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रूस ने Armenia को कोई धोखा नहीं दिया और न साथ छोड़ा है, उसने तुर्की और Azerbaijan के साथ खेला खेल है

रूस ने खेल अब शुरू किया है!

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
16 November 2020
in विश्व
आर्मीनिया
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जियो पॉलिटिक्स में पासा कब पलट जाये यह निश्चित नहीं होता। रूस ने आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच शांति समझौता कराकर एक ऐसा खेल खेला है जिससे भविष्य में न सिर्फ अजरबैजान को नियंत्रण में करना आसान होगा, बल्कि तुर्की के बढ़ते कदम को भी रोका जा सकेगा। यानि अगर यह कहें कि पुतिन ने अपनी एक चाल से अजरबैजान और तुर्की दोनों को मात देना शुरु कर दिया है तो यह गलत नहीं होगा।

दरअसल, आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच चल रहे युद्ध के बाद अब शांति समझौता हो चुका है। इस समझौते के तहत आर्मीनिया द्वारा नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र के कुछ क्षेत्र को अजरबैजान को सौंपना तय हुआ था। हालांकि, उस क्षेत्र के आर्मेनियाई ईसाई अपने घरों को छोड़ पलायन करने के लिए मजबूर हो गए है। परंतु रूस ने अजरबैजान को खास निर्देश देते हुए नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र के ईसाई धर्मस्थलों की देखभाल करने के लिए कहा। यही नहीं रिपोर्ट के अनुसार इस सीजफायर डील से अजरबैजान को मिलने वाले भूभाग के सभी ईसाई मोनेस्ट्री और चर्च को नुकसान न पहुंचाने का निर्देश दिया है। इसको सुनिश्चित करने के लिए रूस उस क्षेत्र में अपने सैनिकों की भी तैनाती करेगा।

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समझौते के तहत रूसी पीस-कीपिंग फोर्स नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में अजरबैजान द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्रों में कम से कम पांच साल तक रहेंगे। राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि वे नागोर्नो-काराबाख में सीमावर्ती क्षेत्र और आर्मीनिया के बीच तैनात किए जाएंगे। रूसी रक्षा मंत्रालय के अनुसार लगभग 2,000 सैनिक, 90 बख्तरबंद गाडियाँ और 380 सामान्य वाहन तैनात किए जा रहे हैं। रूसी मीडिया के अनुसार 20 सैन्य विमानों ने इस क्षेत्र के लिए उड़ान भरी थी और आर्मीनिया के रास्ते नागोर्नो-काराबाख पहुंचने लगे थे।

यहाँ ध्यान देने वाली बात रूसी सैन्य का विस्तार है। इसे मैप में देखे तो अजरबैजान द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्र का 60 प्रतिशत से अधिक भाग रूसी पीस कीपिंग फोर्स के हवाले रहेगा।  इस समझौते से रूस को अजरबैजान में सेना रखने की छुट मिल चुकी है और वह पहले से ही आर्मीनिया में मौजूद है। यही नहीं Collective Security Treaty Organization (CSTO)समझौते के कारण आर्मीनिया में पहले से ही रूसी सैन्य बेस मौजूद है। यानि पूरे दक्षिणी Caucasus क्षेत्र में रूस अपनी मिलिटरी शक्ति बढ़ा कर पूरे क्षेत्र को अब घेर चुका है।

इससे न सिर्फ रूस के पास क्रिमिया की तरह अजरबैजान को भी अपने नियंत्रण में लेने का मौका होगा बल्कि रूसी सेना की मौजूदगी से तुर्की पर भी उसकी नजर रहेगी। रूस पहले से ही सीरिया में अपनी उपस्थिती जमाये हुए हैं। यानि देखा जाए तो अब तुर्की को रूस तीन तरफ से घेर चुका है। अब किसी भी युद्ध की स्थिति में अगर तुर्की पर कारवाई की आवश्यकता पड़ी तो उसे नियंत्रित किया जा सकेगा।

जब यह समझौता हुआ तो अजरबैजान में खुशियाँ मनाई जा रही थीं और आर्मीनिया में लोग गुस्से से सड़क पर आ गए थे। सभी को यह लग रहा था कि रूस ने आर्मीनिया को घोखा दिया है और नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को अजरबैजान को सौंप दिया। विश्व के कई विशेषज्ञों ने भी यही सोचा कि अब रूस ने अमेरिकी चुनाव में ट्रम्प की हार के बाद दबाव में आ कर ऐसा कदम उठाया। परंतु पुतिन ने अपने अनुभव से अटकलों को मात देते हुए न तो आर्मीनिया को धोखा दिया और न ही अजरबैजान को फायेदा पहुंचाया, बल्कि इस समझौते से रूस की जीत को सुनिश्चित किया। अब भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है यह तो कोई नहीं बता सकता लेकिन अगर आर्मीनिया और अजरबैजान भी क्रिमिया तथा यूक्रेन की तरह रूस की चालों के शिकार बन गए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। वहीं रूसी सैनिकों की नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में उपस्थिती की  तुर्की आज खुशी मना रहा है लेकिन अगर यह भी आगे चल कर उसके लिए भी घातक साबित होगा तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यानि अब इस शांति समझौते के बारे में यह कहा जाए कि रूस ने आर्मीनिया के साथ धोखा किया है तो यह गलत होगा। सच्चाई तो यह है कि रूस ने अजरबैजान और तुर्की को उसके क्षेत्र में मात देने के प्लान की शुरुआत कर दी है।

Tags: अज़रबैजानआर्मीनिया
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