशेष रूप से बुर्का जैसे पारंपरिक और धार्मिक वस्त्र, जो शरीर को पूरी तरह ढक देते हैं, इस समस्या को बढ़ावा देते हैं।
इसके विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली हिंदू महिलाएं, जो खेती जैसे बाहरी कार्यों में संलग्न रहती हैं, नियमित रूप से धूप में आती हैं और इस कारण विटामिन D की कमी से अपेक्षाकृत कम प्रभावित होती हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि मुस्लिम महिलाओं की तुलना में हिंदू महिलाओं में यह कमी लगभग 70 प्रतिशत कम है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “धूप शरीर में विटामिन D बनने की प्रक्रिया को सक्रिय करती है, लेकिन जब महिलाएं अधिकतर समय घर के भीतर रहती हैं और पूरा शरीर ढका होता है, तो यह प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित हो जाती है।”
इन लक्षणों को आम समझती हैं महिलाएं
अध्ययन में पाया गया कि अधिकतर महिलाएं इस स्थिति को गंभीर मानती ही नहीं क्योंकि उसे इसका अंदाजा नहीं होता है। अधिकतर महिलाओं को लगता है कि यह थकान या काम के बोझ की वजह से हो रहा है। अक्सर रिपोर्ट की गई शिकायतें इस प्रकार थीं:
कमर के निचले हिस्से में लगातार दर्द
मांसपेशियों में ऐंठन और जकड़न
थकावट और चिड़चिड़ापन
डॉ. सरोज बताते है कि ऐसे में महिलाएं मेडिकल जांच कराने के बजाय पेनकिलर या साधारण मल्टीविटामिन लेना शुरू कर देती हैं, जिससे लक्षण तो दब जाते हैं लेकिन समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है। उनका कहना है कि जब तक X-Ray या ब्लड टेस्ट ना कराएं जाएं तब तक इस बीमारी का सही पता नहीं चलता।
क्या करें? डॉक्टरों की सलाह
इस समस्या से निपटने के लिए विशेषज्ञों ने कुछ जरूरी उपाय सुझाए हैं:
रोजाना सुबह या शाम की धूप में कम से कम 20-30 मिनट बिताएं
हल्की शारीरिक गतिविधि या योग को दिनचर्या में शामिल करें
हरी सब्जियां, फल, दूध और दही जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाएं
ठंडे पेयों (कोल्ड ड्रिंक्स) का अधिक सेवन न करें, क्योंकि ये पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधा डालते हैं
डॉक्टरों के अनुसार, एक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में विटामिन D का स्तर 30 से 100 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर होना चाहिए। लेकिन जौनपुर की अधिकांश महिलाओं में यह स्तर 20 ng/ml से भी नीचे पाया गया जो कि गंभीर खतरे की घंटी है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की और बढ़ती महिलाएं
डॉ. सरोज और उनकी टीम का मानना है कि यह एक ‘साइलेंट पब्लिक हेल्थ क्राइसिस’ है। उन्होंने कहा कि समस्या तब तक नज़र नहीं आती जब तक किसी महिला की हड्डी टूट न जाए या स्थायी विकृति न हो जाए। इसलिए ज़रूरत है कि विशेष रूप से पारंपरिक परिधान पहनने वाली महिलाओं को जागरूक किया जाए, ताकि वे धूप से डरें नहीं बल्कि इसे अपने स्वास्थ्य का हिस्सा बनाएं। साथ ही समुदाय-स्तर पर महिला केंद्रित स्वास्थ्य जांच शिविर, पोषण जागरूकता अभियान और विटामिन D की स्क्रीनिंग की सख्त ज़रूरत है। जौनपुर की यह रिपोर्ट केवल एक जिले तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है, खासकर उन समुदायों के लिए जहां धार्मिक या सामाजिक कारणों से महिलाएं अधिकतर घर के अंदर और ढंके-छुपे रहती हैं।
जॉर्डन में भी हुई थी स्टडी
यह केवल अकेली रिपोर्ट नहीं है जब पूरे शरीर को ढकने पर इस तरह का असर देखा गया हो। जॉर्डन में किए गए एक अध्ययन में भी इसी तरह के आंकड़े मिले थे। शरीर को ढकने वाले लोगों में विटामिन D की कमी पाई गई थी। इस स्टडी में सामने आया कि पूरी तरह ढकने वाले कपड़ों के चलते ना सिर्फ विटामिन D की कमी हुई बल्कि संभावित हाइपरपैराथायरॉइडिज्म का खतरा भी इससे बढ़ा गया था।
UAE में हुए अध्ययन में क्या सामने आया था?
कई वर्षों पहले UAE में हुई एक स्टडी में भी इसी तरह के दावे किए गए थे। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में रहने वाली अरब और पूर्वी भारतीय महिलाओं में विटामिन D की भारी कमी पाई जाती है। वैज्ञानिकों ने 178 महिलाओं पर एक और अध्ययन किया, जिनमें से ज़्यादातर महिलाएं बाहर निकलते समय खुद को सिर से पांव तक ढकती थीं, यहां तक कि चेहरा और हाथ भी नहीं दिखते थे। अध्ययन शुरू होने से पहले केवल दो महिलाओं में ही विटामिन D की पर्याप्त मात्रा पाई गई, बाकी सभी में इसकी कमी थी।
अब समय है कि स्वास्थ्य जागरूकता को धर्म और परंपराओं की सीमाओं से ऊपर उठकर देखा जाए। महिलाओं को न सिर्फ इलाज की जरूरत है बल्कि जानकारी, समझ और समर्थन की भी आवश्यकता है।