डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के आखिरी साल में अरब देशों और इज़रायल के बीच शांति समझौते कराने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके बाद ना सिर्फ पश्चिम एशिया में शांति स्थापना को बल मिला था, बल्कि अरब देशों और इज़रायल के साथ अमेरिका का गठबंधन और मज़बूत हो गया था।
ट्रम्प द्वारा स्थापित किए गए शांति के स्तंभों को अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन उखाड़ने का काम कर रहे हैं। अपने एक के बाद एक फैसलों से वे सऊदी अरब और इज़रायल को नाराज़ करने का काम कर रहे हैं, जिसके नतीजे में अब UAE, बहरीन और सऊदी अरब सऊदी अरबके साथ मिलकर इज़रायल एक सैन्य गठबंधन बनाने पर विचार कर रहा है। अगर ऐसा होता है तो यह ईरान और ईरान के प्रति नर्म रुख अपना रहे बाइडन प्रशासन के लिए सबसे बड़ा झटका होगा!
इज़रायली न्यूज़ नेटवर्क i24 न्यूज़ की एक exclusive रिपोर्ट के अनुसार इज़रायल अभी एक सैन्य गठबंधन की स्थापना को लेकर सऊदी अरब, UAE और बहरीन के साथ बातचीत कर रहा है। यह बड़ी खबर इसलिए भी अहम है क्योंकि अभी तक इज़रायल ने सऊदी अरब के साथ आधिकारिक तौर पर कूटनीतिक रिश्ते स्थापित नहीं किए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार जिस प्रकार सीरिया और इराक़ जैसे देशों में ईरान का प्रभाव तेजी से बढ़ता जा रहा है, और जिस प्रकार ईरान तेजी से अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम को आगे बढ़ा रहा है, उसने अरब देशों और इज़रायल के लिए एक बड़ा सुरक्षा खतरा पैदा कर दिया है, जिसके कारण अब ये सब देश साथ आकर ईरानी खतरे का मुक़ाबला करने की तैयारी कर रहे हैं।
बाइडन ने सत्ता संभालने के बाद जिस प्रकार UAE और सऊदी अरब के खिलाफ एक के बाद एक कदम उठाए हैं, उसने अरब देशों को चिंता में डाल दिया है। बाइडन प्रशासन ने एक तरफ जहां UAE को होने वाली F-35 की प्रस्तावित सेल पर रोक लगा दी, तो वहीं यमन के सऊदी अरब विरोधी हऊथी उग्रवादियों से आतंकियों का दर्जा भी वापस ले लिया।
उसके बाद सऊदी अरब ने UN में एक बयान देते हुए यह साफ़ किया कि वे “अब हम भी हाऊथी लड़ाकों को आतंकवादी का दर्जा देना जारी रखेंगे, ताकि हम हाऊथी के खतरे से निपट सकें।” इतना ही नहीं, अमेरिका ने यह भी स्पष्ट किया है कि वे सऊदी अरब में अब कूटनीतिक वार्ता के लिए MBS से ज़्यादा सऊदी के आधिकारिक राजा किंग सलमान को तवज्जो देंगे, जिससे सऊदी-US के रिश्तों में तनाव बढ़ने की पूरी-पूरी संभावना है।
बाइडन ने सत्ता में आने के बाद इज़रायल के खिलाफ भी कदम उठाए हैं, जिसके कारण यहूदी देश में चिंताएँ बढ़ गयी हैं। बाइडन ने सत्ता में आने के बाद जिस प्रकार फिलिस्तीन के समर्थन में अपनी आवाज़ उठाई है, उसके बाद इज़रायल-अमेरिका के बीच तनाव बढ़ना शुरू हो गया है। हाल ही में बाइडन ने इजरायल के विरुद्ध फैसला करते हुए फिलिस्तीनी शरणार्थियों को दी जाने वाली आर्थिक मदद पुनः बहाल कर दी, जिससे इज़रायल नाखुश है।
दूसरी ओर बाइडन ईरान पर नर्म तेवर अपनाए हुए हैं। बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद पहले महीने में कुछ स्पष्ट हुआ है, तो यह है कि वह Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA) यानी ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए बेताब है। बाइडन इस सौदे को फिर से लागू करने के लिए इतने बेताब है कि ट्रम्प द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटा रहे हैं, इस सब को देखते हुए तेहरान भी अब यह समझ चुका है कि बाइडन के लिए यह सौदा कितना महत्वपूर्ण है।
इसलिए, ईरान अमेरिकी राष्ट्रपति से अधिक से अधिक राहत की मांग कर रहा है, भले ही उसका परमाणु कार्यक्रम लगातार क्यों न चल रहा हो। वास्तव में तेहरान फ्रंटफुट पर खेल रहा है और अब उसे अमेरिका से किसी प्रकार का डर नहीं है। ईरान ने International Atomic Energy Agency (IAEA) से अपनी परमाणु सुविधाओं पर नजर रखने का अधिकार छीन लिया है लेकिन फिर भी, बाइडन इस सौदे के लिए जोर दे रहे हैं।
ईरान अगर एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनता है, तो इससे सबसे बड़ा खतरा अमेरिका के लिए नहीं, बल्कि इज़रायल और सऊदी अरब के लिए बनता है। इसीलिए, अरब देश और इज़रायल अब बाइडन को सख़्त संदेश देने की कोशिश में जुटे हैं। UAE ने भी हाल ही में इज़रायल में अपना एक राजदूत तैनात करने का फैसला लिया है, जिसके बाद UAE ने बाइडन प्रशासन को साफ़ संकेत दिया है कि अरब देश Abraham Accords को लेकर अपनी स्थिति पर टिके हुए हैं।
दूसरी ओर इज़रायल भी बाइडन के प्रति अपना गुस्सा साफ कर चुका है। हाल ही में एक उच्च इजरायली अधिकारी Danny Danon ने Newsweek से अपनी बातचीत में इस ओर संकेत दिये हैं। Danon UN में इज़रायल के राजदूत रह चुके हैं और साथ ही वे फिलहाल Likud पार्टी की अंतर्राष्ट्रीय शाखा के अध्यक्ष भी हैं। उनके बयान के मुताबिक “आज ईरान 2016 का ईरान नहीं है।वे आज अपने प्रोग्राम को बहुत आगे ले जा चुके हैं। अगर आज अमेरिका ईरान के साथ न्यूक्लियर डील को दोबारा बहाल करता है तो हमें भी अपने विकल्पों पर दोबारा विचार करना पड़ेगा।”
ऐसे में इज़रायल भी बाइडन को कड़ा संदेश देते हुए ईरान के खिलाफ “युद्ध के विकल्प” पर विचार करना शुरू कर चुका है। इज़रायल और अरब देशों पर बढ़ते सैन्य खतरे के कारण ही अब इन देशों ने साथ आकर ईरान का मुक़ाबला करने का फैसला लिया है, जो कि बाइडन प्रशासन के साथ-साथ तेहरान के लिए बड़ा संदेश है।