अब तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जे के बाद पाकिस्तान और कतर के बीच एक शक्ति प्रतियोगिता छिड़ चुकी है। देखा जाए तो तालिबान में दो प्रमुख शक्ति ब्लॉक शामिल हैं। पहली अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व में उग्रवादी समूह की राजनीतिक शाखा है, जबकि दूसरी सैन्य शाखा है जिसका नेतृत्व मोहम्मद याकूब कर रहे हैं। अब्दुल गनी बरादर कतर का पुराना सहयोगी है जिसे पाकिस्तान को छोड़ने में एक वक्त भी नहीं लगाने वाला है क्योंकि ये पाकिस्तान ही था जिसने अब्दुल गनी बरादर को कैद कर रखा था। हालांकि, तालिबान की सैन्य शाखा और हक्कानी नेटवर्क के कई लोग पाकिस्तान को अपने सबसे व्यवहार्य साथी के रूप में देखते हैं, जिसे इस्लामाबाद ने हाल के वर्षों में जोरदार सैन्य समर्थन दिया है।
तालिबान के साथ भले पाकिस्तान गलबहियां करने की कोशिश कर रहा है तथा उसे लगता है कि उसके मंसूबे अब तालिबान पूरी करेगा तो वह बहुत बड़े मिथ्या में है। इतिहास को देखा जाए तो अफ़ग़ानिस्तान का नया आका मुल्ला अब्दुल गनी बरादर पाकिस्तान नहीं बल्कि क़तर की ओर अपना रुख करेगा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई भी सम्बंध हमेशा के लिए नहीं होते हैं। इमरान खान भले ही परोक्ष रूप से तालिबान को समर्थन देते आये हैं लेकिन वो शायद नहीं जानते है कि यह क्रिकेट का मैदान नहीं है। पाकिस्तान भले ही तालिबान का जन्मस्थान रहा हो परंतु उसे अभी आवश्यक है संसाधन की जो उसे क़तर से मिल रहा है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की राजनीति है जहां हर देश, हर व्यक्ति, हर संस्था दुनिया में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करना चाहती है। इस्लामिक राष्ट्रों में तो वैसे भी हर देश अपने को मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाला मानता है। चाहे वो प्रिंस सलमान हो, एर्डोगन हो, महतीर हो या इमरान तालिबान खान, सभी अपने आप को मसीहा बनाना चाहता है। ऐसी ही चाह कतर भी रखता है। तेल के संसाधनों पर काबिज कतर के राष्ट्राध्यक्ष तमीम बिन हमाद अल थानी को भले ही वैश्विक स्तर पर कम लोग जानते है लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी हसरत सबसे खतरनाक है। कतर कभी भी सामने से लड़ाई नहीं लड़ना चाहता है इसलिए वो लंबे समय से दुनिया भर के आतंकी संगठनों को अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय मदद करता रहा है।
अंतर महाद्वीपीय आतंकवाद के रास्ते पर कतरी शासन अपनी विनाशकारी योजनाओं को फैलाने और दुनिया भर में आतंकवादी समूहों का समर्थन और वित्त पोषण करने के लिए विभिन्न संस्थानों का उपयोग करता रहा है। कथित तौर पर धर्मार्थ कार्यों की आड़ में, दुनिया भर के मुसलमानों को राहत और सहायता प्रदान करने के लिए, कतरी शासन एक छिपी मंशा को पूरी करता है। उसके कुछ ऐसे संस्थाओ पर भी नजर डाल लीजिए-
आरएएफ (RAF) फाउंडेशन:
यह फाउंडेशन सीरिया, सूडान और लीबिया में चरमपंथियों को फ़ंड देता है। कतर के राष्ट्राध्यक्ष हमाद अल थानी के भाई के नेतृत्व में यह फाउंडेशन काम करता है। इस फाउंडेशन में तुर्की के साथ संबंध हैं, इसी फाउंडेशन ने सूडान में 37 मिलियन डॉलर खर्च किए थे।
अल एहसान चैरिटेबल फाउंडेशन:
बहिष्कार करने वाले तमाम देशों ने इसे आतंकी सूची में सूचीबद्ध किया है। यह यमन में हौथी लड़ाकों का समर्थन करता है।
शेख ईद चैरिटेबल फाउंडेशन:
यह यूरोप में कतर की छिपी हुई शाखा है। इसपर कनाडा राजस्व एजेंसी द्वारा आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया गया था। 2016 में इसने 17 देशों में 335 मस्जिद बनाने का ठेका हासिल किया।
अगर आप खबरों से जुड़े रहने वाले व्यक्ति है तो अपने गौर किया होगा कि आतंकवाद से जुड़े अधिकतर मामलों पर बैठकें दोहा में होती है। तालिबान, अफ़ग़ानिस्तान सरकार और अमरीका में भी समझौते के लिए बैठक यही हुई थी।
कतर चाहता है कि तालिबान के रास्ते अफ़ग़ानिस्तान पर उसका नियंत्रण बना रहे। ये कतर की महत्वकांक्षा है। कतर ने हमेशा अब्दुल गनी बरादर के साथ अत्यधिक सम्मान के साथ व्यवहार किया है और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी जड़ें जमाने के लिए अब्दुल गनी बरादर पर अधिक प्रभाव डालने की उम्मीद है। कतर पिछले तीन वर्षों से अब्दुल गनी बरादर को अपने देश में छुपाए रखा था। कतर से अब्दुल गनी बरादर की निकटता अफगानिस्तान में पाकिस्तान के लिए दुर्भाग्य का एकमात्र कारण नहीं होगी। तालिबान वैधता के लिए प्रयास कर रहा है और कतर का समर्थन महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
यह सभी को पता है कि पाकिस्तान ने पश्चिम में अपनी विश्वसनीयता खो दी है और कतर के पास पश्चिम तथा तालिबान शासित अफगानिस्तान के बीच एक सूत्रधार के रूप में उभरने का सबसे अच्छा मौका है। यही नहीं कतर जैसा समृद्ध अरब देश तालिबान को उसके वित्तीय संकट से उबरने में आसानी से मदद कर सकता है।
दूसरी ओर, पाकिस्तान स्वयं उधार पर जी रहा है और सत्ता के भूखे तालिबान नेताओं को एक लगभग दिवालिया देश से मदद लेने की उम्मीद बेहद कम है। पाकिस्तान चाहता है कि वो वहां अपनी स्थिति मजबूत करे, इसीलिए अपने मर्जी के लोगों को वह बैठाना चाहता है। पाकिस्तान तालिबान के मिलिट्री चीफ मोहम्मद याकूब और हक्कानी नेटवर्क के रास्ते वहाँ पर अपनी पकड़ को मजबूत करना चाहता है।
कतर का पक्ष ज्यादा मजबूत नजर आ रहा है। अब्दुल गनी बरादर वहां पर तीन साल रह चुका है। वहीं दूसरी तरफ एक दशक से पहले उसे फरवरी 2010 में पाकिस्तान से गिरफ्तार कर लिया गया था। बता दें कि उसे पाकिस्तानी शहर कराची से अमेरिका-पाकिस्तान के संयुक्त अभियान में पकड़ा गया था, लेकिन बाद में तालिबान के साथ डील होने के बाद पाकिस्तानी सरकार ने वर्ष 2018 में उसे रिहा कर दिया था। पाकिस्तान का अब्दुल गनी बरादर को अपने नियंत्रण में रखना और प्रताड़ित करना अब उन्हीं पर भारी पड़ने वाला है। यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि कतर ने ही बातचीत के रास्ते तालिबान के लिए अफ़ग़ानिस्तान का रास्ता खोला था और आर्थिक स्थिति को देखते हुए तालिबान हमेशा दोहा जाएगा। इस्लामाबाद खुद कटोरा लेकर खड़ा रहता है। पाकिस्तान के साथ एक ही चीज बढ़िया है कि उसके पास अफगानिस्तान से सीमा लगी हुई है। दोहा और इस्लामाबाद में तालिबान पर नियंत्रण की लड़ाई शुरू हो गई है। दोनों की अलग अलग प्राथमिकता है और अलग-अलग ताकत है पर अभी तक तो तालिबान दोहा के साथ ज्यादा करीब नजर आ रहा है।