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आधुनिक भारत को जोड़ने वाले ‘योग पुरुष’ हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक ‘डॉ हेडगेवार’

योग दिवस भारत के अध्यात्म बल का परिचायक है और उस बल का ‘लौकिक स्वरुप’ देखना हो तो डॉ हेडगेवार के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में देखा जा सकता है

Prof. Vivek Misra द्वारा Prof. Vivek Misra
22 June 2025
in भारत, भू-राजनीति, मत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक ‘डॉ हेडगेवार’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक ‘डॉ हेडगेवार’

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इस 21 जून को सम्पूर्ण विश्व ने ‘योग दिवस’ मनाया । योग दिवस ‘वसुंधरा परिवार हमारा’ इस ध्येय वाक्य को चरितार्थ करता है । सरल शब्दों में ‘योग’ का अर्थ है ‘जोड़ना’ या जुड़ना । योग दिवस विश्व को जोड़ता है, भले ही एक ही दिन के लिए ही क्यों न हो, लेकिन ये अद्भुत कार्य होता है । 21 जून को ही भारत माता के एक वीर पुत्र की पुण्यतिथि भी होती है । इस वीर पुत्र ने भारत के परिप्रेक्ष्य में अध्यात्म के ‘योग’ शब्द को लौकिक जगत के ‘संगठित’ या ‘संगठन’ रूप में बदलने के लिए सन 1925 में नागपुर में एक बीजारोपण किया था । भारत माता के उस वीर पुत्र का नाम है, डॉ केशव बलिराम हेडगेवार और संगठन का नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ।

श्रीमद्भगवत गीता के अध्याय 6 में श्लोक 23 में ‘योग’ शब्द का सरल अर्थ मिलता है । जिसका सार यह है कि ‘दुःख से वियोग ही योग है’ । योग के ‘जुड़ना’ अर्थ का अध्यात्मिक मतलब है ‘आत्मा का परमात्मा से जुड़ना’ । जब आत्मा परमात्मा से जुड़ जाती है तो फिर सब ‘योगमय’ हो जाता है अर्थात् ‘सत्-चित्-आनंद’ की अनुभूति होती है । इस अनुभूति के लिए शरीर का स्वस्थ रहना आवश्यक है, इसलिए ऋषियों ने ‘योग’ के साथ ‘आसन’ की रचना की । हर आसन के लिए कोई न कोई मन्त्र और विशेष विधि है । सूर्य नमस्कार तो पूरा ‘पैकेज है । ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास के लिए कहा जाता है कि वे प्रतिदिन 1200 सूर्य नमस्कार करते थे । इसलिए स्थूल और सूक्ष्म शरीर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है ‘योग और आसन’ एक साथ करना । योग दिवस का यही सन्देश है ।

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दूसरी ओर विश्व के बेहतर स्वास्थ्य अर्थात् सुख, समृद्धि, और शांति के लिए सभी देशों का आपस में जुड़ना अर्थात् योगमय होना बहुत आवश्यक है । वर्तमान काल में विश्व के वातावरण पर दृष्टि डालें तो हर जगह लड़ाई चल रही है। हर देश किसी न किसी मुद्दे पर भीड़ रहा है । तीसरे विश्व युद्ध की आहट दुनिया के सिर पर है । यह भी सच है कि दुनिया की अधिकांश जनता की इसमें कोई भूमिका नहीं है, जो कुछ भी चल रहा है उसके पीछे मुट्ठी भर लोग हैं । जानकार लोग कहते हैं कि ये सारा खेल ऑइल एंड गैस इंडस्ट्री, हथियार इंडस्ट्री और फार्मा इंडस्ट्री खेलती रहती है। कुल मिलाकर सामान्य जनता का इससे कोई लेना देना नहीं होता है। दुनिया भर में चलने वाले इस कलह क्लेश के दौर में भारत का ‘योग दिवस’ शांति स्थापना की दिशा में आशा की एक किरण जैसा है।            

अब भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो अंग्रेजों के शासन काल में भारत की क्या स्थिति थी? उस पर विचार करना आवश्यक है । उन दिनों भारत का हर नागरिक स्वतंत्रता चाहता था । लेकिन, सामूहिक प्रयास नहीं हो रहा था । नरम दल अलग चल रहा था तो गरम दल अलग । मुस्लिम लीग अपनी साजिश में लगा हुआ था । ऐसे में डॉ हेडगेवार का यह विचार करना उनकी दूरदृष्टि का संकेत देता है कि आखिर विश्व का सिरमौर रहा देश इस तरह की पराधीन स्थिति में कैसे पहुंचा? यदि देश स्वतंत्र हो भी गया तो आगे फिर से गुलाम नहीं होगा इसकी क्या गारंटी? इस तरह का गहन चिन्तन करके और कई संगठनों और संस्थाओं के साथ काम करके उन्होंने भारत माता के दुखों का वियोग कराने के लिए ‘योग’ अर्थात् ‘संगठन’ को माध्यम बनाया और तब प्रादुर्भाव हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ।

संघ का पहला संचलन जब हुआ था तब उसमें केवल 22 स्वयंसेवक एक साथ कदम से कदम मिलकर एक दिशा में चले थे । यह उस समय के लोगों के लिए आश्चर्यजनक घटना थी, क्योंकि उस समय लोगों के मन में ये बात अच्छे से घर कर गई थी कि हिन्दू एकजुट नहीं हो सकता, एक दिशा में नहीं चल सकता है । हिन्दुओं को तराजू में तोलने का मतलब है मेंढकों को तोलना आदि आदि । लेकिन डॉ हेडगेवार ने सतत प्रयोग करके एक ऐसे संगठन को खड़ा किया जहाँ एक सीटी बजते ही सब उठते हैं, सीटी बजते ही बैठते हैं और सीटी बजते ही चलते और रुकते हैं। मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में हर कार्य सामूहिकता (अर्थात् योगमय भाव) के भाव से होता है। किसी तरह के भेदभाव जैसा विभाजनकारी कारक संघ में नहीं होता। यह अपने आप में अद्भुत है कि 1925 से चला यह संगठन अपनी शताब्दी मनाने जा रहा है । 100 साल के कालखंड में संघ में कोई कलह क्लेश नहीं हुआ, टूटकर कोई अलग संगठन नहीं बना, बल्कि संघ ने अपनी योजनानुसार कई राष्ट्रव्यापी संगठन निर्मित किये जो आज स्वतंत्र रूप से देश सेवा में लगे हुए हैं । जबकि पिछले 100 वर्षों में दुनिया में न जाने कितने संगठन बने और मिट गये या फिर बंट गये । लेकिन डॉ हेडगेवार का संघ बीज से वटवृक्ष बन गया और आज भी समाज के हर वर्ग तक पहुंचने में लगा हुआ है ।

समाज जीवन का शायद ही कोई क्षेत्र हो जहाँ किसी न किसी रूप में संघ की उपस्थिति न हो ।  यह अपने आप में अद्भुत है । वास्तव में यह श्रीमद्भगवत गीता में उद्धृत ‘योग’ अर्थात् ‘जोड़ने’ या ‘जुड़ने’ के भाव की शक्ति के कारण सम्भव हुआ है । डॉ हेडगेवार के संघ में यही भाव काम करता है और इसी भाव से काम किया जाता है कि ‘हम सब एक हैं’ । ‘हम सब एक’ हैं अर्थात् ‘हम सब योगमय हैं’ । इसलिए जहाँ ‘योग’ होगा वहाँ ‘उत्थान’ होगा, वहाँ ईश्वरीय ‘शक्ति’ का सृजन होगा और वहाँ ‘कल्याण’ होगा ।

‘विश्व योग दिवस’ भारत के अध्यात्म बल का परिचायक है और उस बल का ‘लौकिक स्वरुप’ देखना हो तो डॉ हेडगेवार के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में देखा जा सकता है । डॉ हेडगेवार को अगर लौकिक रूप में आधुनिक भारत के ‘योग पुरुष’ (जोड़ने वाले महानायक) कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए ।           

Tags: 100 Years of RSSInternational Yoga DayKeshav Baliram HedgewarRashtriya Swayamsevak SanghrssYogaYoga Dayअंतरराष्ट्रीय योग दिवसअन्तर्राष्ट्रीय योग दिवसआरएसएसकेशव बलिराम हेडगेवारडॉ हेडगेवारयोगयोग दिवसराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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