भारत की आज़ादी सिर्फ कुछ मशहूर नेताओं की वजह से नहीं मिली, बल्कि यह अनगिनत बहादुर लोगों के त्याग और संघर्ष का नतीजा है। इनमें से कई वीर और वीरांगनाएँ ऐसी थीं, जिनके बारे में आज भी बहुत से लोग नहीं जानते।
महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और भगत सिंह जैसे नेता आजादी की लड़ाई में बड़ा नाम बने, लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में जो स्थानीय नेता ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़े, उनका योगदान भी उतना ही अहम है और उन्हें भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए।
दक्षिण भारत में भी कई बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने बिना किसी डर के ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी। उन्होंने अपने आराम, करियर और यहां तक कि जान की भी परवाह नहीं की और देश के लिए संघर्ष किया। उनका यह बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक ज़रूरी हिस्सा है, जिसे हमें गर्व के साथ याद रखना चाहिए।
विचारक और राजनीतिक नेता
पिंगली वेंकैया
पिंगली वेंकैया को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के निर्माता के रूप में जाना जाता है। वे महात्मा गांधी के समर्थक थे और उन्हें भूविज्ञान, कृषि और शिक्षा जैसे क्षेत्रों का अच्छा ज्ञान था। वेंकैया ने सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए एक झंडा तैयार किया था, जिसे बाद में भारत का तिरंगा बना दिया गया। यह झंडा आज देश की एकता और पहचान का प्रतीक है।
टंगुटुरी प्रकाशम
टंगुटुरी प्रकाशम, जिन्हें “आंध्र केसरी” के नाम से जाना जाता है, एक निडर स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने वकालत में सफलता हासिल की थी, लेकिन देश के लिए उन्होंने अपनी कानूनी प्रैक्टिस छोड़ दी। 1928 में जब मद्रास में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध हुआ, तो उन्होंने निहत्थे होकर ब्रिटिश बंदूकधारियों का सामना किया। आज़ादी के बाद वे पहले मद्रास प्रेसीडेंसी और फिर आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने।
योद्धा जिन्होंने ब्रिटिशों को चुनौती दी
वीरपांडिया कट्टाबोम्मन
तमिलनाडु के पंचालंकुरिची के नेता वीरपांडिया कट्टाबोम्मन ने 1857 की क्रांति से भी पहले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कंपनी को कर देने से मना कर दिया और लड़ाई लड़ी। 1799 में उन्हें पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई। उनकी वीरता ने तमिलनाडु के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को आगे आने के लिए प्रेरित किया।
पुली थेवर
पुली थेवर दक्षिण भारत के पहले नेताओं में से थे जिन्होंने अंग्रेजों का विरोध शुरू किया। उन्होंने ब्रिटिश समर्थित अरकट के नवाब के खिलाफ संघर्ष किया। 1750 और 1760 के दशक में नेलकटुमसेवल क्षेत्र से उन्होंने कई युद्ध लड़े। उन्हें दक्षिण भारत में संगठित विरोध की शुरुआत करने वाला माना जाता है।
संगोली रायण्णा
कर्नाटक में 15 अगस्त 1798 को जन्मे संगोली रायण्णा किट्टूर राज्य की सेना के प्रमुख थे। वे रानी चेनम्मा के भरोसेमंद सेनापति थे। जब रानी को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया, तब भी रायण्णा ने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा। आखिरकार वे भी पकड़े गए और 1831 में एक बरगद के पेड़ पर उन्हें फांसी दे दी गई। वे आज भी कर्नाटक में स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रतीक माने जाते हैं।
शासक जिन्होंने हथियार उठाए
मरुधु पांडियार भाई
तमिलनाडु के शिवगंगई राज्य के दो शासक- पेरिया मरुधु और चिन्ना मरुधु ऐसे पहले राजा थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुलकर स्वतंत्रता की घोषणा की थी। 10 जून 1801 को, तिरुचिरापल्ली के थिरुवनैकोइल मंदिर से उन्होंने देशवासियों से ब्रिटिशों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अपील की। यह कदम 1857 की सिपाही क्रांति से पूरे 56 साल पहले उठाया गया था।
किट्टूर चेनम्मा
कर्नाटक की रानी चेनम्मा ने 1820 के दशक में ही ब्रिटिशों की “डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स” नीति के खिलाफ हथियार उठा लिए थे, जो रानी लक्ष्मीबाई के विद्रोह से कई साल पहले की बात है। उन्होंने बहादुरी से अंग्रेजों से युद्ध किया, लेकिन बाद में उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई। वे भारत की पहली महिला योद्धाओं में मानी जाती हैं, जिन्होंने अंग्रेजी शासन को चुनौती दी थी।
स्वतंत्रता की आवाज़
सुबरमण्यम भारती
“महाकवि भारती” के नाम से पहचाने जाने वाले सुबरमण्यम भारती सिर्फ एक कवि नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी सोच वाले व्यक्ति भी थे। उनकी दमदार तमिल कविताएँ लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाती थीं। उन्होंने अपने लेखों और पत्रकारिता के ज़रिए न केवल अंग्रेजों के अत्याचारों को चुनौती दी, बल्कि समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ भी आवाज उठाई। वे महिलाओं की स्वतंत्रता, देश की एकता और आत्मनिर्भरता के बड़े समर्थक थे। अंग्रेजों के अत्याचारों ने उनकी तबीयत बिगाड़ दी और 1920 में उनका निधन हो गया। लेकिन उनके विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।
दक्षिण भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की अहम भूमिका
भारत की आज़ादी की लड़ाई केवल किसी एक क्षेत्र की नहीं थी, बल्कि यह पूरे देश की भागीदारी से लड़ा गया एक व्यापक आंदोलन था। गाँवों, कस्बों और रियासतों तक फैले इस संघर्ष में दक्षिण भारत के कई नायकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चाहे वे ध्वज बनाने वाले पिंगली वेंकैया हों, राजा-महाराजा जैसे मरुधु पांडियार या योद्धा और कवि जैसे चेनम्मा और भारती, सभी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ डटकर मुकाबला किया।
इनकी कहानियाँ हमें बताती हैं कि भारत की आज़ादी कुछ गिने-चुने लोगों की नहीं, बल्कि लाखों-करोड़ों भारतीयों की हिम्मत और कुर्बानी का नतीजा है। इसलिए इन कम पहचाने गए नायकों को याद करना और सम्मान देना बहुत ज़रूरी है, ताकि हम आज़ादी की असली कीमत और उसकी भावना को समझ सकें और उसे जिंदा रख सकें।