राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों ने जो भी अराजकता फैलाई, और लाल किले पर तिरंगे का अपमान कर देश के संविधान की मर्यादाएं तार-तार की, उसके पीछे तथाकथित किसान और गुंडे तो जिम्मेदार हैं ही, साथ ही सोशल मीडिया पर उन्हें भड़काने वाले लोग भी इसके बड़े सहभागी है। ऐसे में माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं कि जिस ट्विटर ने अमेरिका में कैपिटॉल हिल की हिंसा पर वहां के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के ट्विटर अकाउंट को बैन कर दिया था, उस ट्विटर ने दंगाई तथाकथित किसानों को भड़काने वालों के अकाउंट को बैन करने की कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, क्या हिंसा को लेकर भी ट्विटर के दोहरे मापदंड है।
सोशल मीडिया पर किसी को भी आसानी से भड़काया जा सकता है। देश में किसानों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। एक तरफ गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में हिंसा हो रही थी, तो दूसरी ओर ट्विटर पर तथाकथित बुद्धिजीवी और पत्रकार किसानों को भड़काने का काम कर रहे थे। उदाहरण के लिए इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई को ही ले सकते हैं, जो कि नांगलोई में हुई किसान की मौत का कारण पुलिस की गोली को बता रहे थे, जबकि ये एक फेक न्यूज थी। इसी तरह तथाकथित पत्रकार और वामपंथ का एजेंडा चलाने वाली बरखा दत्त की भी बड़ी भूमिका थी।
बरखा दत्त इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए ट्वीट करती हैं कि वो आग से खेल रहे हैं। वहीं भारतीय किसान यूनियन के ट्विटर अकाउंट से किसानों द्वारा लाल किले पर की गई घटनाओं को लेकर सरकार पर ही साजिश करने का आरोप लगाया गया। उनका कहना है कि किसानों को सरकार ने भड़काया। किसान नेता राकेश टिकैत तो अपने ट्विटर अकाउंट के जरिए लेखों और वीडियों संदेशों से किसानों को भड़का रहे थे। वो एक दिन पहले ही कहते पाए गए थे कि किसान दिल्ली से कही नहीं जाने वाला है, और किसान को सरकार बेवकूफ बना रही है। उन्होंने धमकी के अंदाज में कहा था कि किसानों को सड़क पर जहां के तहां ही बैठकर आंदोलन करना चाहिए। राकेश टिकैत वही शख्स हैं जो एक वीडियों में किसानों से लाठी डंडे लेकर आने की मांग कर रहे थे जिसके बाद इस हिंसात्मक कार्रवाई में उनका नाम भी संदिग्ध ही हो गया है।
इसके अलावा एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो ट्विटर पर किसानों के समर्थन में खड़ा हो गया है। इन तथाकथित किसान समर्थकों और दंगे की मानसिकता रखने वालों का कहना है कि किसानों ने किसी भी तरह की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया और वो शातिपूर्ण प्रदर्शन ही करते रहे, फिर भी पुलिस इनके खिलाफ लाठीचार्ज से लेकर आंसू गैस के गोले छोड़ रही है। ये सभी तथाकथित वामपंथी और बुद्धिजीवी लोग किसानों का बचाव करने के साथ ही उनको भड़का रहे हैं जो दिखाता है कि इनकी नियत सरकार के विरोध में अराजकता को बढ़ावा देने वाली ही है।
Government's pet media didn't shed a tear when 150+ farmers died.
But today they will be taken on a tour BY POLICE to Red Fort & will cry out river of propaganda by showing broken railings & ticket counters.
They won't show how SEVERAL parked tractors were vandalized by Police.
— Saahil Murli Menghani (@saahilmenghani) January 27, 2021
With 0 buses burnt, 0 police vehicles torched, 0 public property damage, 0 private property damage, 0 use of weapons, 0 mob lynchings, this Protest & Tractor Parade hs proved how sensible, peaceful, down to earth these farmers are.
Yes, spirits r high ✊🏻#PeacefulProtestContinues— Tractor2ਟਵਿੱਟਰ (@Tractor2twitr) January 27, 2021
इन सारे आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले लोगों के ट्विटर अकाउंट से लगातार हिंसा भड़काने और आग दहलाने के संदेश निकल रहे थे। इसके अलावा कुछ अपुष्ट सूत्र इस आंदोलन के दौरान हजारों पाकिस्तानी ट्विटर अकाउंट्स से भी भड़काउ ट्वीट होने का दावा कर चुके हैं, लेकिन इस मुद्दे पर ट्विटर ने अपनी हिंसात्मक कार्रवाई वाली पॉलिसी को नजरंदाज करते हुए कोई अकाउंट अस्थाई रूप से बैन तक नहीं किया, जो दिखाता है कि ट्विटर के सारे मापदंड दोहरे हैं।
अमेरिका की कैपिटॉल हिल की हिंसा को ट्विटर ने इतना संवेदनशील मान लिया था कि उसने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के ट्विटर अकाउंट को ही बैन कर दिया था, जबकि भारत में इतनी बड़ी हिंसात्मक गतिविधि होने के बावजूद ट्विटर ने इस पर कोई संज्ञान तक नहीं लिया। हालत ये हो गई कि हिंसा की निंदा करने की दिखावटी पॉलिसी रखने वाले ट्विटर का अपना ही प्लेटफार्म फेक न्यूज फैलाने से लेकर लोगों को भड़काने का मुख्य गढ़ बन गया, जो कि उसके दोगलेपन की पराकाष्ठा है।