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कल्याण सिंह: वो मुख्यमंत्री जिन्होंने अयोध्या के राम मंदिर के लिए लखनऊ की सत्ता को ठोकर मार दी

अब मंदिर की तरफ जाने वाली सड़क का नाम ‘कल्याण सिंह मार्ग’ होगा।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
23 August 2021
in समीक्षा
कल्याण सिंह
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1993 में राष्ट्रपति शासन हटने के पश्चात जब उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए तो तत्कालीन शासन में रही भारतीय जनता पार्टी को पराजय प्राप्त हुई। मुलायम सिंह यादव और कांशीराम के विजयी गठबंधन ने इस बात का न केवल जश्न मनाया, अपितु हिंदुओं को अपमानित करते हुए नारे भी लगवाए, ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम!’ लेकिन ये एक ऐसे व्यक्ति के प्रति वामपंथियों और सेक्युलर पार्टियों की कुंठा को प्रदर्शित करता था, जिसने 1992 में कारसेवकों पर कोई कार्रवाई नहीं की। ये उस व्यक्ति के प्रति उनकी घृणा का प्रदर्शन ही था। जिसने स्पष्ट किया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे बाबरी के विवादित ढांचे का विध्वंस ही क्यों न हो जाए, परंतु वह 1990 की भांति उत्तर प्रदेश की पावन भूमि को निर्दोष हिंदुओं के रक्त से पुनः कलंकित नहीं होने देंगे। ये कहानी है उन वीर कल्याण सिंह की जिन्होंने धर्म के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया और धर्म के लिए सत्ता का मोह भी नहीं रखा।

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह का स्वर्गवास हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे और उन्होंने कोरोना वायरस को भी मात दी थी।

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कल्याण सिंह की मृत्यु के शौक में एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है और उन्हे पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके पैतृक गाँव अतरौली में पंचतत्व में विलीन कर दिया गया। उनकी अन्त्येष्टि में सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ स्वयं भारत के गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हुए। पीएम मोदी ने भी कल्याण सिंह के परिवार को सांत्वना दी और उनके परिवार वालों से बातचीत भी की।

5 जनवरी 1932 को हरिगढ़ [वामपंथियों के लिए अलीगढ़] में जन्मे कल्याण सिंह प्रारंभ से ही राष्ट्रवाद की ओर झुकाव रखते थे। जब वो छात्र थे तभी से वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य भी थे।

उन्होंने भारतीय जनसंघ की ओर से राजनीति में अपना प्रथम कदम 1967 में रखा, जब उन्होंने अपने गृह नगर अतरौली से ही काँग्रेस के उम्मीदवार को 4351 वोटों से परास्त किया।

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इसके पश्चात उन्होंने 1969 से लेकर 2002 तक अनेक बार चुनाव लड़े, और 1980 को छोड़कर वे हर बार विजयी भी रहे। धीरे-धीरे उनका प्रभाव भारतीय जनता पार्टी में भी बढ़ने लगा और 1984 तक आते-आते वे पार्टी के राज्य अध्यक्ष भी बन गए।

लेकिन इसे संयोग कहिए, या ईश्वर की लीला, कल्याण सिंह के भाग्योदय में ही भाजपा का भाग्योदय भी निहित था। 1984 में 2 सांसद से अपनी यात्रा प्रारंभ करने वाली पार्टी ने 1989 के चुनाव आते-आते लोकसभा में प्रभाव तो जमा लिया, परंतु किसी राज्य में सत्ता नहीं स्थापित कर पाए। परंतु 1991 के चुनाव आते आते कल्याण सिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने न केवल प्रचंड बहुमत प्राप्त किया, बल्कि किसी भी राज्य में प्रथमत्या भाजपा की सरकार भी स्थापित की।

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यही वो समय था, जब श्री राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था, और लाल कृष्ण आडवाणी को लालू यादव द्वारा हिरासत में लिए जाने एवं अयोध्या में मुलायम सिंह यादव की सरकार द्वारा निहत्थे कारसेवकों के नरसंहार के पश्चात भी सनातनियों का उत्साह तनिक भी कम नहीं हुआ था।

लेकिन 6 दिसंबर 1992 को गजब ही हुआ। कारसेवकों और सनातनियों की विशाल भीड़ ने विवादित क्षेत्र को चारों ओर से घेर लिया था। तत्कालीन भारतीय गृह मंत्री शंकरराव चव्हाण ने कल्याण सिंह को सूचित किया कि कारसेवक गुंबद के पास पहुँच चुके हैं, तो कल्याण सिंह ने कहा, जो बाद में अनेक साक्षात्कारों में उन्होंने सिद्ध भी किया, “मेरे पास तो एक कदम आगे की सूचना है कि उन्होंने गुंबद तोड़ना शुरू कर दिया है। मैं इस्तीफा देने को तैयार हूँ, परंतु उन पर [कारसेवकों] पर गोली नहीं चलाऊँगा”

कल्याण सिंह ने अपने शब्दों का मान रखते हुए त्यागपत्र सौंप दिया। उन्हे सत्ता त्यागना स्वीकार था, परंतु अपने धर्म का अपमान बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं था। जब 1997 में भाजपा की सरकार पुनः सत्ता में आई तो इसमें कल्याण सिंह के व्यक्तित्व का का भी काफी हद तक योगदान था।

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लेकिन यही व्यक्तित्व कभी कभी व्यक्तिगत रूप से उनके राजनीतिक जीवन में आड़े भी आता था। अपने अक्खड़पने के लिए प्रसिद्ध कल्याण सिंह को राजनीतिक मतभेद पर 1999 में सीएम पद त्यागने पर विवश होना पड़ा, जिसके कारण उन्होंने प्रथमत्या भाजपा छोड़ी।

इसके पश्चात वे 2004 में वापिस आए, परंतु स्थिति जस की तस पाते हुए उन्होंने 2009 में पुनः पार्टी त्याग दी। आखिरकार राजनाथ सिंह के प्रयासों से 2013 में कल्याण सिंह के मतभेद सुलझ गए और उन्होंने अपनी जन क्रांति पार्टी का भाजपा में विलय करा दिया।

कल्याण सिंह उन चंद राजनीतिज्ञों में से हैं, जिन्होंने अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर भारत के स्वाभिमान और भारत की संस्कृति की बलि चढ़ाना उचित नहीं समझा। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि के पुनरुत्थान के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, और आज उन्ही के प्रयासों से अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि के भव्य परिसर का पुनर्निर्माण भी हो रहा है, और उत्तर प्रदेश धार्मिक संस्कृति और विकास को साथ लेकर चलने वाला एक अनोखा राज्य बनकर भी सामने आया है।

ऐसे में अब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने निर्णय किया है कि रामजन्मभूमि परिसर की तरफ जाने वाले मार्ग का नाम कल्याण सिंह मार्ग होगा। काश, कल्याण सिंह अपने प्रयासों के जीवट स्वरूप को देखने के लिए तनिक और जीवित रहते।

Tags: अयोध्याकल्याण सिंहबाबरी मस्जिदयोगी आदित्यनाथराम मंदिर
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