बिहार चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया है जो न केवल मतदाता सूची को और अधिक समावेशी बनाएगा, बल्कि विपक्ष के उन आरोपों को भी खारिज करता है कि गरीबों और हाशिए के वर्गों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। अदालत ने सोमवार को स्पष्ट आदेश दिया कि आधार कार्ड को अब ‘बारहवें दस्तावेज़’ के रूप में मान्यता दी जाए, ताकि लोग इसे पहचान प्रमाण के तौर पर पेश कर सकें। यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” के विज़न के अनुरूप है, जिसमें लोकतंत्र को अधिक सहभागी और पारदर्शी बनाने पर जोर है।
NDA के सुधारों को मिला न्यायिक समर्थन
पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने चुनाव प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। डिजिटल वोटर आईडी, ई-श्रमिक कार्ड, और मतदाता सूची के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन जैसे सुधार इसी दिशा में थे। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इन प्रयासों को और मजबूती देता है, क्योंकि अब आधार—जो देश का सबसे व्यापक पहचान दस्तावेज है—को वोटर सूची में नाम जोड़ने का आधार बनाया जा सकेगा।
गरीबों और प्रवासियों को राहत
यह फैसला खासतौर पर बिहार जैसे राज्य में बड़ा असर डालेगा, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर रहते हैं। पासपोर्ट या जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज़ उनके पास नहीं होते, लेकिन लगभग हर व्यक्ति के पास आधार कार्ड है। अब वे आसानी से वोटर लिस्ट में अपना नाम जोड़ सकेंगे।
बीजेपी नेताओं का मानना है कि यह फैसला गरीब, दलित और पिछड़े तबकों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जोड़ने वाला है। यही वह वर्ग है, जिसने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी को ऐतिहासिक बहुमत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई।
राजनीतिक रूप से विपक्ष की घेराबंदी
इस फैसले से आरजेडी के उस नैरेटिव को झटका लगा है जिसमें वह यह आरोप लगाती रही कि एनडीए गरीबों को वोट से वंचित करना चाहती है। दरअसल, आरजेडी ने ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया था, लेकिन फैसला आने के बाद एनडीए इसे “नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों और ईसीआई की पारदर्शी नीतियों की जीत” के रूप में प्रचारित कर सकती है।
नागरिकता पर सुप्रीम कोर्ट का संतुलन
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण बात यह भी स्पष्ट कर दी कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इसका मतलब है कि चुनाव आयोग को पूरी छानबीन का अधिकार है। यह कदम विपक्ष के उस डर को भी खारिज करता है कि इससे फर्जी मतदाता जुड़ सकते हैं। एनडीए इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और चुनावी शुचिता के संतुलन के रूप में पेश कर सकती है।
2025 बिहार चुनाव पर असर
यह आदेश आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ा रोल निभा सकता है। मतदाता सूची में तेजी से नाम जुड़ेंगे, जिससे मतदान प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। एनडीए इसे “समावेशी लोकतंत्र” के रूप में पेश कर सकती है और यह बता सकती है कि उसने गरीब और आम नागरिक के वोट देने के अधिकार को सुरक्षित किया।
यह फैसला विपक्ष की उस राजनीति को कमजोर कर सकता है जिसमें वह मतदाता सूची से बाहर होने के मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहा था।
लोकतंत्र को सशक्त करने का कदम
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश स्पष्ट संदेश देता है कि भारत में लोकतंत्र को सीमित नहीं, बल्कि विस्तृत करने की आवश्यकता है। बीजेपी और एनडीए इस फैसले को अपने सशक्त लोकतंत्र अभियान का हिस्सा बना सकती है और मतदाताओं को यह विश्वास दिला सकती है कि उनका हर वोट सुरक्षित है और गिना जाएगा।