जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के एक छात्रसंघ विवेकानंद विचार मंच द्वारा सुब्रमनियन स्वामी को बाबरी मस्जिद विध्वंस की २५वीं सालगिरह के अवसर पर ‘व्हाई राम मंदिर इन अयोध्या?’(अयोध्या में राम मंदिर क्यों?) नामक विषय पर भाषण देने के लिए बुलाया गया था। ये कार्यक्रम ६ दिसम्बर, शाम ९ बजकर ३० मिनट पर कोयना मेस में शुरू होना था।
आयोजकों को इस कार्यक्रम की अनुमति कई दिनों पहले २७ नवम्बर को ही दी जा चुकी थी। हालाँकि जेएनयू प्रशासन ने आयोजकों को कुछ भी कहने सुनने का समय न देते हुए ६ दिसम्बर, शाम ४ बजे कार्यक्रम को एकाएक निरस्त कर दिया।
प्रशासन ने एक सूचना देते हुए कहा कि “प्राशासन ने ये निर्णय लिया है कि ६/१२/२०१७ को जेएनयू के कोयना छात्रावास में कोई भी चर्चा नहीं होगी। इस वज़ह से “अयोध्या में राम मंदिर क्यों” विषय पर कोयना हॉस्टल में होने जा रही चर्चा का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है।”
राष्ट्रवाद विरोधी और अलगाववाद-समर्थकों के साथ जेएनयू का प्रेम
जेएनयू ने उदारवादी रवैया अपनाते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर परिसर के अन्दर राष्ट्र विरोधी नारेबाजी होने दी और ९ फरवरी २०१६ को आतंकवादी अफज़ल गुरु की फांसी और ब्राह्मणों के खिलाफ एक कार्यक्रम आयोजित होने दिया जहाँ राष्ट्र विरोधियों के एक झुण्ड ने चीख चीख कर देश विरोधी नारे लगाये।
भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक डॉ. के.के. मुहम्मद ने ये दावा किया था कि जेएनयू से सम्बंधित इतिहासकारों ने राम जन्मभूमि मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान नहीं निकलने दिया।
जेएनयू से सम्बद्ध तीन प्रोफेसर रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा और एस. गोपाल ने तर्क दिया कि १९वीं शताब्दी के पहले मंदिर को ढहाने का कहीं कोई उल्लेख नहीं था। श्री राम जन्मभूमि के पक्ष में अगणित ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्यों के बावजूद भी ये तर्क-दोष उत्पन्न किया गया।
कुछ इतिहासकार जो बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी में शामिल थे, जैसे इरफ़ान हबीब, आर.एस. शर्मा, अथर अली, डी.एन. झा और सूरज भान इत्यादि लोग भी जेएनयू ब्रिगेड के झूठे दावों के साथ हो लिए।
जेएनयू की प्रसिद्द असहिष्णुता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राम मंदिर पर एक साधारण कार्यक्रम से इतना डर?
डॉ. स्वामी ने कल एक साक्षात्कार में बताया कि जेएनयू ने वामपंथी विचारधारा का अपनी ही परिभाषा निकाली है, और उन्होंने पूछा कि क्यों जेएनयू एक साधारण सा भाषण बर्दाश्त नही कर सकता जबकि ये संस्थान अभिव्यक्ति की आज़ादी का बहुत बड़ा समर्थक रहा है।
डॉ. सुब्रमनियन स्वामी, जिन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर रखी है, हार्वर्ड में सह-प्राध्यापक के रूप में कार्य किया है, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में २२ वर्षों तक गणितीय अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं, विश्व के किसी भी विश्वविद्यालय के लिए उनके जैसे प्रवक्ता की मेजबानी करना ख़ुशी की बात होगी।
सुब्रमनियन स्वामी ने अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण को लेकर अपनी पुस्तक ‘रिबिल्डिंग राम मंदिर इन अयोध्या’ में बड़े पैमाने पर अपने विचार व्यक्त किए हैं जिसमें उन्होंने भारतीय संविधान, कानून, पुरातात्विक सर्वेक्षणों और इतिहास से तथ्यों का हवाला दिया है इसके उलट वामपंथियों ने अपनी मलिन विचारधारा जनित भावनाओं के अनुरुप बहस करना जारी रखा है।
जेएनयू ने प्रकाश करात के कार्यक्रम को भी रद्द करके अच्छी चाल चली
उसी दिन सीपीआई (एम) नेता, प्रकाश करात को जेएनयू के छात्र संघ द्वारा आयोजित कर्यक्रम ‘रिक्लेमिंग द रिपब्लिक’ पर एक भाषण देना था। इस कार्यक्रम के लिए लगाये गये पोस्टरों में “डिमांड फॉर जस्टिस अगेंस्ट बाबरी मस्जिद डेमोलिशन”(बाबरी मस्जिद विध्वंस के खिलाफ न्याय की मांग) साफ़ साफ़ लिखा हुआ था।
जेएनयू छात्र संघ की सदस्य सिमोन जोया खान ने सीएनएन-न्यूज़ 18 को बताया कि उनके पास करात का भाषण करवाने के लिए उचित अनुमति थी। डॉ. स्वामी के कार्यक्रम के आयोजकों ने प्रशासन से मिलने का प्रयास किया, इसी बीच मीडिया और सोशल मीडिया दोनों ही डॉ. स्वामी के भाषण के रद्द होने की वज़ह से भड़क गये।
‘रिक्लेमिंग द रिपब्लिक’ के प्रवक्ताओं का विवरण :
प्रकाश करात: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), जेएनयू के पूर्व छात्र
कविता कृष्णन: अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ (एआईपीडब्ल्यूए) की सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (माकपा-एमएल) के मासिक प्रकाशन ‘लिबरेशन’ की संपादक, जेएनयू की भूतपूर्व छात्रा
प्रोफेसर जयती घोष: जेएनयू के स्कूल ऑफ़ सोशल साइंसेज़ में ‘इकोनॉमिक्स एट द सेंटर फॉर इकनोमिक स्टडीज़ एंड प्लानिंग’ की प्रोफेसर
अल्बीना शकील: भूतपूर्व जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष
बाद में प्रशासन ने ‘सांप्रदायिक सद्भावना और शांति’ का हवाला देते हुए परिसर में दोनों ही कार्यक्रमों को निरस्त कर दिया।
करात द्वारा सहानुभूति प्राप्त करने के लिए उठाया गया कदम
जेएनयू के द्वारा इस कार्यक्रम को निरस्त कर दिए जाने के कारण करात की आखिरी साँसे गिनती राजनीति को एक झटका लगा और उनके कभी कभार ही लोक प्रसिद्धि में आने का अवसर भी नष्ट हो गया।
करात ने कहा कि विश्वविद्यालय ने १६वीं शताब्दी की मस्जिद के विध्वंस की बरसी के मौके पर भाषण की अनुमति न देकर एक बहुत ही अलोकतांत्रिक कदम उठाया है।
करात ने कहा कि “चर्चाओं की अनुमति न देना जेएनयू की परम्पराओं के बिलकुल खिलाफ है।”
सुब्रमनियन स्वामी जेएनयू प्रशासन की चुटकी ली और दावा किया कि उन्होंने जेएनयू प्रशासन को अपने तथ्यों से चुप करा दिया है
डॉ. स्वामी एक दिन पहले ही राम मंदिर मामले में पेश हुए थे और कपिल सिब्बल के सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील न होने के दावे को उधेड़ के रख दिया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की एक प्रतिलिपि को प्रस्तुत किया जिसमें सिब्बल के वक्फ बोर्ड का वकील होने का स्पष्ट उल्लेख था। वे कार्यक्रम के रद्द होने पर हँसे और एक टीवी पर साक्षात्कार में कहा कि उनके पास करने के लिए बहुत सारे बेहतर काम हैं।
क्या जेएनयू सुब्रमनियन स्वामी से डर गया था?
सुब्रमनियन स्वामी की 2G, नेशनल हेराल्ड और जयललिता जैसे राजनेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार लड़ाई जेएनयू के वामपंथियों को भीतर तक डरा देने के लिए पर्याप्त थी। स्वामी उस मतवाले सांड की तरह हैं जो अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को ध्वस्त कर देते हैं। जेएनयू को डर था कि वे परिसर के अन्दर बैठे गुप्त रामभक्तों को उत्साहित भी कर सकते थे।
सुब्रमनियन स्वामी कोई भाषण दिए बिना भी एक विजेता की तरह उभर कर सामने आये जबकि करात परास्त होकर बाहर आये
यदि ये कार्यक्रम हुआ होता तो मीडिया और सोशल मीडिया दोनों में इसे खूब जगह मिलती लेकिन इस पर जेएनयू के विरोध ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इनके खुद के ही समर्थन को ध्वस्त कर दिया और ‘राम मंदिर निर्माण’ को इस कार्यक्रम से भी ज्यादा लोकप्रियता दिलवाई।
सुब्रमनियन स्वामी, ने बड़े मखौल भरे अंदाज़ में एक गाने का यूट्यूब लिंक ट्वीट करके जेएनयू प्रशासन को अपने निशाने पर लिया। उस गाने के बोल थे ‘मस्जिद कहीं और बनाओ ये राम लला का डेरा है’ और विश्वविद्यालय को ये सुझाव भी दिया की इस गाने को रोज़ परिसर में बजाया करें।