कुमार गौरव, रेहाना सुल्तान, राहुल रॉय, भाग्यश्री इत्यादि में कोई समान बात है? इन सब ने जब भारतीय फिल्म उद्योग, विशेषकर बॉलीवुड में जब पदार्पण किया, तो अपने प्रतिभा से तहलका मचा दिया। लेकिन अपनी प्रतिभा को ये लोग संभाल नहीं पाए और जल्द ही वन हिट वंडर बनके ही सीमित रह गए। अब इसी श्रेणी में जल्द ही एक और नाम जुड़ने जा रहा है, यदि उन्होंने अपने आप को तुरंत सही समय पर नहीं सुधारा तो अंजाम कुछ इन जैसा ही हो सकता है। ये कोई और नहीं, गुजराती फिल्म उद्योग के सुपरस्टार और ‘स्कैम 1992’ के कारण लाईमलाइट में आए अभिनेता प्रतीक गांधी है। लेकिन आखिर विवाद का विषय क्या है? असल में 22 अक्टूबर को प्रतीक गांधी की प्रथम हिन्दी फिल्म ‘भवई’ सिनेमाघरों में आएगी, जिसे हार्दिक गज्जर द्वारा निर्देशित किया गया है।
इस फिल्म का नाम पहले ‘रावण लीला’ था, परंतु फिल्म के मूल ट्रेलर और उसके भड़काऊ संवादों पर उपजे विवाद के कारण इसका नाम बदल के ‘भवई’ रख दिया गया, जो कि गुजरात में नाट्यकला का स्थानीय नाम भी माना जाता है। विवाद का विषय ये था की इस फिल्म में श्रीराम का अनावश्यक अपमान किया जा रहा था और रावण के चरित्र का महिमामंडन किया गया था।
तो इससे प्रतीक गांधी को क्या दिक्कत है? एक कलाकार का काम होता है अपनी कला के प्रति निष्ठावान रहना, अपनी भूमिका से जुड़ी विचारधारा को जबरदस्ती लोगों पर थोपना नहीं। लेकिन प्रतीक गांधी जन भावनाओं का सम्मान करने के बजाए लोगों पर जबरदस्ती का ज्ञान थोप रहे हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दे रहे हैं। उदाहरण के लिए जब ‘रावण लीला’ का नाम बदलकर ‘भवई’ रख दिया गया, तो प्रतीक ने मानो उपहास उड़ाते हुए पूछा की इससे क्या प्राप्त हुआ? क्या इससे कुछ बदल जाएगा? कहानी बदल जाएगी?
‘बोल वो रहे हैं लेकिन शब्द हमारे हैं’
लेकिन ऐसा मत समझिए कि यह प्रतीक गांधी के बोल हैं। असल में वे बॉलीवुड में अपने लिए कुछ नाम कमाना चाहते हैं और इसीलिए वह उन सभी लोगों की जी हुज़ूरी करने में लगे हुए हैं, जो बॉलीवुड में उच्च पदों पर आसीन हैं और कट्टर हिन्दू विरोधी हैं। जिस ‘स्कैम 1992’ के कारण वे चर्चा में आए हैं, उसके निर्देशक हँसल मेहता स्वयं कितने बड़े वामपंथी है, इसमें कोई दो राय नहीं है। ऐसे में स्पष्ट है कि प्रतीक गांधी उन्हे प्रसन्न करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
इसका एक अंदेशा अभी हाल ही में दिखा जब प्रतीक ने एक क्लिप अपने ट्विटर टाइमलाइन पर शेयर की। उन्होंने स्पष्ट तौर पर उन लोगों को निशाने पर लेने का अप्रत्यक्ष तौर पर प्रयास किया, जो उन्हे ‘भवई’ में रावण का महिमामंडन करने के लिए ट्रोल कर रहे थे। प्रतीक के अनुसार अभिनेताओं को उनके किरदारों के लिए ट्रोल करना अनुचित है। ये एक प्रकार से कुछ हद तक सही भी है, परंतु इसका अर्थ ये भी नहीं है की आपको भारत की संस्कृति को अनावश्यक रूप से अपमानित करने की भी स्वतंत्रता मिल जाए।
.@pratikg80 on. #Bhavai Its Unfair To Troll Actors For Their Characters’,. https://t.co/46fDYW4IU9 via @YouTube @AindritaR @jayantilalgada #bhavai #RavanLeela #pratikgandhi #scam1992 pic.twitter.com/oPDHVXpfGn
— Puja Talwar (@talwar_puja) September 27, 2021
TFI ने इसी विषय पर एक पूर्व लेख में बताया था कि, “असल समस्या उन लोगों के साथ है, जिन्हें लगता है कि वे सनातन पर कीचड़ उछालते रहेंगे और लोग अपमान का घूंट पीकर रह जाएंगे। लेकिन जब जन विद्रोह के कारण ‘गोलियों की रासलीला रामलीला’ तक को उत्तर प्रदेश में संशोधित नाम के साथ रिलीज़ होना पड़ा, तो फिर ‘भवई’ किस खेत की मूली है। जिस प्रकार से जनता जागृत हो रही है, एक दिन वो भी आएगा, जब देश में श्री राम पर कीचड़ उछालने का ख्याल रखने वालों को ही जनता तिरस्कार कर उन्हें उनकी हैसियत दिखा देगी।”
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सच कहें तो अभी भी प्रतीक गांधी के लिए कुछ बिगड़ा नहीं है। यदि वे चाहें तो पंकज त्रिपाठी की भांति अपनी प्रतिभा पर ध्यान केंद्रित करते हुए केवल और केवल अपने अभिनय पर कार्य करें, अन्यथा वामपंथियों की जी हुज़ूरी करने के कारण वे वन हिट वंडर बनकर ही सीमित रह जाएंगे, जिसके पीछे यह जी हुज़ूरी की समस्या ही प्रमुख कारण होगी।
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