इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा, जो ‘कैश कांड’ में जांच का सामना कर रहे हैं, उन्हे सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर की थी कि उन्हें पद से हटाने की सिफारिश और उनके खिलाफ बनाई गई इन-हाउस जांच समिति को अवैध घोषित किया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि जांच समिति का गठन नियमों के अनुसार हुआ है और जस्टिस वर्मा की याचिका पर विचार करने की कोई वजह नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उस समय के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा गया पत्र पूरी तरह से संविधान के अनुसार था, और उसमें कोई गलत बात नहीं थी।
अब इस फैसले के बाद जस्टिस वर्मा के सामने केवल दो विकल्प बचे हैं- या तो वह खुद इस्तीफा दें, या फिर संसद में चलने वाले महाभियोग की प्रक्रिया का सामना करें।
खुद इस्तीफा देना फायदे का सौदा
अगर जस्टिस वर्मा खुद इस्तीफा देते हैं, तो उन्हें महाभियोग की प्रक्रिया का सामना नहीं करना पड़ेगा और रिटायर होने के बाद उन्हें पेंशन और अन्य फायदे मिलते रहेंगे। लेकिन अगर उन्हें महाभियोग के जरिए हटाया गया, तो ये सभी सुविधाएं बंद हो जाएंगी। हालांकि, जस्टिस वर्मा पहले ही साफ कर चुके हैं कि वह इस्तीफा नहीं देंगे और उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को झूठा बताया है।
कानून के जानकारों के मुताबिक, अगर किसी जज पर गंभीर आरोप लगते हैं, तो वह संसद में अपनी बात रखते हुए मौखिक रूप से इस्तीफा दे सकते हैं, और उस स्थिति में उनके बोले गए शब्दों को ही इस्तीफा मान लिया जाता है।
संसद में महाभियोग का नोटिस
जस्टिस वर्मा के खिलाफ संसद की लोकसभा और राज्यसभा, दोनों में महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया जा चुका है। मौजूदा मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में 152 सांसदों और राज्यसभा में 54 सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। हालांकि, अभी तक किसी भी सदन ने इसे औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है।
21 जुलाई को राज्यसभा के उस समय के सभापति जगदीप धनखड़ ने बताया था कि उन्हें यह प्रस्ताव मिला है और इस पर जरूरी संख्या से ज्यादा सांसदों के सिग्नेचर हैं। लेकिन उसी दिन शाम को उन्होंने अपनी तबीयत का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया।
अब नए उपराष्ट्रपति का चुनाव 9 सितंबर को होना है। ऐसे में देखना होगा कि संसद का कौन सा सदन पहले इस महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी देता है।