इन दिनों टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर आए सूबेदार नीरज चोपड़ा अनेक बातों के लिए चर्चा में हैं। चाहे वो उनके राष्ट्रवादी विचार हों, उनकी देसी शैली हो, या फिर वामपंथियों से निपटने के लिए उनका सरल पर स्पष्ट व्यवहार हो। हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए साक्षात्कार में जहां उन्होंने पाकिस्तानी भाला फेंक अरशद नदीम की पोल खोली, तो वहीं उसी साक्षात्कार में उन्होंने यह भी बताया कि भारत को भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिए, और अभी से व्यापक बदलाव की दिशा में अहम कदम बढ़ाने चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि हमें अत्यधिक उत्सव मनाने पर भी रोक लगानी होगी।
‘एक स्वर्ण पदक से संतुष्ट नहीं रह सकते’ : नीरज चोपड़ा
नीरज चोपड़ा के साक्षात्कार के अंश अनुसार, “सितंबर के अंत में डायमंड लीग होनी थी, जिसमें मुझे भाग लेना था। मैं उसमें भाग लेना चाहता था, परंतु टोक्यो ओलंपिक के पश्चात मेरी ट्रेनिंग पूरी तरह से रुक गई थी, क्योंकि मुझे अनेक सम्मान समारोहों का हिस्सा बनना पड़ा। इसी बीच मैं बीमार भी पड़ गया। इन सब चीजों में बदलाव आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय खेल कभी प्रगति नहीं कर पाएगा। हम एक गोल्ड मेडल से संतुष्ट नहीं रह सकते।”
परंतु नीरज चोपड़ा वहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “ऐसा नहीं होना चाहिए कि अब पदक आ गया तो सब अभी कर दो, और फिर एक महीने बाद सब शांत हो जाओ। खेलों पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है। आप चार सालों में एक बार खिलाड़ियों को याद कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री नहीं कर सकते।”
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नीरज चोपड़ा ने आगे ये भी बताया कि भारतीय को अब आगे की सोचनी चाहिए। उनके अनुसार, “भारतीय खेल में कई मायनों में बदलाव आवश्यक है। अन्य ओलंपिक चैंपियन डायमंड लीग में आराम से भाग ले रहे हैं, परंतु मैं नहीं ले पाऊँगा। हम एक स्वर्ण पदक से नहीं संतुष्ट हो सकते हैं। हमें डायमंड लीग जैसे इवेंट्स में निरंतर तौर पर उत्कृष्ट परफ़ोर्मेंस देते रहने की आवश्यकता है।”
उनका स्पष्ट मानना है कि हमें अत्यधिक उत्सव मनाने से बचना होगा और ध्यान भविष्य की अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं पर लगाना होगा। यह हम सभी ने देखा कि कैसे ओलंपिक में स्वर्ण जीतने के बाद किस तरह नीरज चोपड़ा के लिए सम्मान आयोजन तथा इंटरव्यू किया गया था, कभी समारोह आयोजन तो कभी ऑनलाइन इंटरव्यू। आरजे मलिशका ने तो सभी हदों को पार करते हुए ऑनलाइन इंटरव्यू के दौरान ही भद्दा नाच करने लगी थी।
अब जिस तरह से उन्होंने यह बयान दिया है कि देश को एक गोल्ड से अधिक खुश नहीं होना चाहिए, उससे तो यही पता चलता है कि सूबेदार नीरज चोपड़ा उन खिलाड़ियों में से नहीं है, जो पदक मिलने के बाद उससे मिले यश की चकाचौंध में खो जाते हैं, परंतु उनकी दूरगामी सोच बहुत आगे की है। इसके लक्षण तो उसी समय दिख गए थे, जब उन्हें नीचा दिखाने में वामपंथी ने उनके कुछ ऐसे ट्वीट्स खोज निकाले, जहां वे न केवल अपने राष्ट्रवादी विचारों को स्पष्ट तौर पर व्यक्त करते हैं, अपितु वे हर बात पर कमी निकालने वाले वामपंथियों को भी आड़े हाथों लेते हैं, जैसे उन्होंने वामपंथियों की प्रिय पत्रकार बरखा दत्त को एक बार लिया था।
लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया को जो साक्षात्कार सूबेदार नीरज चोपड़ा ने दिया है, उससे उनका एक ऐसा पहलू निकलकर सामने आया है, जो केवल एक स्वर्ण पदक पर नहीं रुकना चाहता। जो प्रभाव कभी भारतीय हॉकी टीम का था, और जो प्रभाव व्यक्तिगत तौर पर बैडमिंटन में पीवी सिंधू जमाने का प्रयास कर रही है, अब उसमें एक कदम आगे बढ़कर नीरज चोपड़ा एक ऐसी विरासत भारत को देना चाहते हैं कि जब तक वे खेल जगत से सन्यास ले, तब तक भारत यदि ओलंपिक में नहीं, तो कम से कम एथलेटिक्स में अवश्य ही एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में सामने आए।
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