ओम शांति नहीं, अब ओम क्रांति का समय: जानें गिरिराज सिंह ने क्यों दिया ऐसा बयान
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ओम शांति नहीं, अब ओम क्रांति का समय: जानें गिरिराज सिंह ने क्यों दिया ऐसा बयान

गिरिराज सिंह का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देशभर में मतदाता सूची पुनरीक्षण, जातीय जनगणना और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे संवेदनशील मुद्दे राजनीतिक चर्चा में हैं। इसने बिहार राजनीति में बहस को और गर्म कर दिया है।

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
1 October 2025
in चर्चित, भारत, मत, राजनीति, समीक्षा
ओम शांति नहीं, अब ओम क्रांति का समय: जानें गिरिराज सिंह ने क्यों दिया ऐसा बयान

इस बयान ने साधु-संतों और धार्मिक समुदायों के बीच भी चर्चा को बढ़ावा दिया।

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केंद्रीय मंत्री और भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक हलचल मचा दी है। अपने जनसभा संबोधन में उन्होंने साधु-संतों से ‘ओम शांति’ की जगह ‘ओम क्रांति’ का नारा देने की अपील की। उनका कहना था कि अब समय आ गया है कि अधर्म का नाश किया जाए और धर्म की रक्षा हो, जैसे भगवान राम और लक्ष्मण ने असुरों का नाश कर धर्म की स्थापना की थी।

गिरिराज सिंह का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देशभर में मतदाता सूची पुनरीक्षण, जातीय जनगणना और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे संवेदनशील मुद्दे राजनीतिक चर्चा में हैं। इसने बिहार राजनीति में बहस को और गर्म कर दिया है। विपक्ष इसे धर्म के नाम पर उकसाने वाला और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ मान रहा है, वहीं उनके समर्थक इसे धर्म और राष्ट्र की रक्षा का साहसिक स्वर मान रहे हैं।

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प्रधानमंत्री मोदी को बताया ‘अधर्म का विनाशक’

बेगूसराय में आयोजित जनसभा में गिरिराज सिंह ने कहा, “अब केवल ‘ओम शांति’ से काम नहीं चलेगा। अब ‘ओम क्रांति’ की आवश्यकता है। समाज को सही दिशा में ले जाने के लिए साधु-संतों को आगे आना होगा। धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश हमारा दायित्व है।”

उन्होंने अपने संबोधन में भारत माता, भगवान राम, महादेव और कृष्ण के जयकारे लगाए और कहा कि समाज को इन महान आदर्शों की ओर लौटना चाहिए। गिरिराज सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अधर्म का विनाश करने वाला बताया और कहा कि मोदी ने समाज की सुरक्षा और बहनों के सम्मान की रक्षा की है। उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों ने सिंदूर मिटाने की कोशिश की, उनका नाश सुनिश्चित किया गया।

इस भाषण में गिरिराज सिंह ने धर्म और देशभक्ति को जोड़कर जनता को सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी की ओर बुलाया। उनके समर्थक इसे राष्ट्रीय जागरूकता और सामाजिक सुधार के रूप में देख रहे हैं, जबकि विपक्ष इसे ध्रुवीकरण की रणनीति मान रहा है।

विवादित बयानों का पुराना इतिहास

गिरिराज सिंह का यह कोई पहला विवादित बयान नहीं है। बीते वर्षों में उनके कई बयानों ने सुर्खियां बटोरी हैं:

राम मंदिर निर्माण: उन्होंने लगातार राम मंदिर निर्माण के पक्ष में बयान दिए और इसे धर्म और राष्ट्रीय पहचान का मुद्दा बताया।

जनसंख्या नियंत्रण: उन्होंने जनसंख्या वृद्धि को सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता के दृष्टिकोण से जोड़कर चर्चा में रखा।

पाकिस्तान भेजने की बातें: ऐसे बयान विवादित और ध्रुवीकरण वाले माने गए।

जहां उनके समर्थक इसे धर्म और राष्ट्र की रक्षा का साहसिक स्वर मानते हैं, वहीं विपक्ष इसे राजनीतिक लाभ के लिए सामाजिक और धार्मिक भावनाओं को उकसाने वाली राजनीति करार देता है।

विशेष रूप से यह बयान ऐसे समय में आया है, जब भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में मतदाता सूची पुनरीक्षण और जातीय जनगणना की प्रक्रिया चल रही है। इस संदर्भ में गिरिराज सिंह के शब्द संवेदनशील हैं और व्यापक राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव डाल सकते हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, गिरिराज सिंह का बयान बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच आया है। यह बयान राज्य की राजनीतिक धारा को प्रभावित कर सकता है और जनता के मन में धर्म और राष्ट्र पर आधारित सोच को मजबूत कर सकता है।

विश्लेषकों का कहना है कि यह बयान विशेषकर ग्रामीण और धार्मिक मतदाताओं में राजनीतिक संदेश पहुंचाने का प्रयास है। गिरिराज सिंह ने अपने संबोधन में धार्मिक प्रतीकों और आदर्शों का उपयोग करके जनता के बीच सामाजिक और नैतिक जागरूकता पैदा करने की कोशिश की है।

हालांकि विपक्ष इसे धर्म और जाति के आधार पर मतदाताओं को विभाजित करने की रणनीति मान रहा है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी है कि आगामी चुनावों में ऐसे बयान वोट बैंक रणनीति और ध्रुवीकरण की राजनीति में किस तरह भूमिका निभा सकते हैं।

सामाजिक और धार्मिक संदर्भ

सामाजिक वैज्ञानिकों और धर्म विशेषज्ञों ने कहा कि इस प्रकार के बयान सामाजिक और धार्मिक संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकते हैं। गिरिराज सिंह ने धर्म और नैतिकता को जोड़कर अपने संदेश को मजबूत बनाया है। उन्होंने यह संकेत दिया कि समाज में अधर्म का नाश और धर्म की रक्षा जनता का नैतिक और सामाजिक दायित्व है।

इस बयान ने साधु-संतों और धार्मिक समुदायों के बीच भी चर्चा को बढ़ावा दिया। कुछ धार्मिक नेताओं ने इसे धार्मिक और सामाजिक चेतना का स्वर माना, जबकि अन्य इसे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धर्म का उपयोग कह रहे हैं।

गिरिराज सिंह का बयान न केवल उनके व्यक्तिगत राजनीतिक दृष्टिकोण को उजागर करता है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में धर्म और सत्ता के जटिल संबंध को भी सामने लाता है। यह दिखाता है कि राजनीतिक और धार्मिक प्रतीक किस तरह जनता के मनोबल और चुनावी माहौल को प्रभावित कर सकते हैं।

जहां कुछ लोग इसे धर्म और नैतिकता की रक्षा का साहसिक स्वर मानते हैं, वहीं कई इसे सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण की रणनीति मान रहे हैं। बिहार और पूरे देश की राजनीति में इस बयान का दीर्घकालिक प्रभाव तब स्पष्ट होगा जब मतदाता, राजनीतिक दल और समाज इस पर प्रतिक्रिया देंगे।

इस घटना ने बिहार की राजनीति में ध्रुवीकरण, सामाजिक चेतना और लोकतांत्रिक मर्यादाओं पर बहस को फिर से जीवंत कर दिया है। आने वाले महीनों में इसके प्रभाव का आकलन चुनावी रणनीतियों और राजनीतिक परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में किया जाएगा। गिरिराज सिंह का यह बयान साफ तौर पर यह संकेत देता है कि धर्म, राजनीति और सामाजिक जिम्मेदारी भारतीय राजनीति में अब और अधिक गहराई से जुड़ रहे हैं। जनता, राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इस संदेश की व्यापक व्याख्या करने में लगे हुए हैं, और आने वाले समय में इसका असर न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीतिक दिशा पर पड़ेगा।

Tags: BiharBJPGiriraj SinghPoliticsReligion.revolution not peacesocial responsibilityगिरिराज सिंहधर्मबिहारभाजपाराजनीतिशांति नहीं क्रांतिसामाजिक जिम्मेवारी
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