त्रिपुरा में भले ही बड़े-बड़े महल ना हो लेकिन अब वहां एक ऐसा किला बन रहा है, जिसको भेदना नामुमकिन है। हम बात कर रहे है त्रिपुरा की राजनीति में सक्रिय हुई किला रूपी भाजपा की और उस किले के अजेय कोतवाल बिप्लव कुमार देब की।
उदयपुर से लेकर त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बनने तक के सफर को जिस प्रकार से बिप्लव देब ने पूरा किया है, वह अपने आप में एक अनोखी कहानी है। एक राजनीतिज्ञ के रुप में बिप्लब देब की सक्रियता की कहानी पर हम नजर डालेंगे लेकिन उससे पहले त्रिपुरा में TMC और BJP के बीच चल रही रार पर ध्यान देना जरुरी है।
त्रिपुरा में नहीं चल रहा TMC का दांव
पश्चिम बंगाल में जीत हासिल करने के बाद ममता बनर्जी की पार्टी TMC अब अन्य राज्यों में भी पैर पसारने की कोशिशों में लगी है। TMC के नेता त्रिपुरा में अपनी सक्रियता बढ़ाते दिख रहे हैं। हाल ही में मंगलवार को TMC की ओर से कहा गया कि अगर 22 सितंबर को अगरतला में एक सार्वजनिक रैली करने की उसकी तीसरी याचिका को फिर से खारिज कर दिया जाता है, तो वह त्रिपुरा में बिप्लब देब सरकार के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएगी।
दरअसल, सोमवार को अगरतला अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओ) ने अगरतला में TMC की सार्वजनिक रैली की योजना को खारिज कर दिया था। जिसके बाद TMC के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banerjee) ने आरोप लगाया कि त्रिपुरा में भाजपा और बिप्लब देब सरकार “हार से डरी हुई है।” साथ ही उन्होंने यह आरोप भी लगाया है कि बिप्लव देव की सरकार त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस को “प्रवेश” करने से रोकने के लिए “अपनी सारी ताकत और संसाधनों का उपयोग” कर रही है।
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बिप्लव देब पर ऐसे बयान देकर तृणमूल कांग्रेस शायद यह दिखाना चाहती है कि वह लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है और उनकी लोकप्रियता से डरकर भाजपा उन्हें जगह नहीं देना चाह रही है लेकिन जहां तक तथ्यों की बात है, त्रिपुरा की राजनीति में भाजपा को छोड़कर कोई भी सक्रिय नहीं है।
अल्पसंख्यक होने के कगार पर त्रिपुरा की मूल आबादी
त्रिपुरा में बिप्लब देब की प्रसिद्धि के बहुत से कारण है। पहला यह कि वह बहुत सफल राजनीतिज्ञ है। तृणमूल कांग्रेस जानती है कि जो काम उन्होंने बंगाल में किया है वह काम बिप्लब देब त्रिपुरा में कर सकते है क्योंकि तृणमूल कांग्रेस त्रिपुरा में बाहरी है।
त्रिपुरा में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि त्रिपुरा की मूल आबादी वहां अल्पसंख्यक होने के कागार पर है। तृणमूल कांग्रेस वहां पर भी बांग्ला लोगों के दमपर चुनाव लड़ना चाहती है लेकिन वहां पर बाहरी बनाम त्रिपुरी के चुनाव में भाजपा विजय पाने में सफल हो जाएगी।
बीजेपी के मंझे हुए खिलाड़ी हैं बिप्लब देब
दूसरी बात यह है कि बिप्लब देब भाजपा के एक मंझे हुए खिलाड़ी है। संगठनात्मक प्रतिनिधित्व के मामलें में उनका कोई तोड़ नहीं है। कहा तो यह भी जाता है कि अमित शाह ने कैडर मैनेजमेंट के चलते उन्हें त्रिपुरा की कमान सौंपी थी।
हिमंता बिस्वा सरमा के साथ बिप्लब देब को पूरे नार्थ ईस्ट इंडिया की कमान सौंपी गई है। अभी कुछ दिनों पहले मंत्रालय में विस्तार करके उन्होंने अपनी समझ का प्रमाण दिया है। TFI ने पहले ही बताया है कि कैसे बिप्लब देव को छोड़कर कोई अन्य त्रिपुरा को नहीं संभाल सकता है।
तीसरी चीज यह है कि बिप्लब देब लोगों के बीच काफी मशहूर हैं। अपनी पैदल यात्रा से लेकर नियामक नीतियों तक…वह हर तरह से लोगों के बीच मशहूर है और यही सब त्रिपुरा में भाजपा का किला मज़बूत कर रहे हैं l