‘जंगलराज नहीं चाहिए’: बिहार की जीविका दीदियों ने किया साफ, नीतीश पर भरोसा, तेजस्वी के वादे पर नहीं यकीन
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‘जंगलराज नहीं चाहिए’: बिहार की जीविका दीदियों ने किया साफ, नीतीश पर भरोसा, तेजस्वी के वादे पर नहीं यकीन

तेजस्वी यादव का ऑफर सुनने में तो आकर्षक है, लेकिन जीविका समूह की महिलाओं ने जिस आत्मविश्वास से इसे ठुकराया है, वह केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं, यह उस महिला चेतना का प्रतीक है, जो अब लालच नहीं, स्थिरता और सुरक्षा चाहती है।

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
23 October 2025
in चर्चित, बिहार डायरी, राजनीति, समीक्षा
‘जंगलराज नहीं चाहिए’: बिहार की जीविका दीदियों ने किया साफ, नीतीश पर भरोसा, तेजस्वी के वादे पर नहीं यकीन

बिहार की महिलाओं का यह सामूहिक निर्णय, बिहार की राजनीति के भविष्य का संकेत है।

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बिहार की राजनीति एक बार फिर चुनावी तापमान पर है। हर पार्टी जनता को रिझाने की कोशिश में है, लेकिन इस बार जो वर्ग सबसे निर्णायक बन गया है, वह है जीविका दीदियों का नेटवर्क, यानी वो लाखों महिलाएं जो बिहार के सशक्तिकरण अभियान की असली रीढ़ बन चुकी हैं। तेजस्वी यादव ने इन्हें लुभाने के लिए बड़ा ऐलान किया था। हर जीविका दीदी को 30,000 रुपए वेतन और सरकारी कर्मचारी का दर्जा। लेकिन ज़मीन पर माहौल कुछ और ही कहता है। जीविका दीदियां इसके लिए तैयार नहीं हैं।

महिलाओं का जवाब स्पष्ट: हमें विकास चाहिए, वादे नहीं

तेजस्वी यादव का ऑफर सुनने में तो आकर्षक है, लेकिन जीविका समूह की महिलाओं ने जिस आत्मविश्वास से इसे ठुकराया है, वह केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं, यह उस महिला चेतना का प्रतीक है, जो अब लालच नहीं, स्थिरता और सुरक्षा चाहती है।

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श्राप से वरदान तक: बिहार-झारखंड की वह अनोखी भाई दूज, जहां बहनें पहले भाई को मरने का श्राप देती हैं, फिर जीभ में कांटा चुभाकर मांगती हैं भाई की लंबी उम्र

बिहार में महागठबंधन नहीं, महालठबंधन, सत्ता की चाह में आपस में ही भिड़ रहे नेता

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मंजू देवी जैसी महिलाएं खुलकर कह रही हैं, हमें एनडीए पर भरोसा है, तेजस्वी पर नहीं। लालू के समय बस वादे हुए थे, मिला क्या तो सिर्फ जंगलराज। यह बयान सिर्फ असंतोष नहीं, बल्कि बीते दौर की यादों का दर्द है, जहां महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करती थीं, जहां शासन ‘जनता’ का नहीं, ‘जंगल’ का लगता था।

जीविका योजना: नीतीश का ‘साइलेंट रिवोल्यूशन’

जिस योजना को आज महिलाएं ‘आत्मनिर्भरता का प्रतीक’ कह रही हैं, वह नीतीश कुमार की दूरदृष्टि का ही परिणाम है। 2006 में शुरू हुई ‘जीविका योजना’ का उद्देश्य था, महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के ज़रिए आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में लाना। आज यही योजना 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी है।

रामवती देवी जैसी दीदियां कहती हैं कि सीएम नीतीश कुमार ने हमारे लिए बहुत काम किया है। राशन से लेकर तेल और रोजगार की सुविधा तक सबकुछ मिला है। यह केवल एक सरकारी योजना का लाभ नहीं, बल्कि महिलाओं के भीतर विश्वास का निर्माण है कि सरकार उनकी हर ज़रूरत को समझती है।

तेजस्वी का ‘वादा’, लेकिन भरोसे की कमी

तेजस्वी यादव ने भले ही 30,000 रुपये सैलरी और सरकारी दर्जे की बात कही हो, लेकिन महिलाओं का विश्वास अब किसी नए वादे से नहीं डगमगा सकता। निर्मला देवी जैसी महिलाएं साफ कहती हैं कि एनडीए में सुरक्षा है, तेजस्वी पर भरोसा नहीं।

यह ‘भरोसा’ शब्द ही असल राजनीति का दिल है। बिहार की महिलाएं अब यह भलीभांति समझ चुकी हैं कि जो सत्ता सुरक्षा देती है, वही टिकाऊ विकास लाती है। जंगलराज की यादें अभी भी उनके दिलों में ताज़ा हैं और वे उस अंधकार में फिर से लौटना नहीं चाहतीं।

मोदी-नीतीश की जोड़ी और महिला सशक्तिकरण का आधार

जीविका समूह की बिंदु देवी, उषा देवी, अनीता देवी समेत अन्य सबके बयान एक ही दिशा में जाते हैं। मोदी और नीतीश ने पैसा दिया, आत्मसम्मान दिया, हम उन्हीं को वोट देंगे।

दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी की योजनाओं उज्ज्वला, जनधन, स्वच्छ भारत, आवास योजना ने महिलाओं को सीधे सशक्त किया। वहीं, नीतीश कुमार ने इन योजनाओं को स्थानीय धरातल पर लागू करके महिला विकास का मॉडल तैयार किया। आज यही मॉडल बिहार में भाजपा-जेडीयू गठबंधन की राजनीतिक ताकत का स्तंभ है।

बिहार की जीविका दीदियां अब सिर्फ सहायता समूह की सदस्य नहीं रहीं, वे अपने गांवों की निर्णायक आवाज़ें हैं। उनकी सोच अब ‘कौन क्या देगा’ से आगे बढ़ चुकी है। वे यह देख रही हैं कि कौन क्या कर चुका है। यही कारण है कि उन्हें 30,000 रुपये की सैलरी का वादा प्रभावित नहीं करता, लेकिन नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड भरोसा दिलाता है। इन महिलाओं के लिए ‘सरकार’ अब सिर्फ एक सत्ता नहीं, बल्कि एक संरक्षक है, जो बिजली, पानी, रोजगार और सम्मान दे रही है।

‘जंगलराज नहीं चाहिए’, नारा नहीं, चेतावनी है

जब मंजू देवी या आभा देवी कहती हैं कि लालू के समय सिर्फ वादे हुए, मिला जंगलराज। तो यह याद दिलाता है कि बिहार की जनता भूलती नहीं है। जिन सालों में भय, अपहरण और अराजकता सामान्य बात थी, वही महिलाएं आज सुरक्षा और सम्मान की राजनीति को प्राथमिकता दे रही हैं।
तेजस्वी यादव का प्रस्ताव इसलिए नहीं ठुकराया गया कि उसमें पैसा कम है, बल्कि इसलिए कि उसमें विश्वास की गारंटी नहीं है।

बिहार की महिलाओं का यह सामूहिक निर्णय, बिहार की राजनीति के भविष्य का संकेत है। वे अब चुनावी मंचों पर किए गए वादों से आगे बढ़कर शासन की निरंतरता को समझने लगी हैं। वे जानती हैं कि जब सरकार स्थिर होती है, तभी योजनाएं चलती हैं, तब ही गांवों में स्कूल बनते हैं, सड़कों पर रोशनी जलती है और समूहों को फंड मिलते हैं। यही कारण है कि वे कह रही हैं हमें स्थिरता चाहिए, न कि प्रयोग।

विश्वास बनाम वादों की राजनीति

तेजस्वी यादव ने भले ही जीविका दीदियों के साथ आर्थिक प्रलोभन का कार्ड खेला हो, लेकिन अब बिहार की जीविका दीदियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब राजनीति केवल वादों से नहीं, विश्वास और विकास के अनुभव से जीती जाएगी। नीतीश कुमार के शासन ने उन्हें सुरक्षा दी, आत्मनिर्भरता दी और सबसे महत्वपूर्ण सम्मान दिया। यही तीन बातें हैं जो किसी भी समाज की नींव होती हैं। अब उनके साथ महिलाएं नहीं हैं।

Tags: Assembly ElectionsBiharJeevika DidiNitish KumarTejashwi Yadavwomen's groupsजीविका दीदीतेजस्वी यादवनीतीश कुमारबिहारमहिला समूहविधानसभा चुनाव
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गुलामी से कफाला तक: सऊदी अरब के ‘प्रायोजक तंत्र’ का अंत और इस्लामी व्यवस्था के भीतर बदलते समय का संकेत
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गुलामी से कफाला तक: सऊदी अरब के ‘प्रायोजक तंत्र’ का अंत और इस्लामी व्यवस्था के भीतर बदलते समय का संकेत

22 October 2025

जून 2025 में सऊदी अरब ने आधिकारिक रूप से अपने विवादित कफाला प्रणाली को समाप्त करने की घोषणा की। यह एक ऐसा कदम था, जिसे...

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बिहार की राजनीति इस वक्त फिर उसी पुराने मोड़ पर लौटती दिखाई दे रही है, जहां गठबंधन एकता का ढोल तो पीट रहा है, लेकिन...

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