बिहार की राजनीति में 2025 का विधानसभा चुनाव एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस चुनाव को पूरी मजबूती और संगठनात्मक ताकत के साथ लड़ने जा रहे हैं। हालिया अमित शाह की बैठक ने यह संदेश साफ कर दिया कि भाजपा अब “मिशन बिहार 2025” को युद्ध स्तर पर तैयार कर रही है।
उम्मीदवार चयन में पारदर्शिता – जीत की पहली सीढ़ी
भाजपा ने इस बार उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और संगठन-आधारित बनाया है। जिला स्तर पर बैठकों और स्थानीय कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेकर उम्मीदवार तय किए जाएंगे।
यह रणनीति दो बड़े फायदे देगी:
स्थानीय असंतोष को खत्म करना – संगठन को यह भरोसा रहेगा कि उनकी राय को महत्व मिला है।
मजबूत उम्मीदवार – केवल लोकप्रिय और जीतने वाले चेहरे मैदान में होंगे, जिससे सीट जीतने की संभावना बढ़ेगी।
प्रभारी प्रणाली – बूथ स्तर पर नियंत्रण
भाजपा ने इस बार प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में एक प्रभारी नियुक्त करने का फैसला लिया है। प्रभारी संगठन को सक्रिय रखने, बूथ प्रबंधन पर ध्यान देने और प्रचार अभियान को समन्वित करने का काम करेंगे।
बिहार की 50 से अधिक सीटें ऐसी हैं जो बहुत छोटे मार्जिन से तय होती हैं। प्रभारी प्रणाली इन सीटों पर भाजपा के लिए निर्णायक बढ़त ला सकती है।
एनडीए का संयुक्त नेतृत्व – स्थिरता का संदेश
भाजपा ने दो टूक कह दिया है कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। यह बयान विपक्ष के नैरेटिव को पूरी तरह ध्वस्त करता है कि एनडीए में नेतृत्व को लेकर मतभेद हैं। नीतीश कुमार का प्रशासनिक अनुभव और मोदी सरकार का विकास एजेंडा मिलकर मतदाताओं को स्थिरता का भरोसा देते हैं। गठबंधन का यह स्पष्ट रुख महागठबंधन में असमंजस और भ्रम फैलाने का काम करेगा।
महागठबंधन की कमजोर कड़ी
महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वामदल) अभी तक सीट बंटवारे पर एकजुट नहीं दिख रहा है। राजद अपने कोर वोट बैंक को बचाने में जुटा है, जबकि कांग्रेस और वामदल बड़ी हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं। भाजपा को यह अवसर मिलेगा कि वह विपक्ष को “अस्थिर और अवसरवादी गठबंधन” के रूप में पेश करे।
चुनाव का समीकरण भाजपा के पक्ष में
2020 के चुनाव में भाजपा ने अकेले 74 सीटें जीती थीं, और जदयू के साथ मिलकर एनडीए को बहुमत मिला था। 2025 में भाजपा का लक्ष्य 90 से अधिक सीटें जीतने का है।
हो भी क्यों नहीं, मोदी सरकार की योजनाओं (PM Awas Yojana, Ujjwala, Har Ghar Nal, PM Garib Kalyan Anna Yojana) ने ग्रामीण और गरीब मतदाताओं में भरोसा पैदा किया है। कानून-व्यवस्था और सड़क-बिजली-पानी के मुद्दे पर नीतीश सरकार का रिकॉर्ड विपक्ष की तुलना में बेहतर है।
नैरेटिव सेट करना – जीत की कुंजी
भाजपा का फोकस “डबल इंजन सरकार” और विकास के मुद्दों पर है। चुनाव प्रचार में यह दिखाया जाएगा कि बिना केंद्र-राज्य सहयोग बिहार का विकास धीमा हो जाएगा। महागठबंधन को जंगलराज, भ्रष्टाचार और अस्थिरता के पुराने रिकॉर्ड से जोड़कर भाजपा अपने मतदाताओं को संगठित करेगी।
बिहार चुनाव में राहुल गांधी की सभा में पीएम मोदी को उनकी मां के नाम की गाली दी गई थी। भाजपा इसे भी चुनावी मुद्दा बनाकर मैदान में उतरेगी। यह मुद्दा भाजपा को जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। महिला मतदाताओं का झुकाव तो भाजपा की ओर होना ही है।
2025 में NDA की राह आसान
अमित शाह की बैठक के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा इस चुनाव को संगठन, प्रबंधन और जनसमर्थन की ताकत पर लड़ेगी।
उम्मीदवार चयन में पारदर्शिता
प्रभारी प्रणाली द्वारा सूक्ष्म प्रबंधन
नीतीश कुमार के नेतृत्व में स्थिरता का संदेश
ये तीनों फैक्टर भाजपा-एनडीए को 2025 में और मजबूत बना सकते हैं। यदि यह रणनीति पूरी तरह लागू होती है, तो भाजपा के लिए 2025 का बिहार चुनाव सिर्फ जीत नहीं बल्कि इतिहास रचने का मौका बन सकता है।