बिहार एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव-चुनाव का साक्षी बनने जा रहा है। लेकिन, इस बार की गूंज सिर्फ पटना या गया तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्र के हर कोने तक सुनाई दे रही है, क्योंकि मैदान में उतरने जा रहे हैं भारत के सबसे लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव के रण में पीएम मोदी की 12 विराट रैलियों की योजना तैयार की है, जो न सिर्फ वोट की अपील होंगी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के उस संकल्प का संदेश भी देंगी, जो मोदी युग की पहचान बन चुका है।
यह चुनाव महज सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह बिहार के आत्मसम्मान, विकास और राष्ट्रनिष्ठ राजनीति की परीक्षा है। बिहार, जिसने भारतीय सभ्यता को बौद्ध ज्ञान दिया और स्वतंत्रता संग्राम को जनशक्ति, अब पीएम मोदी के नेतृत्व में उस नवभारत की दिशा तय करने जा रहा है, जो विकास के साथ विरासत की राह पर चल रहा है।
पीएम मोदी का अभियान: जनआस्था की यात्रा
बीजेपी के रणनीतिकारों ने पीएम मोदी की रैलियों को उस ढंग से तैयार किया है जो पूरे राज्य में राष्ट्रीय ऊर्जा भर दे। पटना, गया, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, चंपारण, सहरसा और अररिया ये सिर्फ जिले नहीं, बल्कि बिहार की आत्मा के हिस्से हैं। मोदी की हर सभा में न केवल चुनावी जोश होगा, बल्कि एक दृष्टि होगी गरीबी से मुक्त, शिक्षा से समृद्ध और आत्मनिर्भर बिहार की दृष्टि।
23 अक्टूबर से 3 नवंबर तक चलने वाले इस प्रचार अभियान का समय भी प्रतीकात्मक है। दिवाली के बाद जनता में नई आशा का उदय। यह वही बिहार है, जिसने 2014, 2019 और उसके बाद भी मोदी के सबका साथ, सबका विकास के मंत्र को जनादेश के रूप में स्वीकार किया है।
मोदी की प्रत्येक रैली का असर लगभग 15-20 विधानसभा सीटों तक माना जा रहा है। इसका कारण केवल उनके शब्द नहीं हैं, बल्कि वह भरोसा है जो उनके नेतृत्व ने देश के जन-मन में पैदा किया है। जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि बिहार भारत की आत्मा है, तो यह सिर्फ चुनावी नारा नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक सत्य की पुनः पुष्टि है कि जिस धरती ने जनसंघ के विचार को पोषित किया, वही आज भारत के विकास मॉडल की प्रयोगशाला बन रही है।
राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ और नीतीश कुमार जैसे वरिष्ठ नेता भी इस जनआंदोलन का हिस्सा बनेंगे। यह एक संगठित संदेश है कि एनडीए का अभियान केवल राजनीतिक गठजोड़ नहीं, बल्कि राष्ट्रवाद, विकास और स्थिरता की त्रिवेणी का संगम है।
महागठबंधन बनाम महायोजना
विपक्षी महागठबंधन अभी भी जातीय गणित में उलझा हुआ है, जबकि मोदी का पूरा अभियान सामाजिक समरसता और विकास की राजनीति पर टिका हुआ है। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी जैसी नई चुनौतियां राजनीतिक समीकरणों में हलचल जरूर पैदा कर सकती हैं, लेकिन बिहार का मतदाता अब बदलाव नहीं, भरोसे की तलाश में है और यह भरोसा पीएम मोदी के नेतृत्व में बार-बार साबित हुआ है।
बिहार का नवजागरण
मोदी सरकार के कार्यकाल में बिहार को नई पहचान मिली है। पटना एयरपोर्ट का नया टर्मिनल हो या पूर्णिया का एयरपोर्ट प्रोजेक्ट, गंगा एक्सप्रेसवे से लेकर ग्रामीण सड़कों के जाल तक, हर गांव तक बिजली, गैस, पानी और डिजिटल कनेक्टिविटी इन सबने बिहार को पिछड़ेपन से प्रगति की ओर बढ़ाया है।
अब यह चुनाव उस यात्रा का अगला पड़ाव है, जहां बिहार सिर्फ रोजगार की तलाश में बाहर जाने वाला राज्य नहीं रहेगा, बल्कि रोजगार देने वाला राज्य बनेगा।
मोदी का संदेश: भारत पहले, बिहार आगे
पीएम मोदी की रैलियां बिहार के हर वर्ग युवा, किसान, महिला और गरीब को संबोधित करेंगी। उनके भाषणों में स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ राष्ट्रीय गौरव का भाव भी होगा। यही कारण है कि मोदी की हर रैली जनसभा नहीं, बल्कि राष्ट्रसभा का रूप ले लेती है। नीतीश कुमार की 30-35 रैलियों और योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह की उपस्थिति से यह अभियान सामूहिक शक्ति का प्रतीक बनेगा। यह वह तस्वीर है जिसमें केंद्र और राज्य दोनों के नेतृत्व एक ही लक्ष्य पर केंद्रित हैं समृद्ध, सशक्त और स्वाभिमानी बिहार।
बिहार का स्वर्णकाल दस्तक दे रहा है
आज जब देश आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ रहा है, तब बिहार उस परिवर्तन की प्रयोगशाला बन सकता है। पीएम मोदी की रैलियां सिर्फ चुनावी शो नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य की शपथ जैसी हैं। यह चुनाव तय करेगा कि बिहार जातिवाद की दलदल से निकलेगा या विकास के महामार्ग पर आगे बढ़ेगा। और जब पीएम मोदी की आवाज बिहार की धरती पर गूंजेगी, बिहार बढ़ेगा तो भारत बढ़ेगा, तब यह केवल नारा नहीं रहेगा, बल्कि एक युग परिवर्तन का उद्घोष होगा।