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राहुल बजाज: पुराना कांग्रेस भक्त, पुराना मोदी विरोधी और एक बड़बोला आदमी

Vikrant Thardak द्वारा Vikrant Thardak
2 December 2019
in मत
बजाज, राहुल बजाज

(PC: Wikimedia)

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क्या भारत में सरकार से सवाल पूछना अब गुनाह हो गया है? क्या भारत का व्यापारिक समुदाय केंद्र सरकार के tax terrorism से जूझ रहा है? और क्या भारत में intolerance बढ़ रही है? ये सवाल नए नहीं है और वर्ष 2014 में मोदी सरकार आने के बाद से ही कुछ लोग समय-समय पर इस बहस को जन्म देते रहते हैं। अबकी बार इस बहस को जन्म दिया है भारत के अरबपति बिजनेसमैन राहुल बजाज ने जो वर्ष 1965 से लेकर वर्ष 2005 तक बजाज की कमान संभाल चुके हैं और आज भी बजाज समूह के चेयरमैन हैं।

हाल ही में एक कार्यक्रम में उन्होंने केंद्रीय मंत्री अमित शाह और पीयूष गोयल के सामने अपना दुख बयां किया कि उन्हें देश में भय का माहौल नज़र आ रहा है और सरकार से सवाल पूछना बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा हो गया है। यह सब कुछ वे ऐसे समय में कह रहे हैं जब पिछले पांच सालों के दौरान उनकी बजाज कंपनी ने बेहद अच्छा प्रदर्शन किया है। हालांकि, अब यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर किन मजबूरियों के चलते उन्होंने मोदी सरकार की आलोचना करने का मन बनाया और क्या वाकई आज के भारत का व्यावसायिक वातावरण बिजनेस फ्रेंडली नहीं रहा।

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असल में बज़ाज़ परिवार आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद से ही गांधी परिवार के बेहद नजदीक रहा है। राहुल बज़ाज़ के दादा और बज़ाज़ समूह के संस्थापक जमनालाल बज़ाज़ महात्मा गांधी के बहुत बड़े भक्तों में से एक थे और महात्मा गांधी भी उन्हें अपना 5वां बेटा मानते थे। गांधी परिवार और बज़ाज़ परिवार इस हद तक करीब थे जवाहरलाल नेहरू ने ही राहुल बज़ाज़ का नामकरण किया था। इसके बाद राहुल बज़ाज़ ने अपने सबसे बड़े बेटे का नाम राजीव रखा था, जबकि राजीव गांधी ने अपने बेटे का नाम राहुल रखा था। इसके अलावा इसी नजदीकी के चलते राहुल बज़ाज़ वर्ष 2006 से वर्ष 2010 तक राज्य सभा के सदस्य रहे थे।

जमनालाल बज़ाज़ ने वर्ष 1945 में बज़ाज़ समूह की स्थापना की और इसके 20 सालों बाद वर्ष 1965 में उनके पौते राहुल बज़ाज़ ने कंपनी की कमान अपने हाथों में ली। उन्हीं के नेतृत्व में बज़ाज़ ऑटो ने वर्ष 1972 में चेतक स्कूटर को बाज़ार में उतारा था और बज़ाज़ ने तकनीकी सहयोग की एक संधि के तहत इटली की कंपनी वेसपा से उस स्कूटर के डिजाइन को हासिल किया था।

स्कूटर उस समय भारत में बिलकुल नया कान्सेप्ट था और बढ़ती तेल की कीमतों और स्कूटर के सस्ते दाम ने इस स्कूटर को भारत में बेहद लोकप्रिय कर दिया। वर्ष 1991 से पहले तक भारत की अर्थव्यवस्था उतनी लिबरल नहीं थी और इसकी वजह से चेतक की सफलता को चुनौती देने वाला भारत में कोई आ ही नहीं सका। इन वर्षों में चेतक ने बहुत नाम कमाया लेकिन यह वही समय था जब देश की अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर से गुजर रही थी।

देश में आर्थिक आपातकाल की स्थिति में जब वर्ष 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार देश में लिबरल नीतियों को लागू करने जा रही थी, तो बॉम्बे में बैठे सभी अरबपति उद्योगपतियों ने इसका विरोध किया था। वे ये बात भली-भांति जानते थे कि आर्थिक उदारवाद देश के लिए तो अच्छा है लेकिन उनके व्यवसाय के लिए यह बिलकुल भी अच्छा नहीं है क्योंकि उदारीकरण होने के बाद कई विदेशी कंपनियों को भारत के बाज़ार तक पहुंच मिल जाती और उनके ‘उच्च गुणवत्ता’ वाले उत्पादों को विदेशी कंपनियों से चुनौती मिलना शुरू हो जाती। यही कारण था कि 1991 के आर्थिक उदारवाद का राहुल बज़ाज़ ने बढ़-चढ़कर विरोध किया था, और यहाँ तक कि उदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद उन्होंने उन नीतियों पर रोक लगाने के लिए बड़े पैमाने पर लॉबिंग की थी।

उस वक्त शायद वे बदलाव को स्वीकार नहीं करना चाहते थे और इसी के नतीजे में वर्ष 2005 में चेतक के निर्माण पर बज़ाज़ को रोक लगानी पड़ी क्योंकि वर्ष 1991 के बाद से जापान की कई कंपनियों ने बेहतर क्वालिटी के दो-पहिया वाहन को ग्राहकों को उपलब्ध कराना शुरू कर दिया था। इसके बाद वर्ष 2009 में बजाज ने जापान की कावासाकी कंपनी के साथ गठजोड़ कर लिया था और यह वर्ष 2017 तक जारी रहा था। गठजोड़ करने की सबसे बड़ी वजह भारतीय बाज़ार में बढ़ रही प्रतिस्पर्धा ही थी।

आज बेशक राहुल बजाज भारत के माहौल को भयभीत करने वाला बताते हों, लेकिन इसी माहौल में उनकी बजाज कंपनी ने पिछले पाँच वर्षों में शानदार प्रदर्शन किया है।

वर्ष 2014 में बजाज परिवार की नेट वर्थ $4.1 बिलियन से बढ़कर वर्ष 2019 में $9.2 बिलियन तक पहुंच गयी। इसी प्रकार बजाज समूह की Market capitalization वर्ष 2014 में 1,02,682 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2019 में 5,21,815 करोड़ तक बढ़ गयी। ये सब इसी ‘भयावह’ माहौल में संभव हो पाया।

राहुल बजाज शुरू से ही कांग्रेसी, मोदी से नफरत करने वाली शख्सियत रहे हैं और ऐसे में सार्वजनिक मंच पर मोदी सरकार की आलोचना करने का अवसर पाकर भी अपने आप को डरा हुआ बताना उनके इसी व्यक्तित्व को दिखाता है। राहुल बजाज लाइसेन्स कोटा राज का सबसे ज़्यादा फायदा उठाने वाले उद्योगपतियों में से एक रहे हैं। फरवरी 2003 में जब दिल्ली में Confederation of Indian Industry का एक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें सभी CII के सदस्यों को तत्कालीन गुजरात सीएम मोदी से बातचीत करने का मौका दिया गया था। स्टेज पर उस वक्त सीएम मोदी, राहुल बजाज और CII के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल तरुण दास थे।
राहुल बजाज ने उस वक्त पीएम मोदी के साथ स्टेज पर अभद्र व्यवहार किया था और वे स्टेज पर अपना होश खो बैठे थे। गुजरात के सीएम का इस तरह अपमान देखकर CII के लगभग 100 गुजरात सदस्यों ने CII का बहिष्कार करने की धमकी दे डाली थी। कुछ गुजरातियों ने CII के ही परस्पर एक अन्य संस्था Resurgent Group of Gujarat की स्थापना कर दी थी। इसके बाद CII को सीएम मोदी से माफी मांगनी पड़ी थी और उनको एक पत्र भी भेजा गया था।

ऐसे लोग सरकार की आलोचना भी करते हैं और बाद में अपने आप को सरकार से डरा हुआ भी बताते हैं। इन दोनों बातों में ही कितना विरोधाभास छुपा है। वे गांधी के करीबी बज़ाज़ परिवार में जन्में हैं और ऊंचे पदों पर बैठे राजनेताओं से हाथ मिलाकर अपने व्यापार को आगे बढ़ाया है, और यही उनके जीवन की सफलता की कहानी है।

Tags: अमित शाहकांग्रेसजमनालाल बजाजराहुल बजाज
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अमित शाह के चेलों-चमचों…, तेजस्वी की धमकी और बिहार के ‘जंगलराज’ की यादें

29 October 2025

बिहार के राजनीतिक मंचों पर शब्दों की मर्यादा कब की टूट चुकी है। लेकिन जब कोई पूर्व उपमुख्यमंत्री, जो स्वयं को एक नये दौर का...

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