भाजपा ने बीते सोमवार को उत्तर प्रदेश बीजेपी के 14 ज़िलों के लिए नए जिलाध्यक्ष नियुक्त कर दिए। 70 जिलाध्यक्ष पहले ही घोषित किए जा चुके थे, यानी अब तक कुल 84 नए जिलाध्यक्ष बनाए जा चुके हैं। जिलाध्यक्षों की नियुक्ति पूरी होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष के चयन का रास्ता साफ हो गया है और माना जा रहा है कि जल्द ही प्रदेश भाजपा को नया अध्यक्ष मिल सकता है।
नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की चाभी भी यूपी में ही छिपी हुई है। दरअसल राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए राष्ट्रीय परिषद होना जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज नेता यूपी से ही आते हैं, ऐसे में राष्ट्रीय परिषद में उनकी मौजूदगी के लिए प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव जरूरी है।
इसके अलावा 2027 के विधानसभा चुनाव पार्टी उसी नेतृत्व में लड़ेगी। इसके अलावा 2026 के पंचायत चुनाव भी होने हैं, इसलिए भाजपा जातिगत समीकरणों के हिसाब से सबसे उपयुक्त चेहरे पर विचार कर रही है।
जानकारों की मानें तो पार्टी फिलहाल दो प्रमुख विकल्पों पर विचार कर रही है—
पहला: अध्यक्ष पद पिछड़े वर्ग के किसी नेता को दिया जाए।
दूसरा: ब्राह्मण समाज को साधने के लिए किसी ब्राह्मण चेहरे को मौका मिले।
सूत्रों के अनुसार पिछड़े वर्ग से रेस में कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है। दूसरा नाम अमरपाल मौर्या का बताया जा रहा है, जो फ़िलहाल प्रदेश प्रदेश भाजपा में महामंत्री हैं व राज्य सभा सांसद भी हैं।
धर्मपाल सिंह, बरेली की आंवला सीट से विधायक हैं और इस समय योगी सरकार में पशुधन मंत्री हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश में पिछड़े वर्ग के नेता को अध्यक्ष बनाने का फैसला करता है, तो धर्मपाल सिंह की ताजपोशी लगभग तय मानी जा रही है। वह लोध (लोधी) समाज के बड़े नेता हैं।
**धर्मपाल सिंह की दावेदारी क्यों मजबूत मानी जा रही है?**
संघ की पृष्ठभूमि: धर्मपाल सिंह संघ के स्वयंसेवक रहे हैं और संघ की प्रेरणा से राजनीति में आए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के करीबी नेताओं में उनकी गिनती होती है।
पहले भी रह चुके हैं मज़बूत दावेदार: 2016 में भी वे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में थे, लेकिन उस समय बाजी केशव प्रसाद मौर्य ने मारी।
लंबा राजनीतिक अनुभव: 1996 में पहली बार विधायक बने थे, तब बीएसपी–बीजेपी गठबंधन सरकार में मायावती ने उन्हें राज्यमंत्री बनाया था। इसके बाद भी भाजपा की सरकारों में लगातार मंत्री रहे। यही नहीं वो योगी सरकार के पहले कार्यकाल में भी सिंचाई मंत्री बनाए गए थे और इस वक्त भी पशुधन मंत्री के हैं।
जातिगत समीकरण: लोधी समाज की आबादी लगभग 1.10 करोड़ है। इसके साथ ही 70 विधानसभा सीटों और 12 लोकसभा सीटों पर यह समाज निर्णायक माना जाता है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी इसी समाज से आते थे।
**अमरपाल मौर्य के नाम की भी चर्चा**
अगर किसी कारणवश धर्मपाल सिंह के नाम पर सहमति नहीं बनती है तो राज्यसभा सांसद अमरपाल मौर्य का नाम भी चर्चा में है। वे वर्तमान में प्रदेश महामंत्री हैं और पार्टी के भीतर उन्हें डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का करीबी भी माना जाता है, इसलिए पिछड़ा वर्ग वाले विकल्प में उनका नाम भी तुलनात्मक रूप से मजबूत माना जा रहा है।
**ब्राह्मण चेहरे के रूप में डॉ. दिनेश शर्मा की चर्चा **
वहीं उधर, ब्राह्मण समाज की नाराज़गी को देखते हुए यदि पार्टी यह पद ब्राह्मण नेता को देने का निर्णय करती है, तो दो नाम वहां प्रमुखता से उभरते हैं। पहला नाम है राज्यसभा सांसद डॉ. दिनेश शर्मा का, जो योगी सरकार के पहले कार्यकाल में डिप्टी सीएम रहे और संगठन में भी लंबे समय से सक्रिय हैं। दूसरा नाम है प्रदेश भाजपा के महामंत्री और विधान परिषद सदस्य गोविंद नारायण शुक्ला का, जिन्होंने विधान परिषद का चुनाव निर्विरोध जीता था। पार्टी ने उन्हें गोरखपुर क्षेत्र का प्रभारी भी बनाया था, जहां अनुशासनात्मक मामलों को लेकर वे कई बार सुर्खियों में रहे हैं।































